EXCLUSIVE : केंद्र के आदेश का आज एक महीना पूरा लेकिन मिड डे मील में बच्चों को खाना नहीं दे रहे राज्य
केंद्र सरकार ने एक महीने पहले 20 अप्रैल को सभी राज्यों से कहा था कि सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से तैयार मिड डे मील का खाना बच्चों तक पहुंचाया नहीं जा रहा है तो उन्हें राशन दिया जाए, जिससे वह घर पर ही खाना बनाकर खा सकें, यदि यह भी संभव नहीं है तो उन्हें पैसे दिये जाएं...
हरियाणा से मनोज ठाकुर उत्तर प्रदेश से मनीष दुबे उत्तराखंड से संजय रावत कश्मीर से फैजान मीर और झारखंड से राहुल सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। देशव्यापी लॉकडाउन के बीच 20 अप्रैल को केंद्र की ओर से एक पत्र सभी राज्यों को लिखा गया था। इसमें निर्देश दिए गए थे कि फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत बच्चों को मिड डे मील दिया जाए। यदि सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से तैयार खाना बच्चों तक पहुंचाया नहीं जा रहा है तो उन्हें राशन दिया जाए। जिससे वह घर पर ही खाना बनाकर खा सके। यदि यह भी संभव नहीं है तो उन्हें पैसे दिये जाए। लेकिन एक महीने बाद भी सरकार का यह आदेश जमीन पर कितना खरा उतरा, यह जानने के लिए 'जनज्वार' की टीम ने पड़ताल की।
हरियाणा
करनाल जिले के छपरा गांव की आशा देवी यह मान कर चल रही हैं कि कोरोना की वजह से स्कूल बंद है, इसलिए बच्चों को मिड डे मील नहीं मिलेगा। यही वजह है कि उन्होंने इस बारे में कुछ भी नहीं सोचा है। वह न स्कूल यह जानने के लिए गई कि मिड डे मिलेगा या नहीं। उनकी चार बेटियां है। मिड डे मील न मिल पाने के कारण उन्हें खासी परेशानी हो रही है क्योंकि एक तो कोरोना की वजह से उनका पति काम पर नहीं जा पा रहा है। दूसरी तरफ घर में इतना राशन नहीं कि इतने दिनों तक गुजारा हो सके। अब वह खुद और उसकी बच्चियों को भरपेट खाना भी नहीं मिल रहा है।
जब उन्हें बताया कि मिड डे मील तो बच्चों को नियमित मिल रहा है। इस पर उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि इस बारे में उन्होंने कई बार स्कूल में संपर्क किया, लेकिन हर बार उन्हें यही जवाब मिला कि राशन आया ही नहीं। यह स्थिति अकेली आशा देवी की नहीं है। यमुनानगर के माजरा निवासी रोशनी भी यही मान कर चल रही थीं कि स्कूल बंद होने की वजह से मिड डे मील भी बंद है।
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केंद्र सरकार की ओर से जारी किए गए आदेशों के बाद भी हरियाणा सरकार ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मिड डे मील को लेकर 380 अभिभावकों से बातचीत की, इसमें से 90 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें राशन या पैसा नहीं मिला है। पूर्व शिक्षा मंत्री व हरियाणा की कांग्रेस नेता गीता भुक्कल ने बताया कि बच्चों के लिए मिड डे मिल बहुत जरूरी है, क्योंकि बच्चे शिकायत भी नहीं कर पाते इसलिए उन्हें उचित भोजन मिल रहा है या नहीं, इसके लिए एक सिस्टम बनाना बेहद जरूरी हो जाता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो निचले स्तर पर कर्मचारी अक्सर इस काम में लापरवाही बरत जाते हैं। जिससे बच्चों को खाना या तो मिलता ही नहीं यदि मिलता है तो उसकी गुणवत्ता खराब होती है।
गीता भुक्कल आगे कहती हैं, 'अब तो विपरीत हालात है, ऐसे में तो सरकार को चाहिये था कि इस सिस्टम को और ज्यादा मजबूत किया जाता। जिससे बच्चों तक मिड डे मिल का राशन पहुंच सके। इस वक्त जबकि गरीब लोग दाने दाने के लिये मोहताज हैं, इसकी बड़ी मार छोटी बच्चियों पर पड़ती है। यदि उन तक मिड डे मील पहुंच जाये तो कम से कम भरपेट खाना तो मिल ही सकता है लेकिन सरकार ने इस ओर भी ध्यान नहीं दिया है।'
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के अनुसार, 'अल्पविकसित बच्चे के विकास के दौर में लगातार चलने वाली पोषण की कमी के कारण बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट में हरियाणा के बच्चे कुपोषण के अधिक शिकार पाए गए हैं। करीब 33 प्रतिशत बच्चों में कुपोषण पाया गया।'
बच्चों के लिये काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था 'अनमोल' के अध्यक्ष राजकुमार राही ने कहा, 'दिक्कत यह है कि इस दिशा में काम नहीं हो रहा है। मिड डे मिल कहीं दे दिया जाता है कहीं दिया ही नहीं गया है। अब सवाल तो यह भी उठ रहा है कि यह राशन गया कहां? क्योेंकि यदि आया है तो कहीं तो जाना चाहिये।'
इसको लेकर हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवर पाल ने कहा कि वह जांच कराएंगे कि कहां-कहां और क्यों बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल रहा है। उन्होंने आगे कहा कि सभी को निर्देश हैं कि बच्चों तक राशन भिजवाया जाए। यदि इसमें कहीं भी अनियमितता पायी गयी तो जो भी इसके लिये जिम्मेदार होगा,उसके खिलाफ उचित कार्यवाही की जायेगी।
उत्तराखंड
उत्तराखंड के नैनीताल जिले की बात करें तो विधानसभा क्षेत्र हल्द्वानी, भीमताल और कालाढूंगी के जो आंगनबाड़ी और प्राथमिक विद्यालयों शहरी इलाकों से सटे हैं, वहां भोजन या उतनी राशि स्कूल बुलाकर बच्चों को दी जा रही है और जहां बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे है उनके घर ही तय राशन पहुंचाया जा रहा है।
शहर से दूर के इलाकों में बहुत शिकायतें हैं लेकिन कोई भी परिजन इसलिए खुलकर नहीं बोल रहे हैं कि कहीं स्कूल से बच्चों का नाम ना काट दिया जाए। इस बाबत जब हमने एक भोजन माता से बात की तो नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी हो या प्राथमिक विद्यालय, रजिस्टर में बच्चों के नाम ज्यादा लिखे होते हैं जबकि असल में उतने बच्चे स्कूल के विद्यार्थी ही नहीं होते हैं।
प्राथमिक विद्यालय रानीबाग की अध्यापिका अमिता क्विरा से मिड डे मील के बारे में पूछने पर कहा, 'हमने ग्राम प्रधान और स्कूल के अध्यक्ष से राय मशविरा कर सारे बच्चों को खाते में आई हुई रकम तय मानकों के हिसाब से वितरित कर दी है।' दरअसल जनपद नैनीताल में मीडिया के सक्रिय होने के बाद शहरी स्कूलों में राशन बंटने लगा जो पहले नहीं बांटा जा रहा था ।
झारखंड
झारखंड के देवघर जिले के कुछ सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों व उनके अभिभावकों से इसको लेकर अलग-अलग तथ्य सामने आये। बलसरा उत्क्रमित मध्य विद्यालय के बगल में लक्ष्मण विश्वकर्मा का घर है। उनके पोते-नाती इसी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। उन्होंने कहा कि लाॅकडाउन के दौरान एक महीना में एक बच्चे को एक किलो अनाज मिला और पैसे नहीं दिए गए हैं। इस स्कूल में पास के ही रहने वाले गणेश की दो बेटियां नेहा व रानी पढती हैं।
दिहाड़ी मजदूर गणेश ने बताया कि उनकी बेटी नेहा दूसरी कक्षा में और रानी तीसरी कक्षा में पढती है, लेकिन उन्हें न अनाज मिला है और न ही पैसा। वहीं एक अन्य शख्स दीपक ने अपने घर के बच्चों को केवल 2 किलो चावल मिलने की बात कही।
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चीरोडीह के उत्क्रमित मध्य विद्यालय के आसपास के लोगों ने बताया कि स्कूल से 1 से 5 कक्षा के बच्चों को तीन किलो चावल व 100 रुपये दिए गए, जबकि 6 से 8 कक्षा के बच्चों को 4 किलो चावल व 200 रुपये दिए गए। यह वितरण अप्रैल में ही हुआ था। चिरोहीड के एक व्यक्ति कैलाश दास ने कहा कि किसी को मिला, किसी को नहीं। वहीं, विक्रम कुमार नामक शख्स ने कहा- आधे बच्चों को मिला।
पुनसिया के उत्क्रमित मध्य विद्यालय में पांचवी कक्षा में पढने वाली पायल कुमारी ने बताती हैं कि अप्रैल में एक बार दो किलो अनाज व 130 रुपया मिला था। पायल के भाई पवन को भी अनाज व पैसे मिले।
राज्य में जून से मार्च तक के छोटे शैक्षणिक सत्र पर विचार किया जा रहा है। साथ ही कम बच्चों के साथ अगले महीने से पढाई प्रारंभ करने की योजना है। राज्य में पहली से बारहवीं की कक्षा तक करीब 42 लाख बच्चे नामांकित हैं। इनमें दो तिहाई से अधिक बच्चे प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं के होने का अनुमान हैं।
गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल, नवा कदल की एक अन्य छात्रा ने भी बताया कि 'स्कूल के अधिकारियों ने सभी छात्रों को केवल चावल उपलब्ध कराया और स्कूली बच्चों के बीच कोई पैसा नहीं बांटा गया।'
मिड डे मील एक प्रतिष्ठित योजना है जो केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा चलाई गई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस योजना का वित्तपोषण कर रहा है और राज्यों के शिक्षा विभागों को सलाह दी गई है कि इस योजना को सख्ती से लागू किए गए निर्देशों के अनुसार लागू करें। दरअसल, यह योजना सरकार की समग्र नीति का हिस्सा है, जो गरीबी रेखा से नीचे के उन छात्रों को मदद दिलाती है, जिनके माता-पिता अपने बच्चों के लिए स्वस्थ और पौष्टिक भोजन नहीं ले सकते।
उत्तर प्रदेश
कानपुर के गोविंदनगर निवासी नीतू के पति टैम्पो चलाते थे। 5 साल पहले एक एक्सीडेंट में उनके पति का देहांत हो गया था। नीतू की एक बेटी मान्यता यहीं के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती है। नीतू कहती हैं कि स्कूल से मिलने वाला मिड डे मील गरीबी में उनकी बेटी के लिए एक बड़ा सहारा था। नीतू अब कहीं कुछ काम-धाम कर अपना व बेटी का पेट पाल रहीं हैं। ऐसे में उनको बड़ी ही कठिनाइयां हो रहीं हैं।
गोविंदनगर की ही रहने वाली बिटिया अमृता के पिता भी टेम्पो चलाते हैं। अमृता भी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती है। लॉकडाउन के समय पिता का टेम्पो भी बन्द है और स्कूल भी। ऐसे में अमृता को स्कूल की तरफ से मिलने वाला मिड डे मील उसे और उसके परिवार के लिए राहत भरा था। अमृता के ही साथ प्राइमरी विद्यालय की छात्रा करिश्मा भी सरकार और उनके स्कूलों के करिश्मे से दो वक्त के भोजन की खातिर परेशान है।
एडवोकेट दुर्गेश मणि त्रिपाठी खुद भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी हैं लेकिन वो खुद भाजपा के कार्यकलापों से नाखुश हैं। इस संबंध में उन्होंने कहा कि अभी आपके माध्यम से पता चला कि 22 अप्रैल को प्रमुख सचिव द्वारा पत्र लिखा गया की मिड डे मील का भोजन अथवा उतना पैसा वितरित किया जाए। लेकिन पहुंच नहीं रहा है, ये प्राथमिक स्कूलों की समस्या है। शिक्षा माफिया और मंत्री, मैं तो स्पष्ट बोलता हूं कि हमारे दिनेश शर्मा जो कि उपमुख्यमंत्री हैं, आप लोग रोलेक्स पहनने वाले और स्विट्जरलैंड में अपनी छुट्टियां बिताने वाले माफियाओं के दबाव में हैं।
वह आगे कहते हैं, 'शिक्षा विभाग में बहुत ही निकृष्ट कार्य हो रहा है। गरीब आदमी जिसका बच्चा पढ़ रहा था, उसे खाने को नहीं मिल रहा है। मजदूरों का पलायन हो रहा है। चलते-चलते लोगों गरीबों के पांव में छाले पड़ रहे हैं। हम सभी इतनी उम्मीद से भाजपा सरकार लाये थे, लेकिन अब निराश हैं।
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एक बुजुर्ग मकान मालकिन प्रभा मिश्रा बताती हैं कि हमारे यहां 5-6 गरीब परिवार किराए पर रहते हैं। इस सरकार में पैसे वाले ऐश उड़ा रहे हैं, गरीब के लिए क्या हो रहा है। 25 लाख 50 लाख करोड़ में गरीब आदमी को क्या मिला। विदेशों की यात्रा में उड़ा रहे हैं। हमारे यहां कई गरीब परिवार हैं, सभी भूखों मर रहे हैं। पैसे वाले अपनी गुजर बसर कर रहे हैं। स्कूलों में कुछ भोजन मिल जाता था, अब न भोजन है न बच्चों के लिए पौष्टिक आहार। ऐसे में कोई करे तो क्या करे।