सीजेआई यौन उत्पीड़न में इंटरनल कमेटी ने दे दी क्लीनचिट, मगर रिपोर्ट जानने का हक शिकायतकर्ता महिला को भी नहीं!

Update: 2019-05-11 11:23 GMT

सीजेआई रंजन गोगोई यौन उत्पीड़न मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से पूरी कार्यवाही की है इससे इतना तो स्पष्ट हो गया है कि देश के कानून ताकतवर व्यक्ति के सामने बेहद बौने हैं...

सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार मुनीष कुमार की रिपोर्ट

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने संस्थान की पूर्व महिला कर्मचारी की देश के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ की गयी शिकायत पर जिस तरह का रुख अख्तियार किया है, उससे देश की संवैधानिक मर्यादाएं व कानून के समक्ष समानता जैसी बातें औचित्यहीन बनकर रह गयी हैं। शिकायतकर्ता महिला को इस देश में न्याय मिल पाएगा फिलहाल इस पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लग चुका है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी द्वारा लगाए गये यौन उत्पीड़न की आंतरिक जांच कर रही कमेटी की रिपोर्ट में क्या कहा गया है, इसे न तो शिकायतकर्ता महिला स्वयं जान पाएगी और न ही देश ही जान पाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने मात्र इतना कहकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली कि शिकायतकर्ता पूर्व महिला कर्मचारी की शिकायत में कोई ठोस तत्व नहीं मिला है और रिपोर्ट सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की पूर्व 35 वर्षीय जूनियर कोर्ट सहायक के पद पर कार्यरत महिला कर्मचारी ने विगत 19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को पत्र भेजकर देश के मुख्य न्यायाधीश पर 10 व 11 अक्टूबर, 2018 को यौन उत्पीड़न व उसके परिवार को प्रताड़ित के गम्भीर आरोप लगाए हैं।

अपने पत्र में पूर्व महिला कर्मचारी ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पत्नी पर 11 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार व एस.एच. ओ. की मौजूदगी में पैरों में गिरकर, नाक रगड़वाकर माफी मंगवाने का गम्भीर आरोप लगाया है तथा तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन के एस.एच.ओ देवेन्द्र कुमार पर 10 मार्च 2019 को फर्जी मुकदमे में फंसाकर गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार कर जेल भेजने, हथकड़ी से पैर बांधने, लात मारकर गाली-गलौज करने आदि के भी गम्भीर आरोप लगाए हैं।

शिकायतकर्ता ने अपने पत्र में लिखा है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने 10 व 11 अक्टूबर, 2018 को अपने निवास पर स्थित कार्यालय में उसका यौन उत्पीड़न किया तथा उसके साथ यौन सम्बन्ध बनाने की कोशिश की। उसके द्वारा इंकार करने पर उसका उत्पीड़न शुरू कर दिया तथा उसे नौकरी से बर्खास्त करवा दिया गया। उसके पति, जो कि दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल के पद काम कर रहे थे, उन्हें भी सस्पेंड करवा दिया।

पूर्व महिला कर्मचारी का आरोप का है कि उसका अपाहिज देवर जो कि मुख्य नयायाधीश के विवेकाधीन कोटे के अंतर्गत अटेंडेंट के पद पर काम कर रहा था, उसको भी बगैर कारण बताए बर्खास्त कर दिया गया।

शिकायतकर्ता का आरोप है कि 3 मार्च को झज्जर निवासी नवीन कुमार द्वारा उसके व पति के खिलाफ आईपीसी दफा 420/506 0 120 बी में फर्जी मुकदमा कायम करवा दिया गया। जिसमें उसे नवीन से वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट में नौकरी लगाने के लिए 50 हजार रुपए की घूस लेने का आरोपी बनाया गया है।

पूर्व महिला कर्मचारी का कहना है कि वह नवीन कुमार से परिचित भी नहीं है। इसी फर्जी एफआईआर पर एसएचओ देवेन्द्र कुमार ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। मई 2014 से जूनियर कोर्ट सहायक के पद पर काम कर रही शिकायतकर्ता का कहना है कि वह मुख्य न्यायाधीश के सामने बेहद डरी व सहमी हुयी थी, जिस कारण वह पहले अपनी शिकायत दर्ज करवाने का साहस नहीं जुटा पायी।

शिकायतकर्ता ने 92 बिंदुओं पर आधारित अपने शिकायती पत्र के समर्थन में आडियो, वीडियो, फोटो व दस्तावेजी साक्ष्य भी संकलित किए हैं। आधुनिक तकनीक के इस युग में फोन काॅल डिटेल व सीसीटीवी कैमरा फुटेज से भी मामले की सच्चाई को परखा जा सकता है।

शिकायतकर्ता का आरोप है कि मामले की सुनवाई हेतु गठित 3 जजों की आंतरिक जांच कमेटी ने उसे सुनवाई के दौरान वकील अथवा सहायक को साथ में लाने की इजाजत नहीं दी तथा सुनवाई के दौरान की वीडियो रिकोर्डिंग कराने से भी इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, शिकायतकर्ता महिला को सुप्रीम कोर्ट जांच कमेटी द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट की प्रति देने से भी इंकार कर दिया गया है।

शिकायतकर्ता महिला द्वारा मामले की जांच रिटायर जजों से करवाए जाने की मांग को भी दरकिनार कर दिया गया।

30 अप्रैल को शिकायतकर्ता महिला ने आंतरिक जांच कमेटी के रुख पर गम्भीर सवाल खड़े करते हुए मामले की सुनवाई कर रही 3 सदस्यीय कमेटी के समक्ष पेश हाने से इंकार कर दिया। कमेटी ने महिला द्वारा आरोपी बनाए गये मुख्य न्याययधीस रंजन गोगोई का पक्ष सुनने के बाद मामले का एकतरफा निस्तारण करते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को क्लीनचिट दे दी है।

शिकायतकर्ता महिला ने अपनी शिकायत के समर्थन में जो साक्ष्य व नाम संकलित किए हैं आंतरिक जांच कमेटी ने उनका परीक्षण कराकर सत्यता की जांच की है अथवा नहीं, अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है।

आंतरिक जांच कमेटी द्वारा इस मामले में अपनाई गयी प्रक्रिया देश के स्थापित कानून व कानूनी प्रक्रियाओं का खुला उल्लंघन किया गया है।

सरकार द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए ‘महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध व प्रतितोष) अधिनियम 2013’ बनाया गया था। इस मामले की सुनवाई में यह कानून तार-तार होकर रह गया।

2013 के उक्त अधिनियम की धारा 13 (1) में कहा गया है कि इस अधिनियम के अधीन जांच पूरा हाने पर, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति अपने निष्कर्षों की एक रिपोर्ट, यथास्थित नियोजक या जिलाधिकारी को जांच के पूरा हाने की तारीख से दस दिन की अवधि के भीतर उपलब्ध कराएगी और ऐसी रिपोर्ट सम्बन्धित पक्षकारों को उपलब्ध कराई जाएगी। परन्तु शिकायतकर्ता पूर्व महिला कर्मचारी को आंतरिक जांच कमेटी की प्रति उपलब्ध कराने इंकार कर कानून की अवहेलना की गयी है।

आंतरिक जांच कमेटी द्वारा शिकायतकर्ता महिला कर्मचारी को वकील/सहायक उपलब्ध कराने से इंकार करना 2013 के उक्त कानून की धारा 9 (2) का भी उल्लंघन है। जिसमें कहा गया है कि जहां व्यथित महिला, अपनी शारीरिक या मानसिक असर्मथता या मृत्यु के कारण या अन्यथा परिवाद करने में असर्मथ है, वहां उसका विधिक वारिस या ऐसा अन्य व्यक्ति जो विहित किया जाए, इस धारा के अधीन परिवाद कर सकेगा।

शिकायतकर्ता महिला ने अपनी शिकायत के साथ अपनी मानसिक स्थित खराब होने से सम्बंधित इलाज के पर्चों की प्रति संलग्नित की है तथा जजों के समक्ष उपस्थित होने में नर्वस व एक काम से न सुन पाने के कारण बताते हुए अपना पक्ष रखने के लिए वकील/सहायक को साथ लाने के लिए निवेदन किया था, परन्तु जांच कर रही कमेटी द्वारा शिकायतकर्ता महिला को अपने साथ वकील/सहायक लाने की अनुमति नहीं दी गयी।

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से इस पूरे मामले में कार्यवाही की है इससे इतना तो स्पष्ट हो गया है कि देश के कानून ताकतवर व्यक्ति के सामने बेहद बौने हैं।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोकमंच के सह संयोजक हैं।)

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