गुजरात में ब्लैकमेल और धमकी देकर डिप्टी तहसीलदार का बेटा कर रहा था नाबालिग का रेप तो तंग आकर की आत्महत्या, 1 महीने बाद भी नहीं हुई आरोपी की गिरफ्तारी
गुजरात के डिप्टी तहसीलदार के बेटे को बचाने में जुटा पूरा सरकारी तंत्र, रेप मामले में एक महीने बाद न कोई FIR और न गिरफ्तारी
बलात्कार आरोपी और नाबालिग को आत्महत्या को मजबूर करने वाला नरेंद्र जडेजा डिप्टी तहसीलदार का बेटा है, जिस कारण सारा सरकारी अमला उसको बचाने में लगा हुआ है। नहीं तो क्या वजह है कि 1 माह बीत जाने के बाद भी न तो बलात्कार आरोपी की गिरफ्तारी हो पायी है और न ही एफआईआर में उस पर बलात्कार और पोस्को एक्ट की धाराएं लगायी गयी हैं। उल्टा उसे भागने के लिए एक महीने का वक्त जरूर दे दिया गया....
गुजरात के कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट
पूरे देश में बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा देकर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी ने गुजरात मॉडल की झूठी सच्चाई दिखाकर देश को गुमराह कर के भारत के सिंहासन पर कब्जा कर लिया, लेकिन गुजरात में बेटियों की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है, इसका प्रमाण कच्छ जनपद के भुज शहर में मिला। पिछले माह 27 अक्टूबर को 17 साल की निर्भया ने नरेंद्र रवाजी जाडेजा नामक लड़के से उत्पीड़न तंग आकर अपने ही घर में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। दीवाली के दिन बेटी की मौत से घर में और पूरे परिवार में मातम सा छा गया।
इस मामले में निर्भया के पिता प्रदीप कुमार से जनज्वार की टीम ने बात की तो बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। प्रदीप कुमार बताते हैं कि आरोपी नरेंद्र सिंह जाडेजा उनकी बेटी को बहुत दिनों से परेशान करके उसका यौन उत्पीड़न कर रहा था। इस मामले में प्रदीप कुमार ने आरोपी के खिलाफ भुज A डिवीजन पुलिस स्टेशन में शिकायत की। तब आरोपी के पिता ने आश्वासन दिया कि आगे से नरेंद्र कोई गलती नहीं करेगा, बावजूद इसके वह लड़की को परेशान करता रहा।
निर्भया के पिता ने जनज्वार को बताया कि नरेंद्र स्कूल के पास से छुरा दिखाकर उनकी बच्चे को अपनी गाड़ी में ले बिठाकर ले जाता था। नरेंद्र ने निर्भया की कुछ आपत्तिजनक तस्वीरें भी खींच ली थीं, जिनको दिखाकर वह उसको ब्लैकमेल करता था। एक दिन जब उनकी बेटी स्कूल नहीं पहुंची तब उसके शिक्षक ने हमसे बात की, तब पता चला कि उसको कोई उठाकर ले गया है।
इस पूरे मामले को लेकर भुज के ए डिवीजन पुलिस स्टेशन में निर्भया के पिता ने शिकायत की, तब भुज ए डिवीजन के कर्मचारी रोहित भट्ट ने 'आपकी बेटी घर पर आ जाएगी' कहकर उन्हें जाने को कह दिया, जबकि आरोपी डिप्टी तहसीलदार का बेटा होने के कारण कोई लिखित में शिकायत दर्ज नहीं की। बाद में प्रदीप कुमार की बेटी तो घर पर आ गई, लेकिन उसके माता-पिता बड़ी दहशत में जी रहे थे। वह जिस इलाके में रहते थे, वह घर भी उन्होंने आरोपी के डर से बेच दिया और उस जगह से 15-20 किलोमीटर दूर रहने चले गए, मगर वहां पर भी नरेंद्र जडेजा पहुंच जाता था और निर्भया को परेशान कर रहा था। इतना ही नहीं नरेंद्र जडेजा ने निर्भया को शादी का लालच भी दिया था।
प्रदीप कुमार कहते हैं, बलात्कार आरोपी नरेंद्र ने हमारी बेटी को इतना ज्यादा डरा रखा था कि वह अपने घरवालों को भी सारी बात नहीं बताती थी और नरेंद्र ने धमकाया भी था कि किसी को कुछ बताया तो मैं तुम्हारे परिवार को खतम कर दूंगा।
कच्छ पश्चिम जनपद के पुलिस सुपरिटेंडेंट (एपी) इंचार्ज बीएम देसाई के अनुसार 27 अक्टूबर 2019 की घटना के बाद पुलिस की तफ्तीश चालू थी, इसलिए FIR होने में देरी हुई है और यह रूटीन है, जबकि इस केस में बलात्कार और पॉस्को जैसी धारायें शामिल ना होने का सवाल पूछने पर उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी तक पुलिस के पास नहीं आई है, आगे की धाराएं पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद लग सकती हैं।
मगर सच्चाई यह है कि 27 अक्टूबर को घटना घटी है, इसके बाद 4 नवंबर को पीड़ित नाबालिग के पिता ने निवेदन दर्ज कराया था। 5 नवंबर को पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार हो गई, लेकिन आज की तारीख में वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट इन्वेस्टिगेशन अफसर ने भुज के सिविल अस्पताल से नहीं ली और बिना पोस्टमार्टम रिपोर्ट के ही 21 नवंबर को एफआईआर दर्ज की है। 210/2019 नंबर से दर्ज FIR में 305 और 506 (2) सिर्फ दो ही धाराएं लगाई गई हैं, जिसमें 305 आत्महत्या करने पर मजबूर करना और 506 (2) धमकी देना शामिल हैं।
पुलिस के मुताबिक इस केस में उसको पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है, जबकि सिविल अस्पताल में 23 दिन से पोस्टमार्टम रिपोर्ट मौजूद है। इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इन्वेस्टिगेशन किया ही नहीं और रसूखदार लोगों को बचाने के लिए मामला रफा-दफा करने का प्रयास किया लगता है।
भुज के सिविल अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ कश्यप बुच कहते हैं, हमारे यहां 27 अक्टूबर को बच्ची की डेड बॉडी लाई गई थी और रूटीन पोस्टमार्टम 2 डॉक्टरों के पैनल ने किया है, जिसमें एक डॉ. ए.डी. टांक और दूसरे डॉ. के .एल गोस्वामी शामिल थे। रूटीन में ही 1 सप्ताह में रिपोर्ट तैयार कर दी गई थी, परंतु 27 नवंबर तक यानी 1 माह बीत जाने तक भी पुलिस वह रिपोर्ट सिविल हस्पताल से नहीं ली है।
जबकि लंबे समय तक बलात्कार की शिकार हुई नाबालिग लड़की के पिता प्रदीप कुमार के अनुसार, 4 नवंबर को निवेदन दर्ज कराने के बाद तुरंत ही रिपोर्ट दर्ज होनी चाहिए, लेकिन करीबन 10 दिन बीत जाने के बाद भी रिपोर्ट दर्ज ना होने पर उन्होंने 15 नवंबर को पुलिस सुपरिटेंडेंट को फिर से आवेदन दिया। उनके आवेदन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और रिपोर्ट दर्ज भी नहीं की गई। बाद में स्थानीय अखबार में रिपोर्ट छपने के बाद आनन-फानन में प्रदीप कुमार को 21 नवंबर के दिन सुबह 10:00 बजे से रात के 10:30 बजे तक पुलिस स्टेशन में बिठाया गया था। प्रदीप कुमार और उनके पूरे परिवार को निवेदन दर्ज करने के लिए पूरा दिन बिठाना भी किसी मानसिक यातना से कम न था। उसके बाद भुज बी डिवीजन पुलिस स्टेशन के पुलिस इंस्पेक्टर वीजी भरवाड ने FIR दर्ज की, जिसमें उन्होंने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की छानबीन करना भी उचित नहीं समझा।
एक माह बीत जाने के बाद भी निर्भया को न्याय न मिलने के कारण भारतीय महिला अत्याचार विरोधी मोर्चा ने कच्छ रेंज डीआईजी को ज्ञापन सौंपा और तुरंत ही कार्यवाही करने की मांग की। भारतीय महिला अत्याचार विरोधी मोर्चा की दक्षाबेन गोस्वामी कहती हैं, 'अंतिम सांस तक हम कच्छ की बेटी को न्याय दिलाने के लिए लड़ते रहेंगे, अगर पुलिस ने तफ्तीश में कोताही बरती या फिर आरोपियों को बचाने का प्रयास किया तो यह मोर्चा आंदोलन का रुख अख्तियार करने में भी देरी नहीं करेगा। पहले कच्छ जनपद स्तर पर और अगर न्याय नहीं मिला तो गुजरात भर में आंदोलन किया जाएगा।
इसी मोर्चे के नरेश महेश्वरी ने बताया कि आईजी साहब से आश्वासन मिला है और जल्द ही आरोपी के खिलाफ कार्यवाही होगी और और सीनियर अधिकारी को इस मामले में कोताही बरतने वाले अधिकारियों की जांच सौंपी गई है। नरेश महेश्वरी कहते हैं कि अगर इस केस में लीपापोती की गई तो वह राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे और भूख हड़ताल भी करेंगे।
इस केस के संदर्भ में प्रेरणा महिला मंडल के सलाहकार वंदना बहन बताती हैं कि यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, इस मामले में अगर किसी को बचाया जा रहा है तो यह महिलाओं के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा और यह अन्याय किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा। स्थानिक स्वराज्य में महिलाओं को 50 % अनामत देना ही काफी नहीं है, महिलाओं को सम्मान और न्याय भी दिलाना होगा। महिलाओं को न्याय दिलाने में अगर सरकार नाकाम है तो महिलाएं खुद इतनी सशक्त है कि वह न्याय ले सकती हैं।
लंबे समय से डरा-धमकाकर और आपत्तिजनक तस्वीरों के बल पर बलात्कार से तंग आकर दीवाली वाले दिन आत्महत्या करने वाली निर्भया की मौत को एक महीना हो गया है। शिकायत के बावजूद जैसे इतना वक्त आरोपी को फरार होने के लिए दिया गया। अब स्थिति यह है कि आरोपी फरार हो चुका है और पुलिस सिर्फ मूकदर्शक बैठी हुई है। गुजरात पुलिस ने तो जैसे "घोड़े छूटने के बाद अस्तबल में ताले लगाए हैं।"
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के नारे सिर्फ अखबारों और टीवी के माध्यमों में ही अच्छे लगते हैं। इस नारे को जमीनी हकीकत बनाने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी के गृहराज्य गुजरात में जमीनी हकीकत कुछ अलग है, यहां पर आज भी पुलिस रसूखदार लोगों को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है। कुछ साल पहले बहुचर्चित नलिया कांड भी यहां हुआ था, जिसमें कई बीजेपी के नेता शामिल थे और उसमें भी आरोपियों को बचाने का आरोप कई संस्थाओं ने और राजकीय पक्षों ने लगाया था। इसलिए गुजरात में बलात्कार पीड़ित महिलाओं को न्याय मिलना बहुत ही मुश्किल हो चुका है। यही गुजरात मॉडल है, जहां पर बहन बेटियां सुरक्षित नहीं और उनको न्याय मिलना भी बहुत मुश्किल लग रहा है।