यूपी में बदहाल शिक्षा विभाग, खंड शिक्षा अधिकारी पर शिक्षक से वसूली करवाने के आरोप

Update: 2019-06-25 03:49 GMT
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शासन स्तर से स्पष्ट आदेश है कि किसी भी अध्यापक को किसी भी तरह से दूसरे विद्यालय में संबद्ध न किया जाये, लेकिन यूपी के फूलपुर में खंड शिक्षा विभाग भारी सुविधा शुल्क लेकर मनमाने तरीके से शिक्षकों को संबद्ध कर रहा है...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश का बेसिक शिक्षा विभाग पूरी तरह बदहाल है और अधिकारियों की कमाई का अड्डा बन गया है। अधिकारियों द्वारा एक और प्रदेश सरकार के शासनादेशों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं, वहीं उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। इस विभाग में पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जा रहा है, बल्कि कहां से पैसा वसूला जा सकता है इस पर ध्यान अधिक है। इसके लिए शिक्षकों की मनमानी तैनाती, मनमाने तबादले और उनसे मनमाने कार्य लिए जा रहे हैं।

न्यायालय एक से अधिक बार कह चुका है कि संविधान के अनुच्छेद 21 (4) एवं अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा पाने का मूल अधिकार है। अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना राज्य का वैधानिक दायित्व है। इसके मद्देनजर अध्यापकों को गैर शैक्षणिक कार्य में नहीं लगाया जा सकता। अपवाद रूप में उनसे जनगणना, चुनाव ड्यूटी या आपदा के समय कार्य लिए जा सकते हैं।

प्रदेश में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के दयनीय स्थिति को लेकर उच्चतम न्यायालय और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणियाँ की हैं, मगर बेसिक शिक्षा विभाग बदहाल स्कूलों के प्रति गंभीर नहीं है। सभी ज़िलों में कई ऐसे विद्यालय हैं, जो बदहाल हैं।

इनमें पढ़ने वाले बच्चों के साथ अनहोनी की आशंका हर समय रहती है। जिले के बदहाल विद्यालयों बच्चों का जीवन सुरक्षित नहीं है। विद्यालयों में शौचालय आदि भी सही स्थिति में नहीं है। कोढ़ में खाज विभागीय अधिकारियों द्वारा मनमाने ढंग से अध्यापकों को गैर शिक्षण कार्यों में तैनात करना है, जिससे पठन पाठन गंभीरता से प्रभावित हो रहा है।

उत्तर प्रदेश में 1950 रुपये प्रति बच्चा/माह खर्च करती है सरकार। प्रदेश में 1.98 लाख प्राइमरी, अपर प्राइमरी स्कूल हैं, लेकिन अधिकारियों द्वारा शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा दूसरी सरकारी और विभागीय जिम्मेदारियों में ज्यादा उलझाए रखा जाता है। उनकी तैनातियां घरों से दूर की जाती हैं और तबादले के लिए घूस देनी पड़ती है।

सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर बेहद खराब होना है। पांचवीं क्लास के 57 फीसदी बच्चे कक्षा तीन की किताब नहीं पढ़ सकते। आठवीं के 75 फीसदी बच्चों को गुणा-भाग करना तक नहीं आता। यह स्थिति पूरे प्रदेश के प्रत्येक विकास खंडों और तहसीलों में है।

उदाहरण के लिए प्रयागराज के फ़ूलपुर तहसील को ही लें तो आरोप है कि खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय नियम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए दिन रात इसी तरह के कार्यों में संलिप्त हैं, जिससे पठन पठन प्रभावित हो।

फूलपुर ब्लाक में पूर्व माध्यमिक विद्यालय बगई खुर्द के एक अध्यापक की पढ़ाई से ड्यूटी हटाकर यहां की खंड शिक्षा अधिकारी ने अपने कार्यालय में लगा रखा है, जबकि कानून भी है और शासन स्तर पर आदेश जारी किया गया है कि किसी भी अध्यापक की ड्यूटी शिक्षण कार्य के अलावा अन्य जगह नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन आरोप है कि यहां बगई खुर्द के इस अध्यापक से बिल बनवाने का कार्य कराया जाता है और वह खंड शिक्षा अधिकारी के लिए वसूली का कार्य करता है।

यह अध्यापक कभी निरीक्षण के नाम पर, कभी बकाया वेतन के भुगतान के नाम पर, कभी एरियर के नाम पर अध्यापकों से वसूली करता है और खंड शिक्षा अधिकारी को देता है। इस अध्यापक के नाम पर वीआरसी का चेक काटकर उससे नकद राशि ले ली जाती है और आरोप है कि उससे खंड शिक्षा अधिकारी अपने निजी वाहन में डीजल भरवाते हैं।

यह भी आरोप है कि एक विद्यालय में मृतक आश्रित कोटे में नियुक्त चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी खंड शिक्षा अधिकारी का निजी वाहन चलाता है और उससे खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय में आती है। शिक्षक संघ का जो पदाधिकारी इसका विरोध करता है उसके खिलाफ षड्यंत्र करके उसे दंडित किया जाता है। इन सारे आरोपों की शिकायत मुख्यमंत्री से लेकर शासन के स्तर के अधिकारियों से की गई है, जिस पर जांच कर के बीएसए प्रयागराज से आख्या मांगी गयी है।

विकास खंड फूलपुर में प्राथमिक शिक्षा पूरी चौपट हो गई है। यहां की खंड शिक्षा विभाग की धन उगाही नीति के कारण शासन की नीति का न तो पालन हो रहा है न ही शिक्षा के स्तर में कोई सुधार। शासन स्तर से स्पष्ट आदेश है कि किसी भी अध्यापक को किसी भी तरह से दूसरे विद्यालय में संबद्ध न किया जाये, लेकिन यहां खंड शिक्षा विभाग भारी सुविधा शुल्क लेकर मनमाने तरीके से शिक्षकों को संबद्ध कर रहा है।

उदाहरण के लिए नंदौ के एक अध्यापक को बगई कला और हंसराज पुर के एक अध्यापक को प्राइमरी स्कूल बाबूगंज में संबद्ध किया गया है, जबकि दोनों विद्यालयों में पर्याप्त मात्रा में अध्यापक पहले से ही है। दो बरस से एकल चल रहे पूर्व माध्यमिक विद्यालय अतरौरा तथा मिश्रापुर में कोई व्यवस्था नहीं की गई, जिससे वहां की पढ़ाई चौपट हो गई है।

खंड शिक्षा अधिकारी पर यह भी आरोप है कि वह इलाहाबाद में ही पहले शिक्षक के पद पर कार्यरत थीं, बाद में स्थाई पता बदलकर यहीं पर एबीएसए के पद पर नियुक्ति पा गईं, ताकि जिला न बदल सके। इन सभी आरोपों की शिकायत पत्र मुख्यमंत्री से लेकर शासन स्तर के अधिकारियों से की गई है और जांच की मांग की गई हैं।

बेसिक शिक्षा संवर्ग का गठन होगा

इस बीच योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग में तैनाती, पदोन्नति, स्थानांतरण और सेवा से जुड़े मामलों के लिए बेसिक शिक्षा संवर्ग का गठन करने का निर्णय लिया है। इसके पीछे सरकार मानना है कि बेसिक शिक्षा विभाग में तैनाती, पदोन्नति, स्थानांतरण और सेवा संबंधी प्रकरणों के निस्तारण में काफी विलंब होता है।

शिक्षकों और कर्मचारियों की पदोन्नति और सेवा संबंधी हजारों मामले अभी भी लटके पड़े हैं। उनके तबादले करने के लिए भी विभाग से लेकर सरकार तक को मशक्कत करनी पड़ती है। वर्तमान में संचालित शिक्षा सेवा संवर्ग में शिक्षकों और कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान समय पर नहीं हो रहा है।

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