दलित युवक को इसलिए मार डाला कि वह घोड़े पर चढ़कर गांव से निकलता था बाहर

Update: 2018-03-30 22:13 GMT

90 फीसदी सवर्ण बाहुल्य टिम्बी गांव में दबंग जाति को नहीं हो रहा था बर्दाश्त दलित का घोड़े पर बैठना, कई बार धमका चुके थे परिवार को कि घोड़ा नहीं बेचा तो बेटे की कर देंगे हत्या

गुजरात। मोदी जी का गृहराज्य गुजरात दलितों और मुस्लिमों के उत्पीड़न के लिए हमेशा से चर्चा का केंद्रबिंदु रहता आया है। एक बार फिर दलित उत्पीड़न वो भी निर्ममता से हत्या के चलते यह चर्चा में है, वो भी केवल इसलिए क्योंकि दलित युवक ने घोड़े की सवारी की थी, जो दबंग सवर्णों को रास नहीं आई और उन्होंने उसे कुचल—कुचलकर मौत के घाट उतार दिया।

यह घटना है गुजरात के भावनगर जिले के उमरेला तहसील स्थित टिम्बी गांव की, जहां एक 21 वर्षीय दलित युवा प्रदीप राठौड़ की घोड़ा रखने के लिए हत्या कर दी गई, क्योंकि ऊंची जाति के लोगों को लग रहा था कि एक दलित के घोड़े की सवारी करने पर उनकी नाक नीचे हो रही है। प्रदीप को उस समय मारा गया जब वह घुड़सवारी कर रहा था। गौरतलब है कि 3000 की आबादी वाले इस गांव में मात्र 10 फीसदी दलित रहते हैं, बाकी 90 फीसदी आबादी सवर्णों की है।

अगड़ों ने प्रदीप के परिजनों को धमकी दी थी कि वह उसे घुड़सवारी करने से रोक लें, नहीं तो कुछ भी अनहोनी हो सकती है। प्रदीप ने दो महीने पहले ही घोड़ा खरीदा था, जिसे बेचने के लिए गांव के सवर्ण उस पर लगातार दबाव बना रहे थे। जब प्रदीप ने सवर्ण जाति के दबंगों की बात नहीं मानी तो उसकी निर्ममता से हत्या कर उसकी लाश फेंक दी गई।

मृतक दलित युवक प्रदीप के पिता कालूभाई राठौड़ बताते हैं, दो महीने पहले जब प्रदीप ने घोड़ा खरीदा था तो गांव के सवर्णों ने धमकाया था कि वह अपना घोड़ा बेच दे नहीं तो वह उसकी जान ले लेंगे और कल 29 मार्च की देर रात उन्होंने प्रदीप की जान ले ली, क्योंकि उन्हें प्रदीप का घुड़सवारी करना अपनी बेइज्जती महसूस हो रही थी कि कैसे एक दलित घुड़सवारी कर सकता है। कालूभाई कहते हैं ग्रामीणों द्वारा लगातार दी जा रही धमकियों के बाद मैंने घोड़े को बेचने का इरादा भी कर लिया था, मगर जब तक मैं ऐसा कर पाता उससे पहले ही दबंगों ने मेरे बेटे की जान ले ली।

शुरुआती छानबीन में पुलिस ने भी कहा कि घोड़ा पालने और घुड़सवारी करने के कारण ही दलित युवा का कत्ल किया गया। दलित युवा की मौत के बाद इलाके में तनाव का माहौल व्याप्त है। पुलिस ने शुरुआती छानबीन के बाद उंची जाति के तीन लोगों को हिरासत में ले लिया है और उनसे पूछताछ जारी है। मामले की जांच के लिए पुलिस ने अपराध शाखा से भी सहयोग मांगा है।

मृतक प्रदीप के पिता कालूभाई कहते हैं मेरा बेटा घोड़े को लेकर खेत पर गया था और उसने कहा था कि वह रात का खाना वापस आकर सबके साथ आएगा। जब देर रात तक वह लौटकर वापस नहीं आया तो हमने उसे खोजना शुरू किया। काफी खोजने के बाद वह हमें अपने खेत के पास वाली सड़क पर मृत मिला, उसे बुरी तरह कुचलकर मारा गया था। प्रदीप से थोड़ी दूरी पर घोड़ा भी मृत हालत में मिला। अगड़ी जाति के लोगों ने घोड़े को भी नहीं बख्शा।

बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद से ही प्रदीप खेतों में काम करने में अपने पिता की मदद करता था। घर के कामों में मदद के लिए ही इस दलित परिवार ने घोड़ा खरीदा था और अगड़ी जाति के लोगों ने इसे इज्जत—रसूख से जोड़ते हुए अपनी प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े करना मान लिया। मान लिया कि एक दलित घोड़ा कैसे रख सकता है, क्योंकि वह तो अगड़ी जातियों की शान होता है। उसे पालने और उस पर घुड़सवारी करने का अधिकार सिर्फ अगड़ी जातियों को है।

3000 की आबादी वाले टिम्बी गांव में मात्र 10 प्रतिशत दलित रहते हैं, बाकी अगड़ी जातियों का वर्चस्व है। निर्ममता से कुचले गए प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए भावनगर सिविल अस्पलात भेज दिया गया, मगर प्रदीप के पिता ने कहा है कि जब तक उनके बेटे के अपराधियों की पहचान कर पुलिस उन्हें अपनी गिरफ्त में नहीं ले लेती तब तक वह प्रदीप का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे, न ही उसकी बॉडी को अपने घर पर लेकर जाएंगे।

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