बेमियादी बंद से चायबागानों में 150 करोड़ का नुकसान

Update: 2017-08-14 23:23 GMT

60 दिन के बंद के चलते दार्जिलिंग चाय विश्व बाजार में नहीं पहुंची, जिससे न केवल मालिकों और मजदूरों  बल्कि देश की आर्थिकी का भी अच्छा—खासा हुआ नुकसान

कालिम्पोंग, दार्जिलिंग। 'पृथक गोरखालैण्ड के लिए चले अनिश्चितकालीन बंद के चलते चाय उद्योग लगभग खत्म हो गया है। बंद अगर खत्म भी हो जाता है तो चाय उद्योग को फिर से सुचारू रूप से पहले की स्थिति में लाने में डेढ़ महीने का समय लग जाएगा। बंद के कारण बागानों से चायपत्ती नहीं तोड़ी गई हैं, जिस कारण उन्हें छांटने की जरूरत पड़ेगी। इतने समय में चायबागान की छंटाई नहीं होने के कारण वह इस स्थिति में आ गए हैं कि उनमें आसानी से कोई घुस भी नहीं पाएगा।'

यह कहना है दार्जिलिंग इंडियन टी एसोसिएशन के सचिव मोहन छेत्री का।

मोटे तौर पर एक आंकड़े के मुताबिक अब तक अनिश्चितकालीन बंद से चायबागानों में ही सिर्फ 150 करोड़ का नुकसान हो चुका है।

गौरतलब है कि पृथक गोरखालैंड के लिए चल रहे अनिश्चितकालीन बंद को 13 अगस्त को दो महीने पूरे हो गये हैं। इस दौरान वहां के 87 चाय बागान पूरी तरह से ठप्प पड़े हैं, क्योंकि बंद के बतौर दैनिक मजदूरों ने भी गोरखालैंड की मांग के समर्थन में बागानों में काम करना बंद कर दिया था।

चायबागान मालिकों की मानें तो वे कहते हैं कि यह भारत में ही नहीं विश्व के चायबागान इतिहास की पहली घटना है, जब संगठित मजदूर इतने लंबे समय तक बागानों से दूर रहे। चाय प्रबंधन का कहना है कि विश्व बाजार से विदेशी मुद्रा देश में लाने के लिए चाय एक मुख्य भूमिका निभाती है, क्योंकि यहां की चाय की बाहर के देशों में बहुत डिमांड है, मगर इस बार 60 दिन के बंद के चलते दार्जिलिंग चाय विश्व बाजार में नहीं पहुंची, जिससे न केवल हमारा और मजदूरों का बल्कि देश को भी भारी नुकसान हुआ है।

मई से सितम्बर का महीना चाय के लिए सबसे मुफीद माना जाता है, मगर दो महीने चाय बागान बंद रहने के कारण उत्पादन क्षमता में काफी कमी आयी है। हालांकि नेपाल की चाय की भी विश्व बाजार में काफी मांग है और बंद के कारण लोग नेपाली चाय पी सकते हैं, मगर दार्जिलिंग इंडियन टी एसोसिएशन की मानें तो नेपाली चाय कभी भी दार्जिलिंग चाय का विकल्प नहीं बन सकती। दार्जिलिंग टी का विश्व में अपना एक अलग ब्रांड है।

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