दिल्ली सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरे कलाकार

Update: 2017-12-05 15:54 GMT

कलाकारों ने जताया सख्त ऐतराज, कहा सरकार सुविधाएं दे, विषय तय करने पर आदेश नहीं

जनज्वार, दिल्ली। दिल्ली सरकार के विरोध में मंडी हाउस पर श्री राम सेन्टर के बाहर 4 दिसंबर को कलाकारों ने प्रदर्शन किए और मांग रखी कि कला और कलाकारों को गुलाम ना बनाया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि हम सरकार के तय विषय पर नाटक क्यों करें, हमें सरकार सुविधा दे, विषय न सुझाए।

गौरतलब है कि दिल्ली साहित्य कला परिषद ने बीते दिनों एक विज्ञापन के जरिए युवा नाट्य समारोह को लेकर एक गाइडलाइन जारी की थी। गाइडलाइन में सरकार ने राजनीतिक विषय का निर्धारण किया गया था जैसे विवेकानंद का देश, सर्वधर्म सद्भाव ..आदि आदि। इसके बाद रंगजगत में इसका विरोध शुरू हुआ।

थिएटर कार्यकर्ता और समकालीन रंगमंच पत्रिका के संपादक राजेश चंद्रा का कहना है कि साहित्य कला परिषद पहले भी यह काम करते आयी है। नाटक एवं कहानियों का सुझाव देना अलग बात है, लेकिन विषय निर्धारित करना रंगमंच को कठपुतली बनाना है। सरकारें जनमाध्यमों का प्रयोग अपने नीतियों और विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए करते आई हैं।

सांझा संवाद थिएटर से जुड़े विक्रांत का कहना है कि हमें सरकार के एजेंडे की जरूरत नहीं है कि कौन सा नाटक करें और कौन सा नहीं। हम समझदार हैं, हमें पता है कि किस विषय पर नाटक करना चाहिए। यहाँ दूसरी महत्वपूर्ण जरूरतें है - ऑडिटोरियम नहीं है, रिहर्सल के लिए जगह नहीं है। सरकार को एजेंडे की बजाय जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए।

थिएटर कलाकार अपेक्षा मांग करती हैं कि सरकार नए ऑडिटोरियम बनाये, जिससे कला को ज्यादा स्थान मिल सके, बढ़ावा मिले। एक अन्य थियेटर कलाकार का कहना था कि साहित्य कला परिषद में नाटकों के चयन को लेकर पारदर्शिता होनी चाहिए। यहाँ रिहर्सल के लिए जगह नहीं है। लोग पार्क में बैठकर अभ्यास करते हैं, बारिश के मौसम में वे कहां जाएंगे?

एक ऑडिटोरियम का किराया कम से कम 50 हजार से 1 लाख तक है। एक ग्रुप को एक नाटक करने के लिए 1 लाख रुपये अगर ऑडिटोरियम को दिया जाए तो वह नाटक कैसे कर पायेगा, सरकार सब्सिडी नहीं देना चाहती है। कल्चर के नाम पर पूरा बाज़ार फैल गया है। कला का बाजारीकरण हो गया है।

थिएटर कलाकार किरण की राय में थिएटर इंडिपेंडेंट होना चाहिए। सरकार ने सीमा तय कर दी है कि आपको इसी दायरे में काम करना चाहिए, ये गलत है। विचारधारा थोपी नहीं जानी चाहिए। हम किस मुद्दे पर नाटक करना चाहते हैं, वो हम तय करेंगे।

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