डीयू के छात्र ने पूछा किसके आदेश से रोक रही पुलिस CAA के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को
कहा जाता है विरोध प्रदर्शन असहमति का संवैधानिक अधिकार है, तो फिर क्यों रोका जा रहा है CAA के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को, पढ़िये दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अभिषेक आजाद की टिप्पणी
एनआरसी और नागरिकता संसोधन अधिनियम के खिलाफ आंदोलन का दायरा बर्बर दमन के बावजूद बढ़ता ही जा रहा है। मीडिया पर सेंसरशिप थोपी जा रही है। सभी न्यूज़ चैनलों को इस आंदोलन के संबंध में सरकार की तरफ से दो बार एडवाईजरी जारी हो चुकी है। पूरे देश में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों की गिरफ्तारियां हो रही हैं, उन पर लाठियां बरसाई जा रही है।
इंटरनेट, सड़क और मेट्रो स्टेशनों को बंद किया जा रहा है। धारा 144 लगाकर लोगों को एक जगह इकट्ठा होने से रोका जा रहा है। इसके बावजूद पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहा।
इस पूरे विरोध प्रदर्शन में सरकार द्वारा संवैधानिक और नागरिक अधिकारों का हनन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। एनआरसी और नागरिकता संसोधन विधेयक को लेकर असहमति हो सकती है, किन्तु विरोध प्रदर्शन करना एक संवैधानिक अधिकार है और इस बात पर कोई असहमति नहीं होनी चाहिए।
संविधान का अनुच्छेद 19 (1) सभी नागरिकों को (ख) शांतिपूर्वक और निहत्थे सम्मेलन का एवं (घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। किन्तु सरकार मनमाने ढंग से धारा 144 लगाकर प्रदर्शनकारियों को एक जगह इकठ्ठा होने से रोक रही है, उन्हें गिरफ्तार कर रही है। एनआरसी और नागरिकता संसोधन अधिनियम पर बहस से पहले असहमति के संवैधानिक अधिकार पर बहस होनी चाहिए।
सरकार द्वारा असहमति और विरोध प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकार का अतिक्रमण, संविधान और विधि के शासन की खुली अवज्ञा है। कल 20 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों को जंतर मंतर तक शांतिपूर्ण मार्च की इज़ाज़त नहीं दी गयी। पुलिस बार-बार यही कहती रही कि ऊपर से आदेश नहीं है, किन्तु उसने यह नहीं बताया कि "आदेश क्यों नहीं है?"
इस प्रदर्शन में नागरिक समाज का एक बड़ा हिस्सा अपनी असहमति के संवैधानिक अधिकार को बचाने लिये संघर्ष कर रहा है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी एनआरसी और नागरिकता संसोधन विधेयक पर कोई स्पष्ट राय नहीं है, किन्तु वे प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार प्रदर्शनकारियों की असहमति का दमन कर रही है। पुलिस की बर्बरता और सरकार की तानाशाही के खिलाफ प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। देश के सभी प्रबुद्ध नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाने के लिये सड़कों पर हैं।
इस आंदोलन की सबसे अच्छी बात यह है कि इसका नेतृत्व छात्रों के हाथ में है। एक बहुत लम्बे अंतराल के बाद देश में छात्रों का कोई देशव्यापी आंदोलन हो रहा है। छात्रों की राजनीतिक सक्रियता लोकतंत्र के लिये अच्छी बात है। इस छात्र आंदोलन से देश की कई उम्मीदें जुड़ी हैं।
(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं।)