श्रम कानून खत्म करने पर आठ पार्टियों ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र लिखा, कहा गुलाम नहीं मजदूर

Update: 2020-05-10 07:09 GMT

पार्टियों का प्रमुख रूप से कहना है कि भारतीय संविधान के ना तहत कामगार गुलाम नहीं है। ऐसी स्थिति में उनके अधिकारों को कम करना ना केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि संविधान को कमजोर करना भी है...

जनज्वार, दिल्ली। देश में कोरोना वायरस का कहर जारी है। कोरोना के कारण देश को आर्थिक रूप से काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। जिसके प्रभाव मजदूरों के ऊपर सबसे ज्यादा पड़ा है । इसी बीच आर्थिक पतन से जूझने के बहाने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाब कर दिए है जिसकी आलोचना देशभर में की जा रही है।

स दौरान कई पार्टियों ने इन कानूनों को निलंबित करने और सरकारों की आलोचना करते हुए श्रम कानून कमजोर करने का आरोप लगाते हुए सात राजनीति क पार्टियों ने सयुंक्त रुप से राष्ट्रपित रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है।इन पार्टियों ने भारत के राष्ट्रपित को पत्र लिखकर भारतीय श्रमजीवी वर्ग की सुरक्षा, कल्याण, आजीविका और भविष्य पर चिंता जताते हुए श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को संवैधानिक विरोधी करार दिया है।

पार्टियों का प्रमुख रूप से कहना है कि भारतीय संविधान के ना तहत कामगार गुलाम नहीं है। ऐसी स्थिति में उनके अधिकारों को कम करना ना केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि संविधान को कमजोर करना भी है।

जिन राजनीतिक नेताओं ने राष्ट्रपति कोविद को पत्र लिखा उनमें मुख्यत माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा महासचिव डी. राजा, भाकपा (माले) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक महासचिव देबब्रत बिस्वास, रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी महासचिव मनोज भट्टाचार्य, राजद सांसद मनोज झा, काची तोल तिरुमावलावन के अध्यक्ष विदुतलाई चिरुताइगल और लोकतांत्रिक जनता दल नेता शरद यादव शामिल है।

मामले पर जनज्वार से बात करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य कविता कृष्णन ने बताया कि कई राज्यों के द्वारा कोविड-19 की आड़ में कमजोर किया जा रहा है। ये समय मजदूरों के साथ खड़े होने का है। कोरोनावायरस के कारण इन मजदूरों के पास ना ही रोजगार बच पाय है और ना ही खाने के लिए खाना ऐसे में सरकारें इनका इस्तेमाल अपने हित में करने के लिए मजदूरों के अधिकारों का हनन कर रही है। जो की पूरी तरह से गलत है।

न नेताओं ने पत्र में कहा कि श्रम कानूनों को इस तरह से कमजोर करना संविधान का उल्लंघन है। साथ ही कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। ऐसे में श्रम कानूनों में बदलाव करना न केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि निष्प्रभावी बनाना भी है। पत्र में कहा गया है कि इन कानूनों के लागू होने के बाद भारत एक आधुनिक लोकतांत्रिक गणराज्य के बजाय मध्ययुगीन दासता की तरफ बढ़ रहा है।

त्तर प्रदेश ने फैक्ट्री, बिजनेस, प्रतिष्ठान और उद्योगों को श्रम कानून के तीन प्रावधानों और एक अन्य कानून को छोड़कर सभी प्रावधानों से तीन साल के लिए छूट दे दी है। मध्य प्रदेश सरकार ने सभी प्रतिष्ठानों को सभी श्रम कानूनों से एक हजार दिवस के लिए सभी जवाबदेही से मुक्त कर दिया है।

न राजनीतिक दलों ने अपने पत्र में यह भी कहा कि जिन्होंने अपनी आजीविक खोई है, सरकार ने उनकी मदद के लिए बहुत कम प्रयास किया है। जबसे लॉकडाउन की शुरुआत हुई है, 14 करोड़ लोग अपना रोजगार खो चुके हैं।

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