पर्यावरण संरक्षण नहीं किसी भी राज्य की प्राथमिकता में

Update: 2019-07-14 04:57 GMT

सभी राज्यों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ठीक काम नहीं करते और इनके लिए बने मानकों का अनुपालन नहीं कर पाते। सीवेज को या तो आधा-अधूरा साफ़ किया जाता है या फिर बिलकुल साफ़ नहीं किया जाता और ऐसे ही नदियों में मिला दिया जाता है…

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

रेक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने अपने यहां के पर्यावरण के हालात पर जो रिपोर्ट पेश की है उसके अनुसार जल संसाधन प्रदूषित हैं, वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या है, भूजल की गहराई बढ़ती जा रही है। प्रदूषण का असर मानव स्वास्थ्य के साथ साथ जन्तुओं और वनस्पतियों पर पड़ रहा है। एनजीटी के आदेशों के बाद ही राज्यों की नींद खुलती है और फिर याचिका से सम्बंधित आधा-अधूरा काम करते हैं।

नजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में केंद्र और राज्यों के नकारात्मक रवैये से परेशान होकर मार्च से मई 2019 के बीच सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने को कहा। यहाँ यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि उस समय पूरे देश की व्यवस्था चुनावों की तैयारी में व्यस्त थी, फिर भी सभी मुख्य सचिव आये और एनजीटी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

भी मुख्य सचिवों ने अपने-अपने राज्यों में पर्यावरण संरक्षण के उपायों की जानकारी दी। इसमें ठोस कचरा, अस्पतालों का कचरा और प्लास्टिक कचरा का प्रबंधन, प्रदूषित नदी खंड, वायु प्रदूषण, औद्योगिक क्षेत्रों से प्रदूषण, बालू का अवैध खनन की जानकारी दी। इसके अतिरिक्त, एनजीटी के पहले के आदेश के अनुसार हरेक राज्य में चुनिन्दा शहर और गांव के बारे में बताया, जिन्हें पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में मॉडल के तौर पर विकसित करना है।

नजीटी ने 11 जून, 2019 को सभी राज्यों से आयी जानकारी की समीक्षा की। इस समीक्षा के बाद देश के पर्यावरण का आकलन करने पर पता चलता है कि सही मायने में पर्यावरण संरक्षण किसी भी राज्य के लिए प्राथमिकता नहीं है।

कोई भी राज्य अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में कोई ठोस काम नहीं कर रहा है। लगभग सभी राज्यों में शहरी कचरे का निपटान अवैध जगहों पर किया जा रहा है और इस जगह के कचरे से भरने के बाद कचरे से निजात पाने की कोई योजना नहीं है। इस कारण लैंडफिल साईट के कचरे से भरने के बाद भी कचरा वहीं जमा रहता है, जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक है और भूमि की बर्बादी भी।

नजीटी के अनुसार कचरे का प्रबंधन और स्वच्छ भारत अभियान एक दूसरे से जुड़े हैं, फिर भी इनका परस्पर सम्बन्ध कहीं नहीं है। देश में 351 प्रदूषित नदी खंड हैं, इनके लिए राज्यों ने आधी-अधूरी योजना बनाई है। इस योजना से न तो यह पता चलता है कि नदी को किस स्तर तक साफ़ करना है और न ही यह कि इस कार्य की अवधि क्या होगी।

भी राज्यों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ठीक काम नहीं करते और इनके लिए बने मानकों का अनुपालन नहीं कर पाते। सीवेज को या तो आधा-अधूरा साफ़ किया जाता है या फिर बिलकुल साफ़ नहीं किया जाता और ऐसे ही नदियों में मिला दिया जाता है। यदि नदियों में सीवेज नहीं मिलता तो फिर इसे ऐसे ही जमीन पर बहा दिया जाता है।

देश में वायु प्रदूषण की दृष्टि से सर्वाधिक प्रदूषित 102 शहरों के लिए जोर शोर से चलाये गए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के बारे में एनजीटी ने कहा है कि इसकी कार्य योजना प्रभावी नहीं है और कोई भी कार्य जमीनी स्तर पर नजर नहीं आता। अधिकतर शहरों में कचरा जलता रहता है, जिससे वायु प्रदूषण होता है।

राज्यों में स्थापित किये गए वायु गुणवत्ता मापने के मॉनिटरिंग नेटवर्क अपर्याप्त हैं। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम का प्रभाव ऐसा पड़ा है कि इसमें शामिल किये गए देश के 102 शहरों के अतिरिक्त जितने शहर हैं, वहां वायु प्रदूषण के मॉनिटरिंग की योजना ही नहीं है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण की गंभीर समस्या देश के अनेक औद्योगिक क्षेत्रों में है, इनमें में 100 क्षेत्रों में तो प्रदूषण बहुत अधिक है। इन क्षेत्रों में प्रदूषण कम करने के लिए आनन-फानन में कार्य योजनायें तैयार कर ली गयी हैं, पर इनका कार्यान्वयन कहीं नहीं किया जा रहा है। राज्यों में स्थापित किये गए औद्योगिक एफ़्फ़्लुएन्त ट्रीटमेंट प्लांट और सीईटीपी मानकों का पालन करने में नाकाम रहे हैं, फिर भी राज्य अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर रहे हैं और न ही इन्हें दण्डित कर रहे हैं।

गभग हरेक राज्य में बालू का अवैध खनन जोरों से हो रहा है, जिससे नदियों को नुकसान पहुँच रहा है और राज्यों को राजस्व की हानि हो रही है। अधिकतर राज्य प्रदूषण करने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं करते और ना ही कोई आर्थिक जुर्माना वसूल रहे हैं।

नजीटी के अनुसार पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने नहीं किया है, और प्रदूषण फैलाने वाले खुलेआम प्रदूषण फैला रहे हैं। हरेक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने अपने यहाँ के पर्यावरण के हालात पर जो रिपोर्ट पेश किया है उसके अनुसार जल संसाधन प्रदूषित हैं, वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या है, भूजल की गहराई बढ़ती जा रही है। प्रदूषण का असर मानव स्वास्थ्य के साथ साथ जन्तुओं और वनस्पतियों पर पड़ रहा है। एनजीटी के आदेशों के बाद ही राज्यों की नींद खुलती है और फिर याचिका से सम्बंधित आधा-अधूरा काम करते हैं।

नजीटी ने अपने निर्देश में सभी राज्यों को प्रयावरण संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं और फिर इसके अनुपालन पर चर्चा करने के लिए जुलाई से सितम्बर के बीच फिर से सभी प्रमुख सचिवों को व्यक्तिगत तौर पर एनजीटी में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।

स निर्देश के अनुसार हरेक राज्य को तीन शहर और तीन कस्बों को पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में मॉडल शहर/क़स्बा का चयन करने का निर्देश दिया है। इसी तरह हरेक जिले में तीन गाँव का भी चयन किया जाएगा। एनजीटी ने वर्षा जल संरक्षण और जल संसाधनों के संरक्षण से सम्बंधित निर्देश भी दिए हैं। पर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में देश के नकारा संस्थान कुछ करेंगे?

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