लोकतंत्र का सबसे बड़ा पहलू पारदर्शिता है, पर अब चुनावों में पारदर्शिता गायब हो चुकी है। लोग वोट के लिए कहीं बटन दबाते हैं, पर कमल ही खिलता है, वन टाइम प्रोग्रामेबल ईवीएम प्रोग्राम से हटकर बर्ताव करता है और भी बहुत कुछ….
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार
30 मई को दिल्ली के जंतर-मंतर रोड पर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने मिलकर चुनावों में ईवीएम के दुरुपयोग के विरोध में एक सभा का आयोजन किया। ईवीएम का विरोध राजनीतिक पार्टियां भी करती रहीं हैं, मगर फिर सबकुछ शांत हो जाता है।
ईवीएम या इसी तरह का कोई भी इलेक्ट्रोनिक उपकरण के डेटा कभी भी नहीं बदले जा सकते, यह तो कोई भी नहीं मानेगा। मगर इन चुनावों में तो नयी समस्याएं थीं – ईवीएम किसी अधिकारी के घर से मिल रहे थे, किसी विधायक के स्टोर में पड़े थे, बिना सिक्योरिटी के इवीएम लादकर ट्रकों से भेजा जा रहा था और भी बहुत कुछ।
इसी विरोध सभा में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने चुनावों की खामियों और महिलाओं के मुद्दे पर विस्तार से अपनी बात रखी। उनके अनुसार लोकतंत्र का सबसे बड़ा पहलू पारदर्शिता है, पर अब चुनावों में पारदर्शिता गायब हो चुकी है। लोग वोट के लिए कहीं बटन दबाते हैं, पर कमल ही खिलता है, वन टाइम प्रोग्रामेबल ईवीएम प्रोग्राम से हटकर बर्ताव करता है और भी बहुत कुछ।
सबसे बड़ी चीज है, विपक्ष की इतनी बड़ी हार और बीजेपी की इतनी बड़ी जीत के बाद भी सन्नाटा पसरा है। अब से पहले ऐसा नहीं हुआ, यह निश्चित तौर पर तानाशाही हुकूमत की धमक का संकेत है।
इस पसरे सन्नाटे को तोड़ने की जरूरी है, राजनीतिक पार्टियां भी शांत हो गयीं हैं, ऐसे में छोटी ही सही पर प्रभावी विरोध की आवाजें उठाते सामाजिक संगठन एक शुरुआत कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसी आवाजें लगातार बढेंगी और दूर तक फैलेंगी।