देवरिया कांड में जांच दल ने किया खुलासा, शोषण का हरम बन चुका था बालिका संरक्षण गृह
गिरिजा त्रिपाठी राजनेताओं तथा प्रशासन से अपने सम्पर्कों के बल पर पुलिस तथा अफसरों से कतई नहीं डरती थीं। संरक्षण गृह के 2017 में ब्लैक लिस्ट हो जाने के बाद भी उन्होंने 5 सरकारी योजनाएं प्राप्त कीं। वे एक बेहद ताकतवर और भ्रष्ट महिला थीं...
जनज्वार। देवरिया बालिका संरक्षण गृह की घटना की जांच के लिए इलाहाबाद से 5 सदस्यीय जांच दल घटनास्थल पर पहुंचा। जांच दल में स्त्री मुक्ति संगठन की डॉ. निधि मिश्रा, पीयूसीएल के इलाहाबाद महासचिव उत्पला शुक्ल, घरेलू कामगार महिला संगठन की प्रभा, सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार सुशील मानव और नौजवान भारत सभा के पवन यादव शामिल रहे। जांच दल 13 अगस्त को देवरिया गया और पीड़ितों के परिजनों के अलावा अन्य लोगों से बातचीत के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की।
जांच दल ने पाया कि संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी बाल कल्याण समिति, सीडब्लूसी को कोई महत्व नहीं देती थीं। वे बिना निरीक्षण के ही उनसे कागजों पर हस्ताक्षर करा लेती थीं। अनुमति से अधिक लड़कियों को आश्रय गृह में रखती थीं, अनुमति समाप्त हो जाने के बाद भी उन्होंने उन्हें रिहा नहीं होने दिया।
यही नहीं गिरिजा त्रिपाठी राजनेताओं तथा प्रशासन से अपने सम्पर्कों के बल पर पुलिस तथा अफसरों से कतई नहीं डरती थीं। संरक्षण गृह के 2017 में ब्लैक लिस्ट हो जाने के बाद भी उन्होंने 5 सरकारी योजनाएं प्राप्त कीं। वे एक बेहद ताकतवर तथा भ्रष्ट महिला थीं।
प्रशासन और पुलिस, डीएम, डीपीओ, डीसीपीओ, व एसपी, द्वारा पर्यवेक्षण व उनकी कार्यपद्धत्ति त्रुटिपूर्ण तथा संदेहास्पद रही है और कानून का अमल नहीं किया गया है। संवासिनियों के कल्याण तथा सुरक्षा का आश्रय गृह में कभी कोई ख्याल नहीं रखा गया है, उनके शोषण के प्रति सभी लापरवाह रहे। ये सब उनकी संलिप्तता को मजबूत इशारा करता है; उन्होंने लगातार सीडब्ल्यूसी की अनदेखी की और उसे मौलिक सुविधाएं भी प्रदान नहीं कीं।
संरक्षण गृह का लाइसेंस रद्द किए जाने के बाद भी वहां 100 संवासिनियों का पंजीकरण किया गया, जबकि लाइसेंस समाप्त होने के समय जो संवासिनियां मौजूद थीं, उन्हें सुरक्षित अन्यत्र भेजा जाना चाहिए था।
संरक्षण गृह के प्रबंधन में बहुत अनियमितताएं थीं। वह जेजे एक्ट 2015 के अनुसार ‘बाल संरक्षण संस्थान’ की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता; सुधार गृह व दत्तक केन्द्र भी इसी जगह खोले गए; उसमें अनुमति से अधिक संवासिनियों को रखा गया। लड़कों और लड़कियों को एक ही छत के नीचे रखा जाता था। संवासिनियों की मेडिकल जांच व उनकी शिक्षा की कोई सुविधा नहीं थी; उन्हें अपर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार, तेल, साबुन आदि दिया जाता था।
आश्रित लड़कियों से मां विन्ध्यवासिनी गृह व अन्य स्थानों पर भी बर्तन आदि धोने के घरेलू काम कराए जाते थे; पुलिस रात को उन्हें गाड़ियों में बाहर ले जाती थी जो देह व्यापार का संदेह पैदा करता है; गोद लेने की प्रक्रिया भी गैरकानूनी ढंग से की जाती थी।
सीडब्ल्यूसी मात्र रबर स्टैम्प की तरह काम करती रही और उसने अपने कानूनी अधिकारों पर कभी जोर नहीं दिया। वे लड़कियों से मिले बिना/बात किए बिना ही हस्ताक्षर कर देते थे।
सरकार ने सभी अनियमितताओं को होने दिया। उसने डीपीओ, सीडब्ल्यूसी की नियुक्ति में कानून का पालन नहीं किया। गिरिजा त्रिपाठी को कई सरकारी योजनाएं दी गयीं और सरकारी समारोहों में उन्हें अनुचित महत्व दिया जाता था। राज्य सरकार और निदेशक महिला कल्याण विभाग सुश्री रेणुका कुमार, जो 6 साल से इस पर पर हैं को, इन अनियमितताओं का पता तक नहीं चला।
यौन शोषण व देह व्यापार की संभावनाएं काफी ज्यादा हैं जो इस बात से स्पष्ट है कि इन संवासिनियां के साथ वैसे भी इसकी संभावना काफी रही होगी; ये संरक्षण गृह लाइसेंस रद्दीकरण के बाद भी चलता रहा; भाग कर गयी बालिका ने मीडियाकर्मियों के समक्ष यह बात कही कि पुलिस और गाड़ियां आती थी, आदि। इस सबसे अफसरों की संलिप्तता भी नजर आती है।
कानून के प्रावधान में गम्भीर कमियां सामने आयीं क्योंकि जेजे एक्ट 2015 में लड़के व लड़की शिशु को यौन उत्पीड़न, यौन हिंसा व देह व्यापार से सुरक्षित रखने का उसमें कोई अलग से उल्लेख नहीं है।
फैक्ट फाइंडिंग टीम की तरफ से संस्तुति की गई कि इस पूरी घटना की हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ से जांच कराई जाए, जिसमें बाल अधिकार विशेषज्ञ हों, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के वकील हों और सामाजिक वैज्ञानिक हों। रिपोर्ट समयबद्ध रूप से दी जाए।
पिछले 5 साल में गोद लिए गए सभी बच्चों की जांच की जाए। देह व्यापार और यौन शोषण के आरोपों की जांच में सुरक्षित माहौल में सभी संवासिनियों का बयान लिया जाए, चिकित्सकीय जांच की जाए और सभी आरोपियों, उनके साथ षडयंत्र करने वालों और उनके रक्षकों पर केस दर्ज कर तुरंत उन्हें जेल भेजा जाए। मामले को एक हिरासत में बालात्कार के रूप में देखा जाए।
टीम ने मांग की कि अफसरों की संलिप्तता व भूमिका की जांच कर उसे तय किया जाए और इसमें राज्य व जिले के सभी सम्बन्धित वर्तमान व पूर्व अफसरों को शामिल किया जाए। जेजे एक्ट में लड़के व लड़कियों के यौन उत्पीड़न, यौन हिंसा व देह व्यापार से सुरक्षा के लिए प्रावधान जोड़े जाएं।
संरक्षण गृहों में दी जा रही सुविधाओं, उनके अधिकारों और इन सबके उल्लंघनों पर राज्य सरकार एक श्वेत पत्र जारी करे। पीड़ितों के पुनर्वास, रोजगार परक शिक्षा व रोजगार के लिए पैकेज घोषित किया जाए।
जांच की पूरी रिपोर्ट उपलब्ध है और इसे कमिश्नर इलाहाबाद के माध्यम से उ0प्र0 सरकार को भेजा जाएगा।