क्या वाकई कश्मीरी जनता की आकांक्षाओं को समझना चाहती है केंद्र की भाजपा सरकार...
कश्मीर मसले पर बातचीत के लिए पहलकदमी लेने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि खुफिया ब्यूरो के पूर्व निदेशक दिनेश्वर शर्मा को इस मामले में वार्ताकार नियुक्त करना संदेह भी पैदा कर सकता है, लेकिन उन्हें 'कश्मीर के लिए आजादी मांगने वालों' समेत सभी गुटों और व्यक्तियों से बातचीत की पूरी आजादी देना एक अच्छा कदम है।
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की यह घोषणा भी माहौल में उत्साह भर सकती है कि केंद्र जम्मू-कश्मीर के लोगों की आकांक्षाअों को समझना चाहता है।
पूर्व डीजीपी और जे के फोरम फॉर पीस एण्ड टैरीटोरीयल इंटेग्रिटी के प्रेसीडेंट आईडी खजूरिया ने कहा कि आज की दुनिया में किसी भी मसले का हल फौजी ताकत या सामाजिक हिंसा (जिसमें उग्रवादियों की हिंसा और युद्ध भी शामिल है) से नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि दिनेश्वर शर्मा को केन्द्र सरकार की तरफ से वार्ताकार के तौर पर आगे बढ़ाना निश्चित तौर पर स्वागतयोग्य कदम है। दिनेश्वर शर्मा कश्मीर के हालात से अच्छी तरह परिचित हैं। उन्होंने फील्ड अफसर के बतौर काम किया है। इसके साथ ही वे डायरेक्टर इंटेलिजेंस रहे हैं। ऐसे में वे लगातार कश्मीर की हालात पर नज़र बनाए हुए हैं और चीजों को अलग-अलग तरीके से देखते आए हैं।
हमारी मौजूदा दुनिया ऐसे अंतरनिर्भर देशों से मिलकर बनी है जिनके सभी तरह की सामाजिक जरूरतों में साझा हित हैं। यही वजह है कि मौजूदा हालात में ताकत के जरिए किसी मसले का समाधान वांछित नहीं है और उससे किसी के हितों की पूर्ति नहीं होती।
यही नहीं, हिंसा का खात्मा उसके विरोध में हिंसा से भी नहीं किया जा सकता। दुष्टता का मुकाबला दुष्टता से करने पर ज्यादा दुष्टता ही पैदा होती है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि नए वार्ताकार इस मामले में तय समय के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे और केंद्र सरकार भी उसे उसी तरह रद्दी की टोकरी में नहीं डाल देगी? जैसे कांग्रेस की अगुआई वाली मनमोहन सिंह सरकार ने इस मामले में अपने नियुक्त तीन वार्ताकारों की रिपोर्ट को डाल दिया था।