जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा, जीडी अग्रवाल की मौत स्वाभाविक नहीं है। उनकी हत्या की गई है। दो घंटे पूर्व जिस व्यक्ति से मेरी बातें हुईं, अचानक उसकी मौत कैसे हो गई? इस परिप्रेक्ष्य में वो कई सवाल उठाते हैं...
सुरेश प्रताप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
बनारस, जनज्वार। गंगा बचाने के लिए 112 दिन आमरण अनशन के बाद शहीद हुए ख्यात पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल की याद में बनारस में 21 अक्टूबर को एक पदयात्रा को श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई।
प्रख्यात पर्यावरणविद् व जल पुरुष के नाम से चर्चित राजेन्द्र सिंह काशी में गंगापुत्र स्वामी सानंद की सहादत पर आयोजित पदयात्रा और श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने आए। मैदागिन स्थित टाउनहाल से ही वो पदयात्रा में शामिल हुए थे। महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने के बाद वो चुपचाप स्वामी मुक्तेश्वरानंद के साथ पदयात्रा में चलते रहे।
शांत और चिंतित जलपुरुष को देश लग रहा था कि वे कुछ सोच रहे हैं या फिर उन कड़ियों को आपस में जोड़ रहे थे, जो 112 दिन तक गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए स्वामी सानंद के अनशन और मौत से पैदा हुई हैं। स्वामी मुक्तेश्वरानंद स्वामी सानंद के गुरु हैं। उन्होंने ही 2011 में काशी में उन्हें दीक्षा दी थी। पहले उनका नाम प्रोफेसर जीडी अग्रवाल था, लेकिन दीक्षा के बाद स्वामी सानंद के नाम से चर्चित हुए।
पदयात्रा के बाद गंगा किनारे डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद घाट पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में जल पुरुष राजेन्द्र सिंह स्वामी सानंद से अंतिम समय में हुई मुलाकात की चर्चा करते हुए भावुक हो गए। कहा, उनकी मौत से दो घंटा पहले तक हम उनके साथ थे। उन्होंने कहा था कि हम स्वस्थ हैं और तुम यहां से जाओ अपना काम करो।
स्वामी सानंद ने उनसे अखबारों में छपी खबर की केन्द्र सरकार ने उनकी 80 फीसदी मांगें मान ली हैं और अब उन्हें अपना अनशन समाप्त कर देना चाहिए, का जिक्र करते हुए कहा था कि सरकार का यह कहना झूठ है। यह खबर केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हवाले से छपी थी।
इस प्रकरण का जिक्र करते हुए जल पुरुष ने कहा कि स्वामी जी ने हमें निर्देश दिया कि राजेन्द्र, तुम तो सच्चाई जानते हो। सरकार का यह दावा झूठ है कि 80 फीसदी मांगें पूरी कर दी गई हैं। तुम यहां से दिल्ली जाओ और वहां प्रेस कांफ्रेंस करके इसका खण्डन करो और हां, प्रेस कांफ्रेंस अकेले मत करना। 4-5 और लोगों को साथ में ले लेना।
स्वामी सानंद के इस निर्देश पर राजेन्द्र सिंह दिल्ली के लिए निकल पड़े। अभी वो रास्ते में ही थे, तभी दो घंटे बाद उन्हें स्वामी सानंद के निधन की खबर मिली। श्रद्धांजलि सभा में इस प्रकरण का जिक्र करते हुए अचानक राजेन्द्र सिंह तमतमा उठे। कहा, उनकी मौत स्वाभाविक नहीं है। उनकी हत्या की गई है। दो घंटे पूर्व जिस व्यक्ति से मेरी बातें हुईं, अचानक उसकी मौत कैसे हो गई? इस परिप्रेक्ष्य में वो कई सवाल उठाते हैं? कहते हैं कि स्वामी सानंद ने भी अपने अंतिम पत्र में साफ लिखा है कि यदि मेरी मौत होती है, तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा।
जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि हम पिछले 40 वर्ष से स्वामी सानंद के साथ पर्यावरण पर काम कर रहे थे। उन्हें मां गंगा से अथाह लगाव था। वो सच्चे गंगापुत्र थे। कहते थे कि हमारे अस्तित्व के लिए गंगा का अविरल और निर्मल होना जरूरी है और इसके लिए अपनी जान तक दे दी। उनका अंतिम संस्कार भी करने नहीं दिया गया, आखिर इसके लिए दोषी कौन है? उसे सजा मिलनी चाहिए।
श्रद्धांजलि सभा में अपने भाषण में जल पुरुष समुद्र की लहरों की तरह कई बार गुस्से में आकर जोर-जोर से बोलने लगे और फिर अचानक शांत हो जाते थे। वो अपने गुरु स्वामी सानंद के अंतिम क्षणों के बारे में बहुत कुछ कहना चाहते थे।
स्वामी मुक्तेश्वरानंद भी उनका अंतिम संस्कार करने की अनुमति न दिए जाने से काफी व्यथित थे। कहा, यह सही है कि उन्होंने अपना शरीर मेडिकल के छात्रों के अध्ययन के लिए दान कर दिया था, लेकिन विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार और उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प चढ़ाने व दर्शन करने का हक तो हमें है ही। उसके बाद एम्बुलेंस से उनका शरीर लेकर अस्पताल वाले जा सकते हैं।
शाम को लगभग साढ़े छह बजे श्रद्धांजलि सभा समाप्त होने के बाद जल पुरुष चुपचाप डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद घाट की सीढ़ियों से ऊपर जाने लगे, लेकिन बार-बार वो मुड़कर मंथर गति से बह रही गंगा को निहारते रहे। शायद स्वामी सानंद से जुड़ी स्मृतियां उन्हें कचोट रही थीं। स्मृतियां आ रही थीं, जा रही थीं और जल पुरुष राजेन्द्र सिंह चुपचाप उदास।
सीढ़ी पर खड़े होकर कुछ सोच रहे थे। शायद वो सोच रहे थे कि आखिर कैसे किया जाए मां गंगा को अविरल, निर्मल और प्रदूषण मुक्त। गंगा पर बांध बनाकर क्या हम कर सकते हैं मां गंगा को प्रदूषण मुक्त?