'भोजन दो या फिर हमें मार दो, हमारे पास 4 दिन से खाने को कुछ भी नहीं'

Update: 2020-05-23 06:56 GMT

200 से ज्यादा मजदूरों के पास चार दिनों से खाने का एक निवाला तक नहीं है। पत्रित्र रमजान का महीना है, रोजेदार मजदूर पानी से ही रोजा खोलने को मजबूर हो रहे हैं, उनके बच्चे भूखे हैं...

जनज्वार। दो सौ से ज्यादा मजदूरों के पास चार दिनों से खाने का एक निवाला तक नहीं है। पत्रित्र रमजान का महीना है, रोजेदार मजदूर पानी से ही रोजा खोलने को हो रहे मजबूर हो रहे हैं। उनके बच्चे भूखे है। यह हालात उस प्रदेश के हैं, जिसे देश का माडल बताया जा रहा है, जहां सीएम रहने के बाद नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री है।

ह पवित्र रमजान का महीना है। अली अहमद इन दिनों रोजा रख रहे हैं। कुछ दिनों तक तो उनके पास जो थोड़ा बहुत था, इससे ही अपना रोजा खोल रहे थे। लेकिन चार दिन से तो उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है, अब वह पानी पीकर ही रोजा खोलने पर मजबूर हो रहा है। वह और उसके तीन बच्चे अहमदाबाद में विक्टोरिया गार्डन के पास फुटपाथ पर सैकड़ों अन्य मजदूरों के साथ कई दिनों से सिर्फ पानी से ही गुजारा कर रहे हैं। यह प्रवासी मजदूर नहीं है। यह इसी शहर के वह स्थानीय मजदूर हैं, जो हर रोज कमाते थे, हर रोज खाते थे। लेकिन लॉकडाउन की वजह से अब उन्हे दिकाड़ी नहीं मिल रही है। इसके चलते ही उन्हें भूखा रहने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

मार्च में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लॉकडाउन की घोषणा की थी, तब से वह बेरोजगार हो गये हैं। पहले ही मजदूरी से मिलने वाले पैसे से उनका गुजारा मुश्किल से चलता था। अब जब काम नहीं मिल रहा है , तो वह भूखा रहने पर मजबूर हो गये हैं। अब उनके हालात यह है कि यदि दो तीन दिन में उन्हे एक वक्त का भोजन किसी तरह से मिल जाये तो वह खुद को भाग्यशाली समझते हैं।

ली ने बताया कि पिछले सप्ताह तक यहां कुछ लोग भोजन बांटने आते थे। उनके पास पैसे नहीं थे, फिर भी चलो कुछ खाने को मिल जाता था। इसलिए लॉकडाउन में उन्हें यह दिक्कत ज्यादा महसूस नहीं हो रही थी, लेकिन अब पिछले सप्ताह से शहर में लॉकडाउन कड़ा हो गया है, इस वजह से खाना देने जो लोग आते थे, वह भी अब नहीं आ रहे हैं। रविवार को, अली और उन जैसे 200 से ज्यादा लोग विक्टोरिया गार्डन के बाहर इस उम्मीद में इकट्ठा हुए कि किसी सामाजिक संगठन का ध्यान उनकी ओर चला जाये। जो उन्हें भोजन उपलब्ध करा दे।

ली ने बताया कि वह वातवा में रहता था, लॉकडाउन के कारण, काम मिलना बंद हुआ तो पैसे भी नहीं रहे। इसलिए मैं कमरे का किराया नहीं दे पाया। यहीं वजह रही कि मुझे कमरा छोड़ना पड़ा। अब मैं यहां अपने तीन बच्चे (सबसे छोटा सिर्फ दो साल का है) के साथ फुटपाथ पर रहने के लिये मजबूर हो गया हूं। अली ने बताया कि कुछ समय पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था।

गुजरात मॉडल : मजदूर सिर्फ पानी से रोजा तोड़ने को मजबूर (photo : Ahmedabad mirror)

ली की तरह, एक अन्य मजदूर इसु मोइद्दीन भी रोजा रख रहे हैं। उनके पास भी रोजा खोलने के लिए कुछ नहीं है। उन्होंने बताया कि “मेरे पास रोज़ा खोलने के लिये सिर्फ पानी है। फलों को तो मैं भूल ही गया हूं। मेरे पास राशन का का एक दाना भी नहीं है। मैं अकेला रहता हूं। लेकिन जब मैं अली के भूख से बिलबिलाते बच्चों को देखता हूं तो उनकी तकलीफ सहन नहीं होती। हम बड़े तो फिर भी पेट पर पट्टी बांध कर किसी तरह से भूख को बर्दाश्त कर लेंगे, लेकिन इन बच्चों का क्या? उन्हें कैसे और क्या बताये कि खाने के लिए कुछ नहीं है।

सी तरह से एक अन्य मजदूर शारदा धीरूभाई लॉकडाउन से पहले जमालपुर के फूल बाजार में काम करती थीं, अब उनके पास कोई काम नहीं है। उन्होंने बताया कि “हमारे पाँच बच्चे हैं। वे सभी भूखे मर रहे हैं। कुछ समय से खना उपलब्ध कराने वाली सामाजिक संस्था के लोग भी नहीं आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि बस अब मेरा एक ही निवेदन है, हमें भोजन दो यदि यह संभव नहीं तो हमें मार दो। उन्होंने बताया कि भूख मिटाने के लिये वह रात भीख मांगने गयी थी, लेकिन कुछ नहीं मिला। इन लोगों को कोई राशन किट नहीं मिली है। “यहां के लोगों के पास कोई राशन कार्ड नहीं हैजिससे उन्हें मुफ्त राशन मिल सके।

क मजदूर ने बताया कि मुझे 8 मई को पता चला कि बच्चे के स्कूल दाखिले के आधार पर मुझे मुफ्त में कुछ राशन मिल सकता है। जब मैं वहां गया जहां रोशन वितरण हो रहा था, वहां मुझे बताया गया कि यह सब बंद हो गया है। मैं चार मई से खुद को ही कोस रहा हूं। जब वह ऐसा बोल रहे थे तो अली ने भी उनकी हां में हां मिलाकर उनकी बात का समर्थन किया।

गुजराज के वन और पर्यावरण के अतिरिक्त मुख्य सचिव और कोरोना के नोडल अधिकारी आईएएस राजीव गुप्ता से जब मिरर ने मजदूरों के हालात पर जब फोन से बातचीत करनी चाही तो अधिकारी ने उनकी काल नहीं उठायी।

(अहमदाबाद मिरर के साभार)

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