गोरखपुर विश्वविद्यालय में एससी-एसटी एक्ट की ऐसी की तैसी

Update: 2018-10-20 07:06 GMT

अजय सिंह बिष्ट के मुख्यमंत्री और वी.के. सिंह के कुलपति बनने के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय सवर्ण वर्चस्व की खुली प्रयोगशाला बन गया है। दलित-बहुजन छात्रों और शिक्षकों का खुलेआम उत्पीड़न हो रहा है...

सिद्धार्थ

दलित शोध-छात्र दीपक कुमार को इस कदर सवर्ण शिक्षकों ने प्रताड़ित किया कि उन्होंने बीते 20 सितंबर 2018 को उन्होंने जहर खाकर जान देने की कोशिश की थी। खुदकुशी के प्रयास से पहले दीपक ने सुसाइड नोट लिखा और वीडियो भी बनाया, ताकि वह दुनिया को वह कारण बता सके, जिस कारण उसे खुदकुशी करनी पड़ रही है।

दीपक ने अपने सुसाइड लेटर और वीडियो में यूनिवर्सिटी के डीन प्रो. चंद्र प्रकाश श्रीवास्तव व दर्शन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष द्वारिका नाथ श्रीवास्तव का नाम लिया था। दीपक का कहना है कि उसे दलित होने के कारण इस हद तक प्रताड़ित किया गया कि उसके पास खुदकुशी के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

एससी-एसटी एक्ट के तहत दोनों शिक्षकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई, करीब एक महीने हो गए किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई। हम सभी जानते हैं कि आत्महत्या के लिए प्रेरित करना भी एक संज्ञेय अपराध है। विश्वविद्यालय शिक्षक संघ पूरी तरह आरोपित शिक्षकों के पक्ष में खड़ा है, धरना-प्रदर्शन कर रहा है। कुलपति जांच रिपोर्ट का इंतजार किए बिना आरोपी सवर्ण शिक्षकों को निर्दोष ठहरा रहे हैं।

http://janjwar.com/post/jatigat-utpeedan-se-tang-gorakhpur-university-ke-dalit-shodh-chhatra-ne-kee-suicide-kee-koshish-janjwar

पिछड़ी जाति के 3 शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस - शिक्षकों की नियुक्तियों में आरक्षण के नियमों का उल्लंघन का विरोध करने वाले पिछड़ी जाति के तीन शिक्षकों को कारण बताओं नोटिस जारी किया जा चुका है। इसमें पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद ( पिछड़े वर्ग के शिक्षकों का संगठन) के अध्यक्ष प्रोफेसर चन्द्रभूषण गुप्त और महासचिव प्रोफेसर अनिल यादव भी शामिल हैं। इसके अलावा वाणिज्य विभाग के प्रोफेसर अजय गुप्त को भी कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया है, कारण कुछ अन्य बताया गया है। जबकि असली वजह यह है कि उन्होंने दो बार कार्यपरिषद के सदस्य के रूप में शिक्षकों की नियुक्तियों में पारदर्शिता अपनाने की प्रक्रिया का पालन करने का आग्रह किया था।

शिक्षकों की नियुक्तियों में जमकर ठाकुर-ठाकुर, ब्राह्म्ण- ब्राह्मण का खेल खेला गया- 2 जुलाई 2018 को गोरखपुर विश्वविद्यालय में 62 नये शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी। 62 में 42 शिक्षक सिर्फ दो जातियों के हैं। 24 ठाकुर और 18 ब्राह्मण यानी 67.74 प्रतिशत शिक्षक या तो ठाकुर या बाभन। करीब दो तिहाई। इसमें भी इस बार बाभनों से ठाकुरों ने बाजी मार ली थी। 18 बाभनों की तुलना में 24 ठाकुर हुए अर्थात कुल पदों के 38.70 प्रतिशत पर ठाकुरों ने कब्जा कर लिया था। बाभनों से करीब 10 प्रतिशत अधिक। कुल नियुक्तियों में बाभनों का प्रतिशत 29.03 है ।5 प्रतिशत से भी कम आबादी बाले ठाकुरों-बाभनों ने करीब 70 प्रतिशत पदों पर कब्जा कर लिया। ठाकुरों ने बाभनों को पराजित कर दिया। दोनों ने मिलकर शंबूक के करीब 70 प्रतिशत वंशजों को 20 प्रतिशत पद देकर राम राज्य की उदारता का परिचय दिया था।

उर्दू विभाग में 2 मुसलमानों को निुयक्त करना पड़ा था, कोई हिंदू नहीं मिला था। गोरखपुर विश्वविद्यालय में योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह विष्ट की छत्रछाया और संघी कुलपति वी.के. सिंह के नेतृत्व में उच्च जातियों के अधिकांश शिक्षक एकजुट होकर दलित-बहुजनों का हक छीनने और उत्पीड़न करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह है रामराज्य का सच।

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