कश्मीर से भी ज्यादा आंदोलनकारी हरियाणा में मारे गए

Update: 2017-07-26 12:37 GMT

संसद में एक सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा, उन्हें नहीं पता इस साल कितने किसान पुलिस फायरिंग में मारे गए, नहीं होती ऐसी कोई गिनती

सरकार के आदेश पर पुलिस किसानों को गोली मारकर मौत के घाट तो उतार सकती है पर सरकार गिनती नहीं करा सकती कि उसके आदेश पर कितने किसान हर साल मारे जा रहे हैं

जनज्वार, दिल्ली। यह हास्यास्पद लगेगा मगर सच है कि सरकार और मंत्री को यह नहीं पता कि पुलिस फायरिंग में इस साल कितने किसान देश के अलग—अलग हिस्सों में आंदोलनों के दौरान मारे गए।

कल संसद में उठे एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहिर ने कहा कि सरकार ऐसी कोई गिनती नहीं करती जिससे यह पता चले कि इस साल कितने किसान पुलिस की गोलियों के शिकार हुए।

यह जानकारी संसद में अहिर ने उस सवाल के जवाब में दी जिसमें पूछा गया था कि पिछले वर्ष पुलिस फायरिंग में देश भर में कितने किसान मारे गए थे।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ( एनसीआरबी) की रिपोर्ट दिखाते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने सदन को बताया कि पिछले वर्ष 2016 में पुलिस फायरिंग में हरियाणा में सबसे ज्यादा 22 मौते हुईं, जो जम्मू—कश्मीर से भी कह है। 2016 में जम्मू—कश्मीर में 16 नागरिक पुलिस की गोलियों से मारे गए।

इसी रिपोर्ट से पता चला कि 2015 में जहां देश भर में पुलिस की गोलियों से 42 लोग मारे गए थे, वहीं 2016 में 92 लोगों की मौत हुई। यह संख्या 2015 के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है। आसाम में वर्ष 2016 में 16, जबकि 2015 में कुल 7, महाराष्ट्र में 2016 में 11, जबकि 2015 में 3 मारे गए।

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहिर ने इन आंकड़ों को साझा करते हुए सदन को बताया कि किसानों की हत्या का अलग से एनसीआरबी नहीं रखती है।

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