जो ढोंगी आज सत्ता पर विराजमान है, उसकी आत्मा मरी हुई है। वो देश में बहन, बेटियों, किसानों, मजदूरों पर होने वाले अत्याचारों पर मौन रहते हैं। वो सिर्फ़ वोट बटोरने के लिए जुमले घड़ते हैं या पूंजीपतियों के मुनाफ़े के लिए विदेशों में सर्कस करते हैं....
मंजुल भारद्वाज, प्रसिद्ध रंग चिंतक
गंगा बहती हो क्यों? जब तुम्हारी निर्मलता के लिए लड़ने वालों को जान से हाथ धोना पड़ता है और तुम्हारे नाम का ढ़ोंग करने वाले अपने आप को तुम्हारा ‘स्व घोषित’ बेटा कहने वाले ढोंगी जन भावनाओं का दोहन करने वाले देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं।
तुमको निर्मल बनाने वाली सारी योजनाएं असफल हो जाती हैं। सरकारी खजाना ठेकेदारों के घर भरने के लिए लूटा दिया जाता है। देश का हर संवैधानिक संस्थान संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया तुम्हारा नाम लेकर अपना अपना उल्लू साधते हैं। तुम्हारे नाम पर आस्था का व्यापार करता हैं। संस्कारों का ढोल पीता जाता है और गंगा तुम्हें ‘गंदा’ नाला बनने को विवश कर दिया जाता है, क्योंकि उन्हें विकास का घोडा दौड़ाना है।
उन्हें तुम्हारी निर्मलता से कोई सरोकार नहीं, वैसे ये दीगर बात है उनको सिर्फ़ सत्ता चाहिए और उसके लिए उन्हें जुमले घड़ना आता है चाहे वो विकास का हो या तुम्हारी ‘निर्मलता का। उपर से तुर्रा यह है की ‘वो’ हर चुनाव जीत रहे हैं। वो जानते हैं की वो जनता की आँखों में धूल झोंक रहे हैं। जनता भी जानती है फिर भी वो जीत रहे हैं। अब जांच का विषय है कि जनता उनको जीता रही है या ईवीएम मशीन।
एक बात साफ़ है की वो इसलिए जीत रहे हैं क्योंकि राजनीतिक शुचिता मर गयी है। वो इसलिए जीत रहे हैं क्योंकि जनता की आँखों का पानी सूख गया है। वो इसलिए जीत रहे हैं हे गंगा क्योंकि इस देश की आत्मा मर गयी है। वो इसलिए जीत रहे हैं क्योंकि विचारों की छाती पर विकार डंका पीट रहे हैं और विचार कहीं कोने में सिसक रहे हैं।
वो इसलिए जीत रहे हैं क्योंकि ‘लोकतंत्र’ की कमजोरी है संख्याबल। संख्या विवेकशील हो तो लोकतंत्र मजबूत होता है और विकारों से भरी हो तो लोकतंत्र का पतन। हे गंगा आज लोकतंत्र के पतन का दौर है। जिस पर पूंजीवादी फ़ासीवाद दहाड़ रहा है और भक्त जयकारा लगा रहे हैं और किसान आत्महत्या, युवा बेरोजगार और महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसा की चीत्कारों को बेचकर बाजारू मीडिया मुनाफ़ा कमा रहे हैं। हे गंगा तुम बहती हो क्यों?
हे गंगा आज एक पुत्र ने तुम्हारी निर्मलता के लिए अपनी जान दे दी। दरअसल उसने जान नहीं दी, भारत सरकार ने उसकी हत्या कर दी। जीडी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी सानंद की मानवीय मूल्यों में गहरी आस्था थी। न्याय के लिए संघर्ष करने वाले वो सत्याग्रही थे। लोकतांत्रिक प्रतिरोध के तरीकों में विश्वास था उनका।
उन्हें हे गंगा तुम पर विश्वास था, इसलिए अनशन और जल त्याग का मार्ग अपनाया। पर उन्हें ये पता नहीं था की इस देश की रंगों में अब तुम्हारा गंगाजल प्राण नहीं फूंकता अपितु गंदे नालों का पानी उनके शरीर में दौड़ता है। इस देश की आत्मा अब गंगा नहीं रही। वो सिर्फ़ कर्मकांड पूर्ति के लिए एक गंदा नाला है।
वो भी नहीं जानते थे कि जो ढोंगी आज सत्ता पर विराजमान है, उसकी आत्मा मरी हुई है। वो देश में बहन, बेटियों, किसानों, मजदूरों पर होने वाले अत्याचारों पर मौन रहते हैं। वो सिर्फ़ वोट बटोरने के लिए जुमले घड़ते हैं या पूंजीपतियों के मुनाफ़े के लिए विदेशों में सर्कस करते हैं। हे गंगा तुम्हारी निर्मलता के लिए, तुम्हारे कितने पुत्रों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ेगी।
निर्मल गंगा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले स्वामी सानंद को नमन!