100 प्रतिशत युवाओं को उच्च शिक्षा देने का वादा सरकार की सबसे बड़ी लफ्फाजी
लागू हो गया नई राष्ट्रीय नीति 2019 का ड्राफ्ट तो देश में बाजार का नियम पूरी नग्नता से करेगा काम, जिसकी जेब में जितना ज्यादा पैसा, उसके पास उतनी ही अच्छी और ज्यादा शिक्षा, अभी भी देश के 10 करोड़ से ज्यादा युवा रह जाते हैं उच्च शिक्षा से वंचित
मुनीष कुमार, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता
आजादी के 72 वर्षों बाद भी उच्च शिक्षा देश की तीन चौथाई आबादी की पहुंच से बाहर है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने योग्य युवाओं में मात्र 25 प्रतिशत यानी कि 3.5 करोड़ छात्र ही उच्च शिक्षा के संस्थानों में दाखिला ले पाते हैं। मतलब देश के 10 करोड़ से भी अधिक युवा जिन्हें उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ना चाहिए था, वह उससे बाहर हैं।
प्रारूप में 2035 तक उच्च शिक्षा में नामांकन 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसका मतलब है कि आजादी के 88 वर्षों बाद वर्ष 2035 में भी देश के आधे छात्रों के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में कोई जगह नहीं होगी। इन 50 प्रतिशत युवाओं को उच्च शिक्षा के दायरे में लाने की सरकार के पास न तो कोई सोच है और न ही कोई कार्य योजना है।
पेज 272 पर बताया गया हे देश में 800 से अधिक विश्वविद्यालय व 40 हजार महाविद्यालय हैं। 40 प्रतिशत से अधिक महाविद्यालय केवल एक ही कार्यक्रम चला रहे हैं। मसलन बीएड व इंजीनियरिंग जैसे एकल कोर्स करवा रहे हैं, जो कि 21वीं सदी की जरूरत के अनुसार बहु अनुशासनिक लक्ष्यों से बहुत दूर हैं। 20 प्रतिशत महाविद्यालय में 100 से नीचे नामांकन (पढ़ने वाले छात्र संख्या) है, जबकि 4 प्रतिशत महाविद्यालय में 3 हजार से अधिक नामांकन है। इस स्थिति को बदतर बनाने में वे छोटे-छोटे महाविद्यालय शामिल हैं, जहां पढ़ाने के लिए कोई संकाय (शिक्षक) नहीं है।
इसके हल के रूप में जो बात कही गयी है, वह देश के लिए बेहद खतरनाक व हैरान करने वाली है। प्रारूप में सिफारिश की गयी है कि 2030 तक सभी उच्च शिक्षण संस्थान तीन प्रकारों में से एक में विकसित होंगे। टाइप 1 शोध विश्वविद्यालय जो कि 50 लाख की आबादी पर एक होगा। जिसमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 5 से 25 हजार होगी।
टाइप-2 शिक्षण विश्वविद्यालय 5 लाख की आबादी पर एक होगा, जिसमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 5 से 25 हजार होगी। तीसरे होंगे टाइप-3 महाविद्यालय जो कि 2 लाख की आबादी पर एक होगा, जिसमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 2 से 5 हजार तक होगी।
अब आइये इसका गुणा-भाग कर लेते हैं। 2035 में देश की आबादी 140 करोड़ के आसपास होगी। प्रारूप के अनुसार 50 लाख की आबादी पर एक टाइप 1 विश्वविद्यालय, 10 टाइप 2 विश्वविद्यालय व 25 टाइप 3 महाविद्यालय होंगे।
इन सबको मिलाकर 50 लाख की आबादी पर कुल (1$10$25=36) उच्च शिक्षण संस्थान होंगे। इस तरह 1 करोड़ की आबादी पर इनकी संख्या लगभग 72 होगी। 140 करोड़ की आबादी में इनकी संख्या इस प्रकार करीब 10 हजार 80 होगी, जिसका मतलब है कि देश के करीब 30 हजार उच्च शिक्षण संस्थान बंद कर दिये जाएंगे।
उच्च शिक्षा में यह एक ऐसी दवा देने की सिफारिश है, जिससे न मर्ज रहेगा न मरीज। बीमार महाविद्यालय में यदि आज शिक्षक नहीं हैं और छात्रों की संख्या 100 से भी कम है तो क्या किया जाना चाहिये। कक्षा 4 में पढ़ने वाला बच्चा भी बता देगा कि शिक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिए व छात्रों को पढ़ाने के लिए आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।
30 हजार उच्च शिक्षण संस्थान बंद करने की सिफारिश किए जाने से साफ है कि सरकार अब देश के सभी 100 प्रतिशत युवाओं को उच्च शिक्षा देने का लक्ष्य त्याग चुकी है। उसके द्वारा देश को ज्ञान सोसायटी में तब्दील करने की बातें भोंथरी-खोखली व गुमराह करने वाली हैं।
समूचे प्रारूप में देश के सभी लोगों को निःशुल्क, गुणवत्तापूर्ण, रोजगारपरक उच्च शिक्षा देने की प्रतिबद्धता पूरी तरह से गायब है। इसकी जगह 50 प्रतिशत विद्याथियों को आंशिक व पूर्ण फीस माफी, स्कालरशिप व शिक्षा ऋण उपलब्ध जैसी बातें की कही गयी हैं।
सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नया लक्ष्य निर्धारित किया है। वह है उच्च शिक्षा में विदेशी छात्रों की संख्या देश में बढ़ाने, विदेशों में जाकर शिक्षा ग्रहण करने वाले भारतीयों को देश में ही विश्वस्तरीय शिक्षा उपलब्ध करवाने का। इसके लिए सरकार शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने के लिए नियम-कानूनों को और भी ज्यादा ढीला करने जा रही है।
उच्च शिक्षा भी खुलेआम मुनाफा कमाने की वस्तु के रूप में बाजार में उपलब्ध होगी। संस्थानों की गुणवत्ता का मानक बाजार होगा। पेज 460 पर कहा गया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों की रेटिंग व रैंकिंग जनता की राय व बाजार की शक्तियों (मार्केट फोर्सेस) पर छोड़ दी जाएगी।
देश में बाजार का नियम पूरी नग्नता से काम करेगा कि जिसकी जेब में जितना ज्यादा पैसा, उसके पास उतनी ही ‘अच्छी’ और ‘ज्यादा’ शिक्षा। हाथी के दांत खाने के अलग होते हैं और दिखाने के अलग।
पेज 346 पर कहा गया है कि 700 बीसीई में हमारे यहां विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला स्थापित हुया। 7 सीई में नालन्दा विश्वविद्यालय जब शीर्ष पर था तब यहां चीन, इंडोनेशिया, जापान और दुनिया के अन्य देशों से आए छात्र पढ़ते थे। भारत में आज केवल 45 हजार (11,250 प्रतिवर्ष) विदेशी छात्र उच्च शिक्षा में अध्ययनरत हैं। यह विश्व स्तर पर विदेशों में पढ़ रहे छात्रों का 1 प्रतिशत से भी कम है।
आगे कहा गया है कि अमेरिका व यूरोप में शिक्षा पर खर्च बढ़ता जा रहा है, ऐसे में दुनियाभर के छात्र सस्ती शिक्षा को प्राप्त करने के लिए आकर्षित होंगे। कुछ समय से अंररार्राष्ट्रीय छात्रों के दाखिले के लिए 15 प्रतिशत अतिरक्ति कोटा रखा गया है। चुनिंदा विश्वविद्यालयों (जैसे दुनिया के श्रेष्ठ 200 विश्वविद्यालयों) को भारत में संचालित करने की अनुमति दी जाएगी।
2007 में कांग्रेस की सरकार ने शिक्षा क्षेत्र को 100 प्रतिशत एफडीआई के लिए खोल दिया था। इसके बावजूद भी शिक्षा क्षेत्र में दिसम्बर 2018 तक मात्र 2.21 बिलियन डाॅलर की एफडीआई ही देश में आ पायी। नये उच्च शिक्षण संस्थान खोलने के लिए देश के नियम व कानून एफडीआई के रास्ते में रुकावटें बने हुए हैं। एफडीआई को आकर्षित करने के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों को मनमानी करने की छूट देने का प्रस्ताव प्रारूप में किया गया है।
निजी संस्थानों को डिग्री देने, सिलेबस व कोर्स तैयार करने शिक्षकों की भर्ती करने व उनके वेतन की दरें व शर्तें निर्धारित करने तथा मनमानी फीस वसूलने की खुली छूट देने की सिफारिशें प्रारूप में की गयी हैं।
सभी उच्च शिक्षण संस्थान अपनी-अपनी अलग डिग्री उपलब्ध कराएंगे। शिक्षा के बाजार में इन डिग्रियों का अलग-अलग मूल्य होगा। वर्ष 2020 से सभी नये कॉलेज टाइप-3 स्वायत्त कालेज के रुप में स्थापित होंगे। 2030 के बाद कोई भी सम्बद्ध (एफलिएटेड) कालेज देश में नहीं रहेंगे।
दुनिया के जिन 200 उच्च शिक्षण संस्थानों को देश में बुलाया जा रहा है, वह देश में शिक्षा देने के लिए नहीं बल्कि मुनाफा कमाने के लिए देश में आएंगे। जैसे देश में अमेजाॅन, फ्लिपकार्ट ने देश के खुदरा बाजार पर धीरे-धीरे आधिपत्य स्थापित कर लिया है। वैसे ही दुनिया की आईवीवाई लीग जैसे अमेरिकी संस्थान भारत की उच्च शिक्षा को अपने आधिपत्य में ले लेंगे। नौकरियों व रोजगार के अवसरों में उन्हीं को प्राथमिकताएं मिलेंगी जिन्होंने विदेशी संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की होगी।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)
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