मानेसर होंडा मजदूरों ने कहा, 14 दिन खाया हमने कीड़े वाला खाना और 300 लोगों के लिए था एक ही शौचालय
गुड़गांव के मानेसर में होंडा का प्लांट हुआ ठप्प, बिना नोटिस मिले बेरोजगार हुए सैकड़ों कर्मचारी, 17 दिनों से होंडा प्रबंधन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं मजदूर...
खुशबू सिंह और विकास राणा की रिपोर्ट
जनज्वार। साल 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार की रैलियों में वादा करते थे कि सत्ता में आते ही प्रत्येक वर्ष दो करोड़ नौजवानों को रोजगार दिया जाएगा, लेकिन अब उनका दूसरे कार्यकाल को भी सात महीने का वक्त गुजर चुका है। लेकिन आर्थिक मोर्चे पर सरकार लगातार विफल साबित होती हुई नजर आ रही हैं। देश की जीडीपी पड़ोसी देशों से भी पीछे चल रही है। ऑटो सेक्टर मंदी के दौर से गुजर रहा है। इस बीच खबर है कि गुड़गांव के मानेसर में होंडा ने अपने प्लांट को बंद कर दिया है। इससे सैकड़ों मजदूर फिर बेरोजगार हो गए हैं।
होंडा प्रबंधन के इन मजदूरों को बिना कारण बताए नोटिस जारी किए नौकरी से निकाल दिया गया है। ये मजदूर इसके खिलाफ भारी संख्या में पिछले 5 नवंबर से हड़ताल पर हैं। अब प्रबंधन ने कुछ समय के लिए कंपनी बंदी की घोषणा कर दी है। गौरतलब है कि होंडा मानेसर प्लांट में 1900 स्थायी और 2100 अस्थायी श्रमिक काम करते हैं। यह प्लांट बंद होने से सीधे इन मजदूरों के पेट पर लात पड़ेगी।
फिलहाल 5 नवंबर से होंडा के हजारों कर्मचारी धरने पर बैठे हुए हैं। मजदूरों की हड़ताल के बाद शुक्रवार 8 नवंबर को कंपनी की तरफ से शटडाउन घोषित कर दिया गया और श्रमिकों के लिए कैंटीन तक बंद कर दी गयी। खबरें इस तरह की भी आयीं कि कंपनी में कर्मचारियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाले टॉयलेट को वेल्डिंग से सील कर दिया गया। हालांकि बाद में श्रमिक नेताओं की होंडा प्रबंधन के पदाधिकारियों की बातचीत हुई तो कैंटीन खुलवायी गयी और फिर धरने पर बैठे मजदूरों को खाना मिला। हालांकि होंडा प्रबंधन ने साफ कर दिया कि इसके बाद न तो कैंटीन चलेगी और न ही कंपनी के अंदर धरना दे रहे मजदूरों को कोई और सुविधा दी जायेगी।
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होंडा में काम करने वाले आर्शीवाद खुशवाहा ने जनज्वार को बताया कि पिछले 9 सालों से में होंडा के लिए काम कर रहा हूं। इतने वर्षों से मुझसे 14,000 रुपए में काम कराया जा रहा था। पैसों मे तो कोई बढ़ोत्तरी हो नहीं रही थी, अब हमें मंदी की बात कहकर नौकरी से निकाल दिया गया है। हमने जब विरोध किया तो हमें कंपनी के अंदर ही बंद कर दिया गया था। खाने-पीने के लिए भी कोई प्रंबध नहीं किया गया था। बिना खाए-पिए हम लोग एक हफ्ते तक आंदोलन कर रहे थे।
आर्य पंकज आगे कहते हैं कि कंपनी में अस्थायी और स्थायी मजदूरों को निकाला गया है। अस्थायी मजदूरों को बिना कोई नोटिस दिए नौकरी से निकाल दिया गया, लेकिन मैं प्रशासन से पूछना चाहता हूं कि हम स्थायी लोग जो कंपनी में लंबे समय से काम कर रहे हैं, हमें क्यों निकाला गया। हम लोगों ने कंपनी को मेहनत से आगे बढ़ाया है, लेकिन कंपनी ने हमें निकालते समय एक बार भी नहीं सोचा।
होंडा के कर्मचारी सुरेश जनज्वार को बताते हैं कि कंपनी के नियमानुसार अगर कोई अस्थायी कर्मचारी कंपनी में काम कर रहा है तो उसे एक साल बाद या तो स्थायी कर दिया जाता था या कंपनी में वापस अस्थायी रुप से रख लिया जाता था। लेकिन कंपनी ने अब मंदी का कारण बताकर सभी लोगों को समय से पहले निकाल दिया गया। जब हमने विरोध किया तो कंपनी ने हमें बंदी की तरफ फैक्ट्री के अंदर ही बंद कर दिया। खाने के नाम पर कीड़े वाला खाना और पीने के लिए ठंडा दूध और लस्सी दी जा रही थी जिसके कारण हमारे कई साथी बीमार हो गए हैं। प्रशासन हमारे साथ अत्याचार कर रहा है। वह चाहता है कि ये लोग बीमार हो जाएं जिससे इनका प्रदर्शन बंद हो जाए लेकिन हम लोग मरते दम तक अपने हक की लड़ाई लड़ते रहेंगे।
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रमेश नाम के मजदूर गुस्से में कहते हैं, 'होंडा ने हमारे ऊपर कैंदियों से भी ज्यादा बुरा बर्ताव किया है। हम लोगों को सड़ा हुआ दूध और लस्सी पिलाई जा रही थी। साथ ही जो खाना दिया जा रहा था उसमें भी कीड़े निकल रहे थे। ये ही नहीं प्रशासन ने टॉयलेट को भी बंद कर दिया था। एक टॉयलेट का इस्तेमाल 300 मजदूर कर रहे थे। कई लोग पूरा दिन टॉयलेट में नहीं गए हैं।'
सतीश होंडा पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि कंपनी ने आर्थिक मंदी की बात बोलकर लोगों को निकाला है जबकि कंपनी में कई अधिकारी ऐसे हैं जिनके साल का पैकेज 40 से 45 लाख के बीच में है। कंपनी को ऐसा कोई बड़ा नुकसान भी नहीं हुआ है कि लोगों को नौकरी से निकालना पड़े, लेकिन उसके बाद भी जो लोग कंपनी में 10 से 14 हजार कमाने वाले थे उन्हें मंदी का बात कहकर नौकरी से निकाल दिया गया है।