इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षक भर्ती में 'रिश्तेदारी वाला आरक्षण' रहा पूर्ण रूप से लागू, काबिल कैंडिडेट ताकते रहे ता​रीखें

Update: 2018-06-06 17:04 GMT

विश्वविद्यालयों के भर्ती मापदंड का यह अलिखित रिवाज आज का नहीं है, पर भुगतने वाले हर बार नए हैं और उनकी पांत लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन इस रिश्तेदारी के आरक्षण को खत्म करने के खिलाफ न कोई अगड़ा सड़क पर उतर रहा है और न ही पिछड़ा

रिश्तेदारी के आरक्षण के जादू पर अगर आपको नहीं है विश्वास तो एक बार नीचे की टेबल देखिए, फिर खुद हो जाएगा भरोसा

जनज्वार, इलाहाबाद। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पदों पर नियुक्तियों में भयानंक धांधली शुरू है। पिछले दिनों जिन विभागों में साक्षात्कार आयोजित किए गये थे, वहा प्रभावी लोगों के नात-रिश्तेदार भर गये। इसका अगला काण्ड हिन्दी विभाग में खेला जाना है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने हिन्दी विभाग में जिन पदों के लिए साक्षात्कार आयोजित करते हुए लोगों को बुलाया है, इन पदों पर पहली बार विज्ञापन वर्ष 2000 के आसपास हुआ था। उस समय पहली बार जिन लोगों ने पहली बार फ़ॉर्म डाला था उनमें से कुछ लोग आज किन्हीं जगहों पर प्रोफ़ेसर हैं।

लेकिन इन 17 वर्षों में यह विज्ञापन पूरा नहीं हो सका। तब से संभवतः छह बार फ़ॉर्म आया, लेकिन इंटरव्यू नहीं करवाया गया। हर बार फ़ॉर्म भरने के लिए पैसा लिया गया, लेकिन इंटरव्यू नहीं हुआ।

इन्हीं पदों पर 2017 में फिर विज्ञापन हुआ और उसमें पहली बार ‘परीक्षा-ई लॉकर’ एप का उपयोग किया गया। स्वाभाविक था कि लोग इसका पहली बार उपयोग कर रहे थे, इसलिए लोगों से कुछ गलतियाँ भी हुई होंगी। लेकिन विश्वविद्यालय ने इसे सुधारने का मौक़ा नहीं दिया। हर विश्वविद्यालय में अंतिम स्क्रीनिंग से पहले अगर फ़ॉर्म में कुछ गलतियाँ रह गयी हों तो उसे सुधारने का मौक़ा दिया जाता है।

जैसे अभी बिहार लोक सेवा आयोग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पदों के लिए साक्षात्कार चल रहा है। इसके लिए बिहार लोक सेवा आयोग ने दो बार स्क्रीनिंग लिस्ट जारी करते हुए, गलतियां बताते हुए इसे सुधारने का मौक़ा दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय में भी ऐसा ही हुआ है, लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने यह जरूरी नहीं समझा। जिसके लिए अभ्यर्थी 17 साल से इंतज़ार कर रहा है, उसके इस इंतज़ार को क्लर्कों ने दो मिनट में नाप दिया।

स्क्रिनिंग-प्रक्रिया में शामिल कुछ लोगों का मानें तो इस एप की कमियों को भी अभ्यर्थी की कमियां मान लिया गया। जिसका कोई डॉक्यूमेंट नहीं खुला, उसका फ़ॉर्म निरस्त कर दिया गया। इसमें यह बिलकुल ज़रूरी नहीं है कि अभ्यर्थी की ही गलती हो।

इस पूरी प्रक्रिया की दूसरी भयानक कमी यह है कि न तो क्राइटेरिया बताया गया है और न ही अभ्यर्थी का जोड़ा गया API. यह नहीं बताया गया है कि कितने API तक लोगों को बुलाया गया है और किसी विशिष्ट अभ्यार्थी का कितना API होने के कारण बाहर किया गया है।

जाहिर है, अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो जिसे भी चाहे बुलाया जा सकता है और जिसे भी चाहे बाहर किया जा सकता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में यही हुआ है। कुछ लोगों का कहना है कि हिन्दी विभाग के जिस अध्यापक के निर्देशन में स्क्रीनिंग हो रही थी, जो लोग उससे जाकर मिल लिये उनका नाम है और जो लोग न्याय और सच्चाई पर भरोसा किए बैठे थे उनका नाम नहीं है।

इसका प्रमाण यह भी है कि जिन लोगों की पीएचडी तक सबमिट नहीं है, वे भी बुलाए गये हैं, लेकिन जिन लोगों ने आज से 17 साल पहले फ़ॉर्म भरा था और इनकी किताबों से लेकर API कई गुना होगी उन्हें भी बाहर कर दिया गया है। इस पूरी प्रक्रिया में भयानक धाँधली हुई है। इसलिए आनन फानन में 18 तारीख़ को इंटरव्यू करवा लेने का षड्यंत्र किया गया है।

पाँच तारीख़ को स्क्रीनिंग लिस्ट आने के बाद से अभ्यर्थियों में गुस्से का माहौल है। लोग परेशान हैं और MHRD सहित वीसी को मेल कर रहे हैं। कल कुछ अभ्यर्थी जब वीसी से मिलने गये तो उन्होने ने इस प्रक्रिया को ठीक करने का आश्वासन दिया। लेकिन अभ्यर्थी इससे संतुष्ट नहीं हैं। अभ्यर्थी आंदोलन से लेकर न्यायालय तक की लड़ाई पर विचार कर रहे हैं।

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