ओजोन का बढ़ना कोरोना रोगियों के लिए बहुत खतरनाक, मगर प्रदूषण बोर्ड को नहीं कोई फिक्र

Update: 2020-04-07 13:31 GMT

एक शोध के मुताबिक दुनियाभर में ओजोन की समस्या गंभीर हो रही है, और वर्ष 2050 तक दुनिया में 60 लाख लोगों की प्रतिवर्ष असामयिक मृत्यु केवल इसकी बढ़ती सांद्रता के असर से होगी और इसमें से 16 लाख लोग भारत के होंगे...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

दुनियाभर में वायु प्रदूषण का पर्याय बन चुकी दिल्ली इन दिनों लॉकडाउन के कारण वायु प्रदूषण से लगभग मुक्त है। कोरोना के कहर के साथ ही इस वर्ष अभी तक दिल्ली में कुछ कुछ दिनों में होती बारिश के कारण भी वायु प्रदूषण में कमी आ रही है।

स वर्ष 1 से 31 मार्च तक एक दिन दिल्ली का इंडेक्स अच्छा था, 10 दिनों तक संतोषजनक, 18 दिनों तक मध्यम और 2 दिनों तक खराब प्रदूषण रहा। वर्ष 2019 में इन्ही दिनों में 20 दिन प्रदूषण मध्यम रहा और 11 दिनों तक खराब रहा, जबकि एक भी दिन संतोषजनक या अच्छी वायु गुणवत्ता नहीं रही।

स वर्ष 1 से 31 मार्च के बीच ओजोन का स्तर 19 दिनों तक सामान्य से अधिक रहा, और चार दिनों तक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का और तीन दिनों तक कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर अधिक था। इसमें दो दिन ऐसे भी है, 7 मार्च और 28 मार्च, जब पीएम 10 और पीएम 2.5 का स्तर सामान्य रहा पर ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तीनों का स्तर सामान्य से अधिक रहा।

जाहिर है, इसका जवाब कम से कम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास नहीं होगा क्योंकि यह एक ऐसी संस्था है, जिसके लिए वायु प्रदूषण का मतलब ही पीएम 10 और पीएम 2.5 से अधिक कुछ नहीं है। इसके अनुसार यदि इन दो पैरामीटर को नियंत्रित कर लिया जाए तो गैसें अपने आप नियंत्रित हो जायेंगी।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 31 मार्च को एक रिपोर्ट जारी की है, इम्पैक्ट ऑफ़ जनता कर्फ्यू एंड लॉकडाउन आन एयर क्वालिटी। इसमें पीएम 10, पीएम 2.5, नाइट्रोजन के ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के कम होने का जिक्र तो है, पर पूरी रिपोर्ट में ओजोन पर कोई चर्चा ही नहीं है, जबकि 22 मार्च से 31 मार्च के बीच सात दिनों तक ओजोन की समस्या बनी रही।

जोन की उत्पत्ति किसी सीधे स्त्रोत से नहीं होती है, बल्कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कुछ वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स के धूप में आपसी प्रतिक्रिया से उत्पन्न होता है। मानव स्वास्थ्य के लिए यह गैस बहुत खतरनाक है, पर सरकारी स्तर पर इसके बढ़ते सांद्रता की लगातार उपेक्षा की जाती रही है।

सके नियंत्रण की कहीं कोई योजना नहीं है। अब तक यही समझा जाता था कि गर्मी में और स्थिर हवा में ही तेज धूप में यह गैस बनती है। इस बार तो स्थितियां बिलकुल विपरीत हैं, बारिश अभी तक हो रही है, हवा भी तेज चल रही है और अधिकतर समय आसमान पर बादल छाये रहते हैं।

24 मार्च से लॉकडाउन शुरू हुआ है, और 25 से लेकर 28 मार्च तक हरेक दिन ओजोन की समस्या रही है, जबकि एयर क्वालिटी इंडेक्स 92 से 45 तक पहुँच चुका है। यही नहीं, 28 मार्च को कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की समस्या भी रही है।

र्ष 2017 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ मेडिकल पब्लिक हेल्थ नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार ओजोन की वायुमंडल में सांद्रता गर्मियों में सर्वाधिक और बरसात में न्यूनतम रहती है। पर मार्च 2020 में तो तापमान सामान्य से लगातार कम रहा, लगभग लगातार बादल छाये रहे और बारिश भी होती रही।

स शोधपत्र के अनुसार वायुमंडल में ओजोन की सांद्रता धूप के समय दिन में अधिक होती है, जबकि रात में और सुबह सबसे कम रहती है। इसके अल्पकालिक प्रभाव से फेफड़े प्रभावित होते हैं और इनके म्युको-सिलिअरी कार्य भी बाधित होते हैं, जिससे क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पुलमोनरी रोग, कार्डियोवैस्कुलर रोग या फिर श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

ब वायुमंडल में ओजोन की सांद्रता अधिक होती है, तब अस्पतालों में सांस या अन्य बीमारियों के मरीज अधिक आते हैं, और मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है। कोरोना मरीजों को भी सांस से जुड़ी समस्या होती है, ऐसे में ओजोन की बढ़ती सांद्रता उनके लिए भी खतरनाक है।

गभग ऐसी ही स्थिति इंग्लैंड में लंदन की भी रही है, वहां भी वायु प्रदूषण कम हो गया है, पर ओजोन की सांद्रता बढ़ गयी है। अमेरिका के कैलिफोर्निया और लोस एंजेल्स नामक शहरों में भी प्रदूषण कम हो रहा है, पर ओजोन की समस्या बढ़ रही है। कैलिफोर्निया में तो रात में ओजोन का स्तर बढ़ रहा है, जबकि लोस एंजेल्स में यह दिन में बढ़ रहा है।

वैज्ञानिक भी ओजोन के इस असामान्य व्यवहार से आश्चर्य में हैं। सैद्धांतिक तौर पर वाहनों और उद्योगों के चलने पर नाइट्रोजन के ऑक्साइड वायुमंडल में मिलते हैं और धूप में इससे ओजोन गैस बनती है, पर दुनियाभर में लॉकडाउन और विभिन्न पाबंदियों के कारण वाहन बंद हैं, उद्योग बंद हैं, सड़कें खाली हैं और लगभग सभी आर्थिक गतिविधियाँ बंद हैं।

दुनियाभर में वायुमंडल में नाइट्रोजन के ऑक्साइड की सांद्रता पिछले अनेक दशकों की तुलना में न्यूनतम स्तर पर है। यह एक गहन अध्ययन का विषय है कि आखिर ओजोन की सांद्रता किस कारण से बढ़ रही है, पर ऐसा होने के संभावना कम है क्योंकि भारत समेत लगभग पूरी दुनिया ने वायु प्रदूषण का पर्याय केवल पार्टिकुलेट मैटर को मान लिया है, और सारी नीतियाँ इसे नियंत्रित रखने तक ही सीमित हैं।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के 10 फरवरी 2020 के अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार शहरी क्षेत्र में दुनियाभर में ओजोन की सांद्रता बढ़ती जा रही है और हरेक लगभग 80 प्रतिशत शहरी आबादी इसके प्रभाव से ग्रस्त है। इस शोधपत्र में वर्ष 1985 से 2015 तक के हवा की गुणवत्ता के आंकड़ों के आधार पर दुनिया के 20 देशों के 406 शहरों में ओजोन के मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। इसमें भारत का कोई शहर नहीं है, पर चीन, यूरोप और अमेरिका के शहर हैं।

स अध्ययन के अनुसार इन शहरों में केवल ओजोन की अधिक सांद्रता के कारण प्रतिवर्ष 8000 से अधिक असामयिक मृत्यु होती है। ओजोन की सांद्रता में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बढ़ोत्तरी होने पर असामयिक मृत्यु की संभावना 0.18 प्रतिशत बढ़ जाती है।

जियोअर्थ नामक जर्नल के 10 मार्च 2019 के अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनियाभर में ओजोन की समस्या गंभीर हो रही है, और वर्ष 2050 तक दुनिया में 60 लाख लोगों की प्रतिवर्ष असामयिक मृत्यु केवल इसकी बढ़ती सांद्रता के असर से होगी और इसमें से 16 लाख लोग भारत के होंगे।

र्नल ऑफ़ एनवायर्नमेंटल रिसर्च के नवीनतम अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर की अधिक सांद्रता में लम्बे समय तक रहने वाली आबादी के आँतों में पलने वाले बैक्टीरिया के विविधता में अंतर आ जाता है, अनेक लाभदायक बैक्टीरिया मर जाते हैं, जिससे टाइप-2 डायबिटीज, मोटापा और इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज की संभावना बढ़ जाती है।

जकल कोरोना वायरस का कहर जब अपने चरम पर है, तब ये सारे रोग अधिक खतरनाक है क्योकि ये शरीर के रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं और कोरोना वायरस से अधिकतर मौतें ऐसे लोगों की ही हो रही हैं।

बसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ओजोन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी नहीं है? यह संभव तो नहीं लगता, क्योंकि परिवेशी वे गुणवत्ता मानकों में ओजोन भी सम्मिलित है, फिर क्यों यह संस्थान जिस रिपोर्ट में दिल्ली में प्रदूषण कम करने का दावा करता है, उसमें कहीं भी ओजोन का उल्लेख तक नहीं करता?

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