हिंदू राष्ट्र, एनआरसी और 370 पर देश को उलझायी मोदी सरकार आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह विफल!

Update: 2019-09-01 13:27 GMT

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह करते हैं दावा, अकेले ऑटोमोबाइल सेक्टर में ही 3.5 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं। असंगठित क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर नौकरियां गईं, जिससे कमजोर तबके के मजदूरों के सामने आजीविका का संकट हो गया है खड़ा...

जेपी सिंह की टिप्पणी

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीनीत भाजपा सरकार में अर्थव्यवस्था संभालने की सलाहियत नहीं है? क्या मोदी के वित्तमंत्रियों में वित्त मंत्रालय संभालने की क्षमता नहीं है? क्या मोड़ सरकार को परोक्ष रूप से नियंत्रित करने वाले मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आर्थिक रणनीतिकारों की सारी रणनीति फेल हो गयी है? आखिर आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार पूरी तरह असहाय क्यों नज़र आ रही है?

पिछली तिमाही की जीडीपी विकास दर 5 फीसद रहने का जिम्मेदार कौन है? यदि पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की मानें तो इसके लिए मोदी सरकार कुप्रबंधन पूरी तरह जिम्मेदार है। आर्थिक मामलों के अन्य जानकारों का कहना है कि यह प्रदर्शन नरेंद्र मोदी सरकार की कमजोर नीतियों का परिणाम है।

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने डूब रही अर्थव्यवस्था पर नरेन्द्र मोदी सरकार पर हल्ला बोल दिया है और इसके लिए सीधे तौर पर मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि यह मानव जनित संकट है, जो कुप्रबंधन के चलते पैदा हुआ है।

नमोहन सिंह ने कहा कि पिछली तिमाही की जीडीपी ग्रोथ 5 फीसद रही है। इससे स्पष्ट है कि देश गहरे मंदी के दौर में है। भारत के पास ज्यादा तेज गति से वृद्धि की क्षमता है, लेकिन मोदी सरकार के चतुर्दिक कुप्रबंधन से हालात बिगड़े हैं। मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत इस रास्ते पर बहुत दिन तक नहीं चल सकता, इसलिए मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि वह बदले राजनीति करने के बजाय और सभी आवाज़ों और सोच तक पहुँचकर हमारी अर्थव्यवस्था को इस मानव निर्मित संकट से बाहर निकाले।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कमजोर ग्रोथ पर मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि यह महज 0.6 पर्सेंट रह गई है। इससे स्पष्ट है कि हमारी इकोनॉमी अब तक नोटबंदी जैसी मानवजनित गलतियों से उबर नहीं सकी है। इसके अलावा गलत तरीके से लागू जीएसटी से भी इकॉनमी की हालत खराब हुई है। घरेलू मांग और उपभोग में ग्रोथ 18 महीने के निचले स्तर पर है। जीडीपी ग्रोथ भी 15 साल में सबसे कम है। इसके अलावा टैक्स रेवेन्यू में भी कमी है। छोटे से लेकर बड़े कारोबारियों तक में टैक्स टेररिज्म का खौफ है। इन्वेस्टर्स में भी आशंका का माहौल है और ऐसे संकेतों से पता चलता है कि इकॉनमी की रिकवरी अभी संभव नहीं है।

मोदी सरकार पर जॉबलेस ग्रोथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए पूर्व पीएम ने दावा किया कि अकेले ऑटोमोबाइल सेक्टर में ही 3.5 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं। इसके अलावा असंगठित क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर नौकरियां गई हैं, जिससे कमजोर तबके के मजदूरों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है।

ग्रामीण भारत में स्थिति विपरीत है। किसानों को उनकी फसलों का पूरा दाम नहीं मिल रहा है और आय में लगातार गिरावट आ रही है। मोदी सरकार कम महंगाई दर को अपनी सफलता बता रही है, लेकिन यह किसानों की कीमत पर है, जो कि देश की आबादी का 50 फीसदी हिस्सा हैं।

र्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला का मानना है कि नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्यमों को ख़त्म कर दिया या फिर दबाव में डाल दिया है। नोटबंदी और जीएसटी की नीतियों का असर तत्काल दिखा, लेकिन जैसे बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है, वैसे ही इसने अर्थव्यवस्था को कमजोर करना शुरू कर दिया था।

रिष्ठ आर्थिक पत्रकार एमके वेणु का मानना है कि आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि अर्थव्यवस्था बुरे दौर में प्रवेश कर रही है। ऑटो सेक्टर, कंज्यूमर गुड्स की बिक्री घटी है, ये आंकड़े उसी का नतीजा हैं। एमके वेणु कहते हैं, लोगों को लगा कि नई सरकार में अर्थव्यवस्था की बेहतरी पर ध्यान दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार अपने बड़े जनाधार का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था पर न करके राजनीतिक मुद्दों पर कर रही है। वो हिंदू राष्ट्रवाद, राम मंदिर, कश्मीर, तीन तलाक़ जैसे मुद्दों को तवज्जो दे रही है।

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