भारत में बढ़ती असमानता का कारण ये 63 पूंजीपति, जिनके पास देश के कुल बजट से भी ज्यादा पैसा

Update: 2020-01-21 05:17 GMT

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महिलाएं रोजाना 3.26 अरब घंटे के बराबर ऐसे काम करती हैं, जिसके लिये उन्हें कोई मूल्य नहीं चुकाया जाता। उल्टा वे शोषण का शिकार होती हैं। हमारे देश में ही रोजाना महिलायें 19 लाख करोड़ रुपये के ऐसे काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें एक भी पैसा नहीं मिलता....

जनज्वार। एक तरफ देश की आर्थिक हालत लगातार खराब होती जा रही है, जीडीपी गिर रही है, किसान, मजदूर, बेरोजगारों की आत्महत्याओं का आंकड़ा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। देशभर में तमाम फैक्ट्रियों, कंपनियों, बैंकों में स्लोडाउन, शटडाउन, छंटनी का दौर जारी है। ऐसे में यह रिपोर्ट चौंकाती है कि देश के कल 63 अरबपतियों के पास कुल संपत्ति देश के बजट से भी ज्यादा है।

सोमवार 20 जनवरी को ऑक्सफेम द्वारा किये गये ​अध्ययन पर जारी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि भारत में 63 अरबपतियों के पास 2018-19 के आम बजट की राशि 24,42,200 करोड़ से भी अधिक संपत्ति है। यानी देश के कुल 1 फीसदी इन अमीरों के पास 70% गरीब आबादी (95.3 करोड़) की तुलना में चार गुना से भी ज्यादा पैसा है।

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गौरतलब है कि ऑक्सफेम मानवाधिकारों की पैरवी करने वाला संगठन है और उसने आर्थिक मंच की बैठक से पहले ‘टाइम टू केयर’ अध्ययन जारी किया, जिसमें भारत को लेकर यह खतरनाक खुलासा किया है।

स अध्ययन के मुताबिक देश में आर्थिक असमानता बहुत तेजी से बढ़ी है। आर्थिक असमानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले दशक यानी 2010-2019 के बीच जहां देश में अरबपतियों की संख्या दोगुनी हुई है, वहीं गरीबों-मजदूरों और किसानों की आत्महत्याओं की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ रही है। अब तो बेरोजगारी के चलते बड़े पैमाने पर युवा भी आत्महतया कर रहे हैं।

पूरी दुनियाभर के लिहाज से ऑक्सफेम के अध्ययन को देखा जाये तो 1% अमीरजादों के पास संयुक्त तौर पर 92% गरीबों के पास जितनी संपत्ति है, उससे दोगुनी संपत्ति है। हैरतनाक यह भी है कि 2,153 अरबपतियों के पास दुनिया की 60% गरीब आबादी की संपत्ति से भी ज्यादा धन है।

ढ़ती असमानता की खाई पर वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं, 'भारत में बढ़ती असमानता का कारण ये 63 पूंजीपति तो हैं, लेकिन हमारी अर्थव्यस्था का स्वरूप ही ऐसा है कि अगले साल हो सकता है इससे भी कम पूंजीपति हमारे देश के कुल बजट से आगे निकल जाएं। दरअसल, भारतीय विकास का ढांचा 1947 से ही ऊपर से नीचे की ओर का है। यह कभी उत्पादकों और गरीबों के पक्ष में बना ही नहीं। 1991 में नई आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद उसका प्रभाव और बढ़ा है, इसलिए अमीरी—गरीबी की खाई निरंतर गहराती जा रही है। देश के बजट का 94 प्रतिशत संगठित क्षेत्र में सरकार खर्च करती है, जो कुल 6 प्रतिशत आबादी है, जबकि 94 फीसदी आबादी पर बजट का सिर्फ 6 प्रतिशत खर्च होता है। इसके कारण बड़ी आबादी बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित रह जाती है, जिसके कारण उन्हें बेहतर रोजगार नहीं मिलता है। कल्पना कीजिए यह कितनी बड़ी असमानता है कि देश के 45 फीसदी किसानों पर बजट का सिर्फ 5 प्रतिशत खर्च किया जाता है। 40 साल पहले कोठारी कमीशन ने कहा शिक्षा पर सरकार 6 प्रतिशत खर्च करे, जो अब तक 4 प्रतिशत से अधिक नहीं हुआ। अस्पताल पर 3 प्रतिशत खर्च करना था, जो कभी 1.2 प्रतिशत से अधिक न हुआ। जब शिक्षा और स्वास्थ्य ही बेहतर नहीं होंगे तो रोजगार कहां से पनपेगा। अगर हम समान और बेहतर शिक्षा देते तो रोजगार भी बढ़ता। देश में स्किल की बड़ी समस्या है, क्योंकि प्राइवेट और सरकारी स्कूलों को स्तर ऐसा है कि उसमें औसत से भी कम कार्यक्षमता वाले बच्चे पढ़कर निकलते हैं।'

महिलाओं को श्रम का नहीं मिलता कोई मूल्य

ऑक्सफेम रिपोर्ट में कहा गया कि दुनियाभर में महिलायें और लड़कियां रोजाना प्रतिघंटा 3.26 अरब रुपये मूल्य का ऐसा काम करती हैं, जिसके लिए उन्हें पैसे नहीं मिलते हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में कम से कम 19 लाख करोड़ रुपये के योगदान के बराबर है, जो कि 2019 के भारत के 93 हजार करोड़ रुपये के शिक्षा बजट का 20 गुना है। उल्टा वे शोषण का शिकार होती हैं।

क्सफेम का अध्ययन बताता है कि विश्व के 1 फीसदी अमीरों पर यदि 10 साल के लिए मात्र 0.5% आयकर बढ़ा दिया जाये तो आम जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में 11.7 करोड़ नौकरियां मिल जायेंगी।

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10 मिनट में एक घरेलू कामगार की सालाना सेलरी से ज्यादा कमाते लेते हैं सीईओ

विश्वस्तर पर हो या सिर्फ हमारे देश में ही देखा जाये आर्थिक असमानता एक ऐसी खाई है जिसने अमीरों को और अमीर और गरीबों को और गरीब बने रहने को विवश किया है। यह आंकड़ा कितना चौंकाने वाला है आईटी कंपनी के सीईओ 106 रुपये प्रति सेकेंड के हिसाब से कमाई करते हैं। यानी एक घरेलू मजदूर सालभर में भी उतना पैसा नहीं कमा पाता, जितना आईटी कंपनी का एक सीईओ 10 मिनट में कमा लेता है।

पनी रिपोर्ट जारी करने के बाद मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले संगठन ऑक्सफेम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने कहा कि 'अमीर और गरीब के बीच की खाई को खत्म करने के लिए असामनता फैलाने वाली नीतियों के खिलाफ कदम उठाने होंगे और बहुत कम सरकारें इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। यानी सरकारों की तरफ से इसके लिए कुछ नहीं किया जा रहा है।'

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