डॉ. गिरिराज किशोर का 'जनज्वार' पर आखिरी इंटरव्यू : 'हिंदू-मुस्लिम की तबकापरस्ती में उलझ गया देश का भविष्य'
नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर पूरे देश में एक नई बहस छिड़ी हुई है। कई जगह हिंसक घटनाएं भी देखने को मिलीं हैं लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सबसे पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध किया था। यह दावा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार गिरिराज किशोर ने अपनी किताब 'पहला गिरमिटिया' में किया गया था। गिरिराज किशोर का 9 फरवरी 2020 को निधन हो गया। नागरिकता संशोधन अधिनियम और देश के मौजूदा हालातों पर लेखक गिरिराज किशोर क्या राय रखते थे, निधन से कुछ दिन पहले मनीष दुबे ने उनसे विस्तार से बातचीत की थी, पेश हैं बातचीत के कुछ अंश..
सवाल- सबसे पहले 'गिरमिटिया' जो शब्द है उसके बारे में बताएं। इसका अर्थ क्या है ताकि हमारे पाठक भी इसे समझें?
जवाब- 'गिरमिटिया' शब्द में वो लोग आते थे जो दूसरे देशों को एक्सपोर्ट कर दिए जाते थे। मजदूरी कराने करने के लिए दे दिए जाते थे। 'गिरमिट' शब्द 'एग्रीमेंट' से बना था। तो वो लोग एग्रीमेंट बोल नहीं पाते थे तब गिरमिट कहने लगे और आज के समय मे देखेंगे कि वहां पर 'गिरमिट' शब्द आधिकारिक हो गया है। वहां जो बाहर से नौकरी या किसी अन्य काम के लिए आते हैं। उनका किसी से लेना देना नहीं होता। किसी से कोई संपर्क नहीं होता था। तो वो 'गिरमिट' कहलाते थे। उनके लिए बाकायदा कॉलोनियां तक बनवाई गईं जिसमे वो आकर ठहरते थे। लेकिन दुखद ये है कि उस 'गिरमिटिया' शब्द को हम भारतीयों ने उस तरह से नहीं अपनाया।
जवाब- देखिये ये तो समय का अंतर है। उनके पास समय है। वो कितने रिसोर्सेस के आदमी हैं जो इस समय आंदोलन कर रहे हैं। उसमें सब बड़े-छोटे लोग हैं लेकिन उस जमाने मे ऐसा कुछ नहीं था। लोग मार खाते थे लेकिन हिंदुस्तान की बात करते थे। अपने बुजुर्गों की बात करते थे। एक तरह से अपने आप को समझते थे कि हम इन्हीं लोगों के अंश हैं।
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सवाल- मौजूद समय मे जो भाजपा सरकार ये जो कानून लेकर आई है कितना उचित है और आगे चलकर कितना सार्थक होगा ?
जवाब- इस कानून के बारे में इन्होंने अभी तक किसी को बताया ही नहीं है कि इसमें में क्या है और किस आधार पर वो लेकर आये हैं ? सिर्फ हुआ ये कि जो लोग इस दृष्टि से कि हम परिवर्तन करेंगे पर अभी उस तरीके का परिवर्तन हो नहीं पाया है। आगे हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है। पर आप ये समझ लीजिए कि अभी भी हमारे देश का एक बड़ा तबका हिन्दू-मुसलमान में बंटा हुआ है और हिन्दू-मुसलमान की इस तबकापरस्ती मे देश का भविष्य है वो उलझ गया है।
सवाल- सीएए और एनआरसी को लेकर जो एक वर्ग विशेष में डर है तो क्या उनका डर वाजिब है?
जवाब - बात ये है ना कि अभी तक किसी को स्पष्ट नहीं है कि हिंदुस्तान क्या कह रहा है? देखिये 200 से 250 साल पहले ये लोग जब विदेशों में गए तो वहां एक सामान्य व्यक्ति की तरह काम करते रहे। लेकिन अब स्थिति ये आ गई है कि धर्म को लेकर ज्यादा बातचीत हो रही है। अभी हाल के दिनों में जो भी जेल गया उसे भी अपनी जड़ों का पता नहीं है। वो बस ये जरूर जानता होगा कि भारतीय वंशज है। तो मैं तो ये समझता हूं कि अब वक्त है कि सबको एक साथ मिलकर काम करना चाहिए।
जवाब - देखिये लोग भ्रमित हैं जो ऐसा कर रहे हैं। सबसे पहले इन्हें अपनी जड़ों को तलाशना चाहिए। उल्टा सीधा बोले, बयानबाजी करके जेल चले गए, लौटकर नेता बन गए। इनको इनका मूल उद्देश्य नहीं पता है। इन्हें पता ही नहीं कि नेता बनकर करना क्या है? अपनी तिजोरियां भरने के सिवाय कुछ भी तो नहीं करते।
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सवाल- एक आखिरी सवाल कि क्या केंद्र की मोदी और सूबे की योगी सरकार अपनी लीक पर ठीक चल रही है, सही काम कर रही है?
जवाब- नहीं, ठीक का तो सवाल ही नहीं। अभी देखिये ये कई ऐसे संगठन आए हैं जो आमजन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। महात्मा गांधी हर वर्ग हर तबके के लोगों तक जाकर जुड़ते मिलते थे जिसमें ये फेल हैं। अब ऐसा नहीं हो रहा है। लोग आ रहे हैं, सोचते हैं कि हम किसी बड़े नेता के साथ हो जाएं और अपने-अपने लोगों के लिए कुछ जोड़ लें।