आज दुनिया के मजदूरों का दिन : मई दिवस
1 मई दुनिया भर के मजदूरों का एक ऐसा त्यौहार है जो मजदूरों को 1884 के अमेरिका के शिकागो शहर में शहीद हुए चार मजदूर योद्धाओं की याद दिलाता है। फिशर, स्पाइस, पार्सन्स, एजेंल्स नाम के ये मजदूर नेता 8 घंटे काम के दिन का झंडा उठाये हुए थे इनसे भयाक्रांत पूंजीपतियों की सरकार ने इन्हें तो फांसी पर लटका दिया पर वे मजदूरों की 8 घंटे के कार्य दिवस की मांग के आगे झुकने को मजबूर हो गये। 8 घंटे के कार्य दिवस को एक-एक कर दुनिया के तमाम देशों में लागू करवाने के कानून बनने लगे।
मई दिवस के शहीद न तो मजदूर वर्ग के पहले शहीद थे न आखिरी। मजदूरों के संघर्षों और साथ ही इन संघर्षों की शुरूआत काफी पहले तभी से शुरू हो गयी थी जब दुनिया में पूंजीवादी व्यवस्था अपने को स्थापित कर रही थी। पूंजीपति व मजदूर दो विरोधी ध्रुवों की तरह अस्तित्व में आये थे। दोनों का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर था पर दोनों के हित एक दूसरे के विपरीत थे। पूंजीवाद के शुरूआती दिनों में मजदूर वर्ग ने वह वक्त भी झेला था। जब काम के दिन 16-18 घंटे तक के होते थे। जब मजदूरों को सूरज की रोशनी देखे हफ्तों बीत जाते थे। वे सूरज उगने से पहले फैक्टरी में घुसते थे और सूरज डूबने के काफी वक्त बाद काम से छुट्टी पाते थे।
इन्हीं बुरे हालातों में मजदूरों ने क्रमशः लड़ना सीखा। पूंजीपति के खिलाफ अपनी दुर्दशा को बदलने के लिए पहले मजदूर अकेले-अकेले लड़े। धीरे-धीरे उन्हें अहसास हुआ कि अकेले-अकेले मजदूर पूंजी की ताकत के आगे कुछ नहीं हैं। फिर उन्होंने एकजुट होकर लड़ना शुरू किया। उनकी इस एकजुटता से उन्हें कुछ सफलता भी मिली और इस तरह मजदूरों ने एकजुटता की ताकत का अहसास किया। उन्होंने शुरूआती यूनियनों की स्थापना की ओर कदम बढ़ाये।
मजदूर अभी लड़ना सीख ही रहे थे कि 19 वीं सदी की शुरूआती दशकों में उनका सामना एक नई विपत्ति से आ पड़ा। इन नई विपत्ति का नाम था मंदी। एक झटके से ढेरों मजदूर काम से निकाले जाने लगे, उत्पादन ठप्प पड़ने लगा। पूंजीपतियों का मुनाफा जरूर कम हुआ पर मंदी की मार सबसे अधिक मजदूर वर्ग ने झेली। कुछ वर्षों बाद फिर तेजी आ गयी।
तेजी से विकास कर रहे पूंजीवाद में पूंजी की बढ़ती ताकत के साथ मजदूर वर्ग की संख्या भी बढ़ रही थी। यूरोप के एक के बाद दूसरे शहरों में पूंजीवाद अपने पैर पसार रहा था। मजदूरों की बढ़ती तादाद ने क्रमशः उसे अपनी ताकत का अहसास कराया। 1840 के आस-आस मजदूर वर्ग एक वर्ग के बतौर इतिहास के रंगमंच पर दिखाई देने लगा। ब्रिटेन में चार्टिस्ट पार्टी के रूप में उसने अपनी पार्टी स्थापित कर पूंजीपतियों से श्रम दशा सुधारने, काम के घंटे कम करने सरीखी मांगे पेश करनी शुरू कर दीं।
1848 में जब पूरे यूरोप में क्रांति की लहर उठ रही थी तो इस लहर में मजदूर वर्ग बढ़-चढ़कर शिरकत कर रहा था। इसी दौरान मजदूर वर्ग के महान शिक्षक मार्क्स और एंगेल्स द्वारा मजदूर वर्ग की वैज्ञानिक विचारधारा सूत्रित की गयी। कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र के जरिये मजदूर वर्ग ने पूंजीपति वर्ग को अपने इंकलाबी मंसूबे जाहिर कर दिये।
महान शिक्षक मार्क्स व एंगेल्स ने मजदूर वर्ग को शिक्षित किया कि मजदूर वर्ग की श्रमशक्ति की लूट से ही पूंजीपति वर्ग मुनाफा कमाता है। कि जब तक मजदूर वर्ग की श्रमशक्ति की खरीद-बेच करने वाली पूंजीवादी व्यवस्था कायम है तब तक मजदूर वर्ग के जीवन में खुशहाली नहीं आ सकती। साथ ही उन्होंने मजदूर वर्ग को इस ऐतिहासिक ध्येय से भी परिचित कराया कि मजदूर वर्ग आज का सबसे क्रांतिकारी वर्ग है और उसका लक्ष्य पूंजीवाद का नाश कर समाजवाद व फिर साम्यवाद की स्थापना करना है।
अपनी वैज्ञानिक विचारधारा मार्क्सवाद को अपनाने के जरिये मजदूर वर्ग के संघर्षों में तेजी आनी शुरू हुई। 1864 में लंदन में मजदूरों का प्रथम इंटरनेशनल कायम हुआ। 1871 में पेरिस के मजदूरों ने बहादुरी का परिचय देते हुए पूंजीपतियों को खदेड़ पहला मजदूर शासन पेरिस कम्यून के रूप में कायम किया, 71 दिन तक चले इस शासन को बाद में पूंजीपतियों ने कुचल दिया इस संघर्ष में एक लाख मजदूरोें ने कुर्बानी दी।
इस दौरान मार्क्सवाद को तमाम विजातीय विचारधाराओं से भी टकराना पड़ा। पर वैज्ञानिक विचारधारा मार्क्सवाद मजदूर वर्ग के भीतर की गलत विचारधाराओं को परास्त करने में सफल रही।
1884 के शिकागो में शहीदों ने मजदूर वर्ग को उनका त्यौहार अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में प्रदान किया।
1917 में रूस में अक्टूबर क्रांति के जरिये जब मजदूर वर्ग ने पूंजीपति वर्ग की सत्ता पलट दी तो इस क्रांति की धमक पूरी दुनिया में महसूस की गयी। दुनिया के सबसे बड़े देश पर अब मजदूरों का लाल झंडा लहरा रहा था। समाजवाद के निर्माण के जरिये मजदूरों के उठते जीवन स्तर से दुनियाभर के मजदूर अपने दिलों में रूसी क्रांति दोहराने का संकल्प ले रहे थे।
द्वितीय विश्व युद्ध का अंत होते-होते 13 देशों का समाजवादी खेमा अस्तित्व में आ चुका था। 1949 में चीन में हुई क्रांति ने दुनिया के एक तिहाई हिस्से पर मजदूरों का शासन कायम कर दिया। पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के दिन अब गिने चुने लग रहे थे। पर सोवियत संघ में 1956 में पंूंजीवादी तख्तापलट करने और 1976 में माओ की मृत्यु के बाद देंग के नेतृत्व में पूंजीवादी रास्ता अपनाने से समाजवादी राज्य खत्म हो गये। मजदूर वर्ग से उनकी जीवन की खुशहाली छीन रूस-चीन में उन्हें पूूंजीवादी शोषण के जूए में ढकेल दिया गया।
समाजवाद की इस वक्ती पराजय ने दुनियाभर के मजदूर संघर्षों पर बुरा प्रभाव डाला। पूंजीपति वर्ग एक बार फिर से आक्रामक मुद्रा में मजदूरों को नोचने-खसोटने में सफल होने लगा।
मजदूर वर्ग वैश्विक तौर पर पीछे हटने लगा। उसे हासिल तमाम अधिकार एक-एक कर छीने जाने लगे। उसके संगठन कमजोर पड़ने लगे।
कुल मिलाकर 21 वीं सदी की शुरूआत तक यही स्थिति बनी रही। पूंजीपति वर्ग उदारीकरण-वैश्वीकरण के जरिये मजदूरों पर हमले बोल रहा था और मजदूर वर्ग बचाव की मुद्रा में खड़ा था। वह अगले पलटवार के लिए ऊर्जा जुटा रहा था।
हमारे देश भारत में भी हालात कुछ ऐसे ही थे। पर 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट ने पूंजीपतियों को मजदूरों पर और हमले की ओर ढकेला पहले से निचोड़े जा चुके मजदूर वर्ग को पूंजी और निचोड़ने के प्रयास करने लगी। पर अब मजदूर वर्ग को और निचोड़ा जाना संभव नहीं था।
परिणाम यह हुआ कि पिछले 5-6 वर्षों में पूरी दुनिया के साथ हमारे देश भारत में मजदूर संघर्षों के नये उफान के पैदा होने के संकेत मिलने लगे हैं। दुनियाभर में कटौती कार्यक्रमों के खिलाफ मजदूर सड़कों पर उतर रहे हैं। अरब जन विद्रोहों में मजदूर वर्ग बढ़ चढ़कर भूमिका निभा रहा था। खुद अमेरिका के आक्युपाई आंदोलन में भी वह सड़कों पर डटा था। अफ्रीका में खान मजदूर लड़ रहे हैं तो बांग्लादेश में गारमेंट मजदूर।
हमारे देश में भी मारूति मजदूरों के संघर्ष के साथ तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूर वर्ग के संघर्ष बढ़ रहे हैं। मजदूर वर्ग इन संघर्षों के जरिये प्रशिक्षित हो अधिक व्यापक एकता की ओर बढ़ रहा है यह सब आने वाले दिनों के लिए शुभ संकेत हैं।
पर देश में सारे संकेत मजदूरों के शुभ संकेत नहीं है। 2014 के आम चुनाव में सत्ताशीन मोदी सरकार आज मजदूरों को हासिल श्रम कानूनों को छीनने का प्रयास कर रही है। देशी-विदेशी पूंजी को ‘मेक इन इंडिया’ नारे के तहत देश में आने की दावत दी जा रही है। ‘मेक इन इंडिया’ के नारे में मजदूरों का निर्मम शोषण छिपा हुआ है। फासीवादी मंसूबे रखने वाली मोदी सरकार मजदूरों के जीवन को नरक बनाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रही है।
इन्हीं परिस्थितियों में इस वर्ष का मई दिवस हमारे सामने है। इन परिस्थितियों में मजदूर वर्ग के सामने अधिकारों के छीने जाने का खतरा है तो संघर्षों की बढ़ती के रूप में भविष्य के शुभ संकेत भी हैं।
हमारे देश में भी मजदूर संघर्षों की एक जुझारू परंपरा रही है। मजदूरों ने त्याग और कुर्बानी की एक से बढ़कर एक मिसालें पेश की है। पर पिछले कुछ दशकों से मजदूर आंदोलन के पीछे हटने के कारण इस सबकी स्मृति आम मजदूरों में कमजोर पड़ गयी है। साथ ही संसदीय वामपंथियों की गद्दारी के चलते मजदूरों का एक हिस्सा मार्क्सवाद से ही दूर हो चुका है यहां तक कि एक बड़ा हिस्सा फासीवादी तत्वों के प्रभाव में भी है।
आज भी हमारे देश का मजदूर आंदोलन बिखरा हुआ है। अलग-अलग फैक्टरी, संस्थानों में यूनियनें अलग-अलग लड़ रही हैं। इनका कोई देशव्यापी क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन सेंटर मौजूद नहीं है।
मजदूर वर्ग से छीने जाने वाले अधिकारों की हालत यह है कि श्रम कानूनों को व्यवहार में लागू किया जाना बंद होेता जा रहा है। यहां तक कि यूनियन बनाना भी अपराध सरीखा बना दिया गया है। सरकार निवेश बढ़ाने के नाम पर पूंजीपतियों को एक पल के लिए भी नाखुश नहीं करना चाहती पर साथ ही मजदूरों पर लाठी गोली चलाने तक से परहेज नहीं कर रही है।
मजदूरों के काम के घंटे फिर से व्यवहारतः 10 से 12 घंटे तक पहुंचा दिये गये हैं। उनसे ठेके पर अधिकाधिक काम लिया जा रहा हैं और बदले में न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जा रही है। यह सब हमारे सामने एक चुनौतीपूर्ण तस्वीर पेश कर रहा है। ऐसे वक्त में वर्ग सचेत मजदूरों का लक्ष्य बनता है कि-
-मजदूर वर्ग की वैज्ञानिक विचारधारा मार्क्सवाद को मजदूरों के बीच प्रचारित कर क्रांति में उनके विश्वास को पुनर्जीवित करें। उसे ऐतिहासिक लक्ष्य पर उसे खड़ा करें।
-मजदूर वर्ग को श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ मजदूरों को लामबंद करें। संघर्षों के दम पर इस दिशा में सरकार के बढ़ते कदमों को रोकने का प्रयास करें।
-मजदूर वर्ग को पूंजीवादी-संशोधनवादी-फासीवादी ताकतों के चंगुल से बाहर लाने के लिए मजदूर वर्ग के सम्मुख इनके पूंजीपरस्त चरित्र का भंड़ाफोड़ करें।
-मजदूरों के बिखरे संघर्षों-यूनियनों को देशव्यापी पैमाने पर एक क्रांतिकारी टेªड यूनियन सेंटर में लामबंद करें।
-सभी क्रांतिकारी संगठन मिलकर एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना के चैतरफा प्रयास किये जायं।
-फासीवादी ताकतों के नापाक मंसूबों को बेपर्दा करें।
कुल मिलाकर ये सभी कार्यभार आज वर्ग सचेत मजदूरों के सम्मुख उपस्थित हैं। मई दिवस मजदूर वर्ग के संघर्षों का संकल्प लेने का दिन है। इसलिए इस मई दिवस पर हमें अपने संकल्प को मजबूत बनाते हुए भविष्य के शुभ संकेतों को वास्तविकता में बदलने के लिए जी-जान से जुट जाना होगा।
2008 से शुरू वैश्विक मंदी का लगातार गहराते जाना पूंजीपति वर्ग की तमाम कोशिशों के बावजूद किसी हल की ओर न बढ़ना इस बात का संकेत है कि पूंजीवाद-साम्राज्यवाद इतिहास की सड़गल रही अवस्था हैं जिसका कोई भविष्य नहीं है। जिस पर एक भरपूर लात लगा मजदूर वर्ग को समाजवाद के सूर्योदय को लाना है।
मजदूर वर्ग के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जीतने के लिए सारी दुनिया हैं। पूंजीपति वर्ग की हार और मजदूर वर्ग की जीत दोनों निश्चित है।
(नागरिक डॉट कॉम से साभार )