देश में जहां धारा 370 नहीं है, वहां गरीबी और भ्रष्टाचार क्यों है, वहां लोकतंत्र क्यों नहीं है और फिर पूरा देश ही महिलाओं, दलितों और जनजातियों को क्यों लूट रहा है...
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
क्या जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को सरकार भारत का नागरिक नहीं मानती? यह सवाल इसलिए उठ खड़ा हुआ है क्योंकि वहां जनता ने धारा 370 हटाने को नहीं कहा, फिर भी इसे हटा दिया। वहां की जनता जिस आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट का विरोध करती रही, उसके बारे में तो चर्चा भी नहीं की गयी। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का नारा देने वाली सरकार ने जम्मू-कश्मीर को अब दो केन्द्रशासित प्रदेश में विभाजित कर दिया है। इसके लिए भारी विरोध के बाद भी संसद का सत्र बढ़ाया गया।
राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा की धारा 370 के कारण वहां लोकतंत्र नहीं पनप पाया। इससे गरीबी और भ्रष्टाचार बढ़ा और यह धारा महिलाओं, दलितों और जनजातियों के विरुद्ध है। गृहमंत्री को यह जरूर बताना चाहिए था कि देश में जहां धारा 370 नहीं है, वहां गरीबी और भ्रष्टाचार क्यों है, वहां लोकतंत्र क्यों नहीं है और फिर पूरा देश ही महिलाओं, दलितों और जनजातियों को क्यों लूट रहा है?
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वैसे गृहमंत्री का लोकतंत्र भी अजीब है, चप्पे-चप्पे पर अर्धसैनिक बलों और सेना के गश्त के बीच इसका ऐलान किया जाता है, सभी प्रमुख़ नेताओं को नजरबंद कर दिया जाया है, धारा 144 लागू की जाती है और फ़ोन सेवायें और इंटररनेट को ठप्प कर दिया जाता है।
पूरी दुनिया में बीजेपी के ऐसे लोकतंत्र का कोई दूसरा उदाहरण नहीं होगा। कई नेताओं को हिरासत में भी ले लिया गया है। जम्मू में सभी स्कूल कॉलेजों को बंद कर दिया गया है, महत्वपूर्ण संस्थानों और संवेदनशील क्षेत्रों की चौकसी बढ़ा दी गई है। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बल तैनात हैं। कमाल का लोकतंत्र है।
पिछले वर्ष से जम्मू और कश्मीर की खबरें कम ही आ रही हैं। वहां के अनेक समाचार पत्र का प्रकाशन रोक दिया गया है और पत्रकारों को सरकार के मतलब की खबरें करने को कहा जा रहा है। इंटरनेट सेवा को प्रायः रोक दिया जाता है। पर ऐसा नहीं था की दुनिया यह मान रही थी की वहां सबकुछ ठीकठाक है।
2011 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में लिखित रूप में आश्वासन दिया था कि उनके प्रतिनिधियों का भारत हमेशा स्वागत करेगा। इसके बाद भी जम्मू और कश्मीर के मसले पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने वहां जाकर स्थिति का आकलन करने की अनुमति के लिए वर्ष 2016 से 2018 के बीच 58 पत्र लिखे, पर सरकार ने किसी का जवाब नहीं दिया।
जिनेवा स्थित ह्यूमन राइट्स कौंसिल के प्रतिनिधियों ने वर्ष 2018 में 27 और 2019 में 7 पत्र लिखे पर सरकार ने किसी का जवाब नहीं दिया। यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र ने जम्मू और कश्मीर पर जितनी भी रिपोर्ट प्रकाशित कीं, सबको भारत सरकार ने खारिज कर दिया। इस कौंसिल ने वर्ष 2018 में ज्यादतियों की एक सूची तैयार की है, जिसमें से एक घटना में सुरक्षा बलों ने 4 बच्चों को भी मार डाला था।
पिछले वर्ष जम्मू और काश्मीर के दो गैर-सरकारी संगठनों ने वहां मानवाधिकार के हालात से सम्बंधित विस्तृत रिपोर्ट तैयार की, जिसके अनुसार सुरक्षा बलों द्वारा जितने लोगों को यातना दी गयी उसमें से 70 प्रतिशत निर्दोष लोग थे और इनमें से 11 प्रतिशत की मृत्यु यातना देने के कारण हो गयी।
जून के अंत में संयुक्त राष्ट्र के हाई कमीशन फॉर ह्यूमन राइट्स ने जम्मू और कश्मीर से सम्बंधित एक 43 पृष्ठों की रिपोर्ट प्रकाशित की। इसके अनुसार इस पूरे प्रदेश में भारत और पाकिस्तान अपने इलाके में मानवाधिकारों का लगातार उल्लंघन करते जा रहे हैं। रिपोर्ट में सरकार से अनुरोध किया गया है कि एक विशेष जांच दल बनाकर ऐसे सभी मामलों की जांच की जाए।
जे एंड के कोएलिशन ऑफ़ सिविल सोसाइटी के अनुसार वर्ष 2018 के दौरान इस पूरे इलाके में कुल 586 लोग मारे गए, जिसमें से 160 आम नागरिक थे और 159 सुरक्षाबलों के जवान थे। यह संख्या वर्ष 2008 के बाद से सबसे अधिक है। इसके अनुसार इस पूरे राज्य में मानवाधिकार तो दूर, जीने का अधिकार भी नहीं है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि तमाम यातनाओं और ज्यादतियों के बाद भी एक भी सुरक्षाकर्मी पर किसी सिविल कोर्ट में कोई भी मुक़दमा नहीं चला।