गंगा टाना भगत पुराने कांग्रेसी रहे हैं और अस्सी के दशक में कांग्रेस के टिकट पर वे विधायक भी बने थे। भगत की अपने समुदाय के लोगों में अच्छी पैठ है। उनके कांग्रेस छोड़कर जाने को टाना भगतों का कांग्रेस से इतर दूसरी राह खोजने का प्रयास माना जा रहा है...
रांची से अनिमेश बागची की रिपोर्ट
साधारण हाव-भाव और वेशभूषा, मासूम और सपाट चेहरों और काफी हद तक साधारण जिंदगी जीने वाले झारखंड के टाना भगत मानो आधुनिकता की दौड़ में आज भी मीलों दूर नजर आते हैं। इनकी जीवन शैली आधुनिक समाज से अलहदा ही दिखायी देती है। अपने आपको महात्मा गांधी का अनुयायी बताने वाले टाना भगतों को पारंपरिक तौर पर कांग्रेस का समर्थक माना जाता है। लेकिन झारखंड में चुनाव के इस मौसम में कभी इनकी चुप्पी, तो कभी इनकी मुखरता यहां के चुनावी बयार में काफी कुछ बयां कर रही है।
पहले चरण के चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के झारखंड दौर के क्रम में खूंटी में एक बड़ी रैली हुई थी। इसमें मोदी ने खासतौर पर टाना भगतों का नाम काफी आदर और सम्मान के साथ खासतौर पर लिया। राज्य के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा खासतौर पर हो रही है कि हाल के वर्षों में जिस तरह से भाजपा ने टाना भगतों को साधने की कोशिशें शुरु की हैं, उससे इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा खासतौर पर भाजपा की ओर आकर्षित हुआ है। इसकी बानगी उस समय भी मिली थी, जब इस समुदाय के एक बड़े नेता गंगा टाना भगत ने कुछ समय पहले अपने सैकड़ों सहयोगियों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया था।
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इस दौरान भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता भी इनकी आवभगत कर रहे थे। गौर करने की बात यह है कि गंगा टाना भगत पुराने कांग्रेसी रहे हैं और अस्सी के दशक में कांग्रेस के टिकट पर वे विधायक भी बने थे। भगत की अपने समुदाय के लोगों में अच्छी पैठ है। उनके कांग्रेस छोड़कर जाने को टाना भगतों का कांग्रेस से इतर दूसरी राह खोजने का प्रयास माना जा रहा है।
अंग्रेजों के जमाने में ब्रतानिया राज के खिलाफ टाना भगतों की बगावत झारखंड के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। माना जाता है कि महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन शुरु करने के पूर्व ही टाना भगतों ने इसी तरह के आंदोलन का श्रीगणेश कर दिया था। उरांव जनजाति के आदिवासियों ने अपने शोषण के खिलाफ जतरा टाना भगत के नेतृत्व में आंदोलन की शुरुआत की थी। इस दौरान जतरा टाना भगत ने सामाजिक सुचिता पर खासा जोर दिया था।
ऐसा भी माना जाता है कि अंग्रेजों के लगातार इनको ताना मारने की वजह से इनका नाम टाना पड़ गया। इनके आंदोलन की खास बात यह भी रही कि उन्होंने अपने आंदोलन के दौरान हिंसा का सहारा लेने से परहेज किया और अहिंसात्मक तरीके से विरोध का सहारा लिया। जब गांधी जी को अपने दौरे के क्रम में उनके बारे में पता चला था, तो उनको भी पहले तो टाना भगतों की जीवन शैली के बारे में सुनकर काफी अजूबा हुआ, लेकिन उनसे मिलने के बाद उनसे प्रभावित हुए बिना वे भी नहीं रह सके थे।
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बाद में इस समुदाय के लोगों ने गांधीजी के नेतृत्व को स्वीकारा और उनके शिष्य बन गये। बाद में कांग्रेस के गया सम्मेलन, नागपुर सत्याग्रह इत्यादि कई कार्यक्रमों के दौरान उन्होंने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम किया था और पूरे देष में सुर्खियां बटोरी थीं। आज भी गांधी टोपी और खादी के कपड़े पहनने वाले टाना भगतों को झारखंड के कई जिलों में देखा जा सकता है।
ये मांस का सेवन करने से परहेज करते हैं। दूसरे आदिवासी समुदाय की तरह मदिरा पान भी नहीं करते। अंधविश्वास से भी कोसों दूर रहा करते हैं। झारखंड के आठ जिलों में टाना भगतों की अच्छी-खासी तादाद है और खासतौर पर राजधानी रांची के अलावा गुमला, लोहरदगा, हजारीबाग और पलामू जैसे जिलों में इनका बसेरा है। राजीनीतिक दल अक्सर इनका इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। चाहे राश्ट्रीय स्तर की में किसी बड़े नेता की रैलीके दौरान भीड़ के जुटान का प्रश्न हो या स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती जैसे कार्यक्रमों में सिरकत का मसला, टाना भगतों की उपस्थिति नेताओं को आवश्यक महसूस होती रही है। लेकिन इनके समुदाय की गरीबी दूर करने के लिए आजादी के इतने सालों बाद भी किसी तरह के सार्थक प्रयास नहीं किये गये।
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हाल के वर्षों में मुख्यमंत्री रघुवरदास ने टाना भगतों के कल्याण के लिए कई कार्यक्रमों की घोषणा की। टाना भगत विकास प्राधिकार के गठन से लेकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इनके आवास के बारे में गंभीरता से सोचने के आश्वासन के अलावा इनके समुदाय के बच्चों के लिए रांची में छात्रावास का निर्माण भी उनको लुभाने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि आपसी बातचीत में टाना भगत सरकारी प्रयासों को नाकाफी मानते हैं। बातचीत के दौरान कई टाना भगत इस बात को सिद्दत से स्वीकार करते हैं कि स्वतंत्रता के बाद से ही उनके उत्थान के लिए जैसे प्रयास होने चाहिए थे, वैसे प्रयास किसी भी सरकार ने नहीं किये। इस बारे में उन्हें सिर्फ आश्वासन के पुलिंदे ही थमाये जाते रहे। कांग्रेस को छोड़कर दूसरी पार्टियों का रुख करने के सवाल पर इस समुदाय के लोगों का यह भी मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान ने भी बड़े पैमाने पर टाना भगतों को भाजपा से जोड़ने में अहम भूमिका निभायी है। अब देखना यह है कि चुनाव में इस समुदाय के लोगों का रुख किस पार्टी के पक्ष में होता है।