झारखंड विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के लिए मतदान जारी, तीसरे चरण में 17 सीटों पर हो रहा मतदान...
अनिमेष बागची की रिपोर्ट
झारखंड में तीसरे चरण के मतदान के लिए राज्य के कई आला नेता रेस में हैं। सूबे के आठ जिलों की 17 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले इस मतदान में कहीं तिकोणीय संघर्श की पृष्ठभूमि बन रही है, तो कहीं मामला बहुकोणीय बन रहा है। झारझंड में तीसरे चरण के चुनाव में कोडरमा, बरकट्ठा, बरही, बड़कागांव, रामगढ़, मांडू, हजारीबाग, सिमरिया, राजधनवार, गोमिया, बेरमो, ईचागढ़, सिल्ली, खिजरी, रांची, हटिया और कांके विधानसभा सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं।अगर ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानि आजसू के लिहाज से देखें, तो खास तौर पर इन 17 सीटों में से मांडू, गोमिया, सिमरिया, बरकागांव, ईचागढ़, रामगढ, खिजरी और सिल्ली जैसी विधानसभा सीटें महत्वपूर्ण मानी जा रही है। तीसरे चरण के इस चुनाव में कई सीटें नक्सल प्रभावित इलाकों में है।
इस बार चुनावों के ऐन वक्त पहले भाजपा से अलग राह पकड़ने वाले आजसू का वोट बैंक इन इलाकों में इन सीटों में हार-जीत का फैसला करने में निर्णायक साबित होता आया है। ऐसे में पार्टी के लिए इन सीटों पर जीतना जहां नाक का सवाल बन गया है, वहीं दूसरी ओर उसे वोटरों के सामने भाजपा से अलग होने का औचित्य भी साबित करना पड़ेगा। वैसे भाजपा ने आजसू प्रमुख सुदेश महतो के विधानसभा क्षेत्र सिल्ली में अपना प्रत्याशी नहीं दिया है।
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तीसरे चरण में होने वाले मतदान के लिए कुल 309 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी हैं। बाबूलाल धनवार विधानसभा क्षेत्र से लड़ रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनको माले के प्रत्याशी राजकुमार यादव ने सिकस्त दी थी। इस सीट पर वाम विचारों का निर्णायक प्रभाव रहा है।
ऐसे में राजकुमार यादव इस बार भी अपनी जीत के लिए रात-दिन एक किये हुए हैं। उनको अपने पारंपरिक वोट बैंक पर भरोसा है। भाजपा ने यहां एक पूर्व पुलिस अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद सिंह को उतारा है। दूसरी ओर महागठबंधन ने पूर्व विधायक निजामुद्दीन अंसारी को आगे किया है। बाबूलाल को यहां खासी चुनौती मिलने की उम्मीद जतायी जा रही है।
झारखंड में इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में राज्य के दो बड़े नेताओं बाबूलाल मरांडी और सुदेश महतो के दरम्यान एक समानता यह है कि दोनों ने सूबे में गठबंधन का रास्ता न पकड़ते हुए एकला चलो की तर्ज पर अलग चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। इससे राज्य में कई सीटों पर बहुकोणीय चुनाव का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है।
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रघुवर सरकार में मंत्री नीरा यादव को कोडरमा क्षेत्र में भाजपा की ही नेता रहीं शालिनी गुप्ता से चुनौती मिल रही है। शालिनी पार्टी से टिकट न मिलने के चलते चुनाव के पहले आजसू में शामिल हो गयी और अब जातीय समीकरण के बूते नीरा यादव को मात देने की कोशिश में हैं। इस बार अन्नपूर्णा देवी का पूरा समर्थन नीरा यादव को मिल रहा है, जिनको पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने चुनाव के ऐन वक्त पहले लालूप्रसाद यादव की पार्टी राजद से भाजपा में शामिल करवा कर राजद को एक बड़ा झटका दिया था। इसके बाद अन्नपूर्णा देवी ने भाजपा के टिकट पर विजयश्री हासिल की थीं। पिछले विधानसभा चुनाव में अन्नपूर्णा को नीरा ने हराया था। यहां इस बार समीकरण पूरी तरह से बदले हुए हैं।
यह कहना आश्चर्य नहीं होगा कि पिछले कुछ सालों से राज्य की राजनीति पर करीबी निगाह रखने वाले राजनीतिक सूरमा भी सूबे की राजनीति में बाबूलाल को एक चूके हुए खिलाड़ी का दर्जा दे रहे थे, लेकिन हाल में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों और तमाम उठापटकों के बाद यह कहना अतिश्योक्ति से पूर्ण नहीं होगा कि मरांडी ने अपने दम पर सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारकर एक बड़ा दांव खेल दिया है और वे ताल ठोंककर बड़े राजनीतिक दलों के सामने अपना दमखम दिखाने के लिए जमकर मेहनत कर रहे हैं।
बाबूलाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) की चुनौती कई सीटों पर तगड़ी बन रही है। हालांकि खुद बाबूलाल की सीट धनवार की बात करें, तो इसमें खुद उनको ही तगड़ी चुनौती से दो—चार होना पड़ रहा है। पिछले चुनाव में उनको भाकपा माले के राजकुमार यादव ने यहां से हरा दिया था। इसके अलावा गिरिडीह सीट पर भी वे हार गये थे। इससे राज्य के राजनीतिक गलियारे में उनके शून्य पर चले जाने की अटकलें जोर पकड़ रही थीं।
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रही—सही कसर उनकी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले आठ में से छह विधायकों ने एक साथ पार्टी छोड़ देकर पूरी कर दी थी। पिछले दस सालों से बाबूलाल लोकसभा के अलावा विधानसभा चुनावों में भी लगातार शिकस्त खाते आ रहे हैं। उनके खासमखास और पार्टी में दूसरे नंबर के नेता का दर्जा रखने वाले प्रदीप यादव से भी पिछले कुछ महीनों से उनके अनबन की खबरों ने जोर पकड़ रखा है। कुछ सालों पहले ऐसी भी अफवाहों ने जोर पकड़ा था कि बाबूलाल भाजपा में जा सकते हैं। लेकिन उन्होंने ऐसी खबरों का जोरदार खंडन किया।
राज्य में महागठबंधन को अस्तित्व में लाने और विपक्षी एकता को धार देने के लिए हालांकि मरांडी ने भी खूब प्रयास किया था, लेकिन अंत में महागठबंधन में सीट शेयरिंग के मसले पर घटक दलों से उनकी बातचीत परवान नचढ़ सकी। बताया जा रहा है कि हेमंत सोरेन को महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने के मुद्दे पर बाबूलाल सहमत नहीं थे। अंत में उन्होंने अपनी अलग राह पकड़ ली।
वोट नहीं देने की अपील कर रहे हैं। हालांकि सुदेश आजसू के भाजपा से अलगाव को सीट शेयरिंग का मसला बताकर इस आरोप से पल्ला झाड़ते हुए दिखते हैं।
राज्य में कुर्मी बहुल सीटों पर सुदेष के उम्मीदवार भाजपा समेत दूसरे दलों को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। राज्य गठन के बाद से ही भाजपा के साथ रह रहे सुदेश इस बार भाजपा से अलग हैं। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने गिरिडीह से अपने सिटिंग सांसद का टिकट काटकर आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी को भाजपा और आजसू गठबंधन का उम्मीदवार बनाया था। इसके बाद मोदी लहर में चंद्रप्रकाश जीत भी गये।
चंद्रप्रकाश सुदेश के रिश्तेदार हैं और लोकसभा चुनाव जीतने के पहले वे राज्य सरकार में मंत्री थे। गिरिडीह में अपने सांसद का टिकट काटकर आजसू उम्मीदवार को लोकसभा चुनाव का टिकट देने को लेकर भाजपा के अंदरुनी खेमे में काफी हायतौबा भी मची थी। लेकिन मामला आजसू के हक में गया और इस तरह आजसू को अपने स्थापना काल के बाद से पहली बार संसद के गलियारे में पैर रखने का मौका मिला।
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आजसू को एक बड़ा तोहफा देते हुए भाजपा ने दूर का खेल खेला था। लोकसभा में पार्टी की ओर आजसू के परंपरागत कुर्मी वोटरों के जाने के साथ ही भाजपा को विधानसभा में भी हमेश की तरह आजसू के साथ गठबंधन की उम्मीद थी, लेकिन सुदेश को गठबंधन की सीट शेयरिंग पर झुकना रास न आया और अंत में आजसू अकेले ही राज्य के चुनावी रण में कूद गयी।
झारखंड के चुनावी रण में इस बार ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी दस्तक दे दिया है। खुद ओवैसी अपनी पार्टी के सभी उम्मीदवारों के पक्ष में जमकर प्रचार करने में लगे हैं। पार्टी का जोर खासतौर पर मुस्लिम इलाकों में है। इन इलाकों में ओवैसी एनआरसी से लेकर धारा 370 और ट्रिपल तलाक के मसले पर भाजपा के खिलाफ लानत—मलामत करते नजर आ रहे हैं। साथ ही कांग्रेस के खिलाफ भी उनको जमकर बोलते देखा जा सकता है।
बिहार में हाल में हुए उपचुनावों में किशनगंज सीट पर ओवैसी की पार्टी को जीत का स्वाद मिला था। इससे वे खासे उत्साहित दिखते हैं। गौर करने की बात यह है कि ओवैसी की सभा में भीड़ भी खूब उमड़ रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस भीड़ को वे किस कदर अपनी पार्टी के पक्ष में वोटों में तब्दील कर पाते हैं। फिलहाल तो मुस्लिम वोटरों पर नजर टिकाये रखने वाले दलों के लिए ओवैसी की सभा में उमड़ रही भीड़ उनके उम्मीदवारों के माथे पर अवश्य ही शिकन पैदा कर रही है।