हिंदुत्ववादियों की प्रखर आलोचक पत्रकार लंकेश की हत्या

Update: 2017-09-05 22:04 GMT

दक्षिणपंथी राजनीति की प्रखर आलोचक वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की कर्नाटक के बेंगलुरु में गोली मारकर आज हत्या कर दी गयी। उनके भाई ने हत्या की सीबीआइ जांच की मांग की है।

बताया जाता है कि चार लोग उनके घर में घुसे, गोलियां दागीं और मौके पर उनकी मृत्यु हो गयी। हत्या गौरी लंकेश के राजेश्वरी नगर स्थित उनके घर पर हुई है। पुलिस के मुताबिक आज रात 8 बजे उन्हें घर के बरामदे पर गोली लगी और वो वहीं गिर पड़ीं। पुलिस के मुताबिक 4 गोलियां दागी गयीं। 

कर्नाटक में सांप्रदायिकता के खिलाफ अपने सख्त रुख के लिए लंकेश की व्यापक पहचान है।

कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस नेताओं ने मांग की है कि पत्रकार लंकेश की हत्या पर तेजी से कार्रवाई हो, जबकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने डीजीपी को बुलाकर कहा है कि मामले की सही और ठोस जांच हो। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा है, 'सत्य कभी भी मौन नहीं होगा। गौरी लंकेश हमारे दिल में हमेशा रहेंगी। मेरी संवेदना और प्यार उनके परिवार के साथ हमेशा रहेगा। अपराधी दंडित किये जाएंगे।' 

वह भाजपा की हिंदूवादी राजनीति और सांप्रदायिक रणनीति की सख्त विरोधी थीं। उन्हें लिखने—बोलने का जब भी मौका लगता वह सांप्रदायिकता के खिलाफ खुलकर बोलतीं। उनके ट्वीट और फेसबुक अकाउंट पर देखा जा सकता है कि कैसे हिंदूवादी ताकतें और उनके अनुयायी लगातार धमकाते और मारने की धमकियां देते थे। 

पत्रकार अनिल पांडेय के मुताबिक पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग लंबे समय से हो रही है। लेकिन सरकार इस पर मौन है। ऐसा ही रूख पिछली सरकार का भी रहा। इस खामोशी की वजह भी है, क्योंकि ज्यादातर पत्रकारों की हत्या में नेता शामिल पाए गए। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 25 सालों में भारत मे जितने पत्रकारों की हत्या हुई है, उनमें से आधे में नेता शामिल थे।

गौरी लंकेश 'लंकेश पत्रिके' नाम के साप्ताहिक अखबार की संपादक थीं, जिसका साप्ताहिक वितरण 70 हजार था। साथ ही वह कई टीवी चैनलों पर पैनेलिस्ट भी थीं। वह सामाजिक—राजनीतिक सवालों को लेकर एक कर्मठ कार्यकर्ता की तरह सक्रिय रहती थीं। लंकेश आरएसएस की सांप्रदायिक और बंटवारे वाली विचारधारा, बलरंग दल की गुंडई के खिलाफ अपने साप्ताहिक अखबार 'लंकेश पत्रिके' में तथ्यगत तौर पर सख्ती से लिखती रही हैं। 

गौरी लंकेश नौ घंटे पहले तक ट्वीटर पर सक्रिय थीं और उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों की असुरक्षा और उनके द्वारा झेली जा रही हिंसा के संदर्भ में छपी खबर को आखिरी ट्वीट किया था।

यह अखबार उनके पिता पाल्याड़ा लंकेश ने शुरू किया था। पाल्याड़ा लंकेश फिल्ममेकर, कवि और पत्रकार थे। अखबार की ख्याति खोजी रपट प्रकाशित करने में थी। 30 मार्च 2015 को बेंगलुरु में ही हिंदुत्वादियों ने साहित्य अकादमी विजेता लेखक एमएम कलबूर्गी की भी हत्या कर दी थी। हिंदूवादी राजनीति के पक्षधरों, समर्थकों और मोदी के भक्तों द्वारा जिस तरह से पत्रकार गौरी की हत्या पर जश्न मनाया जा रहा है उससे साफ है कि हत्या के पीछे हिंदूवादी ताकतें और उनके संगठन ही हैं। 

लंकेश हिंदुत्व की राजनीति की बहुत बड़ी आलोचक थी। पिछले वर्ष भाजपा सांसद प्रहलाद जोशी ने उनके खिलाफ मानहानी का मुकदमा भी दर्ज किया था, जिसमें उन्हें सजा भी हुई थी। दूसरे हिंदूवादियों ने भी उनपर मुकदमें दर्ज किए हैं। 

प्रसिद्ध शायर जावेद अख्तर अपने ट्वीटर पर लिखते हैं, 'पहले दाभोलकर, कलबुर्गी, फिर पानसरे और अब गौरी लंकेश। एक तरह के लोग मारे जा रहे हैं, क्या इन्हें एक तरह के लोग ही मार रहे हैं।' 

वरिष्ठ पत्रकार लंकेश के भाई इंद्रजीत ने मांग की है कि लंकेश की हत्या जांच सीबीआई से होनी चाहिए, क्योंकि राज्य सरकार की जांच में दोषियों को सजा नहीं मिल पाएगी। उन्होंने सीबीआई की जांच इसलिए भी मांगी क्योंकि उन पर कई मानहानी के मुकदमें हैं जो माफियाओं और नेताओं ने किए हैं।

पत्रकारिता, समाज और राजनीति को लेकर लंकेश क्या सोचती थीं, पढ़िए उनका साक्षात्कार...

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