मध्य प्रदेश में कमल की टक्कर में कमल

Update: 2018-10-07 09:22 GMT

मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति में कमलनाथ की भूमिका किंगमेकर तक ही सीमित रही है। यह पहली बार है जब वे इस तरह से सक्रिय हुये हैं। इस बार वे किंगमेकर नहीं किंग बनना चाहते हैं....

स्वतंत्र पत्रकार जावेद अनीस का विश्लेषण

कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर इस साल 1 मई को कमान संभाली थी, आज चार महीने बीत जाने के बाद संगठन पर उनका नियंत्रण साफ झलकता है। इस दौरान भोपाल स्थित पार्टी कार्यालय मिजाज बदला है साथ ही पार्टी में अनुशासन भी बढ़ा है।

पार्टी ने कमलनाथ के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था, जिसके बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिये दो ही दावेदार रह गए थे। आज जनता के बीच कमलनाथ के मुकाबले ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही ज्यादा लोकप्रिय हों, लेकिन पार्टी संगठन पर कमलनाथ का नियंत्रण ज्यादा नजर आ रहा है।

उम्र का 70 साल पार कर चुके कमलनाथ बहुत अच्छे तरीके से जानते है कि मुख्यमंत्री बनने का उनका यह पहला और आखिरी मौका है, इसीलिये अपने लिये कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं। वो बहुत सधे हुये तरीके से कांग्रेस और खुद अपने लिये फील्डिंग जमा रहे हैं।

कमलनाथ ने हमेशा से ही खुद को छिंदवाड़ा तक ही सीमित रखा था, वे जीवनभर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे। मध्यप्रदेश की राजनीति में उनकी भूमिका किंग मेकर तक ही सीमित रही है। यह पहली बार है जब वे मध्यप्रदेश की राजनीति में इस तरह से सक्रिय हुये हैं। जाहिर है अब वे किंगमेकर नहीं किंग बनना चाहते हैं।

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद उनका फोकस संगठन और गठबंधन पर रहा है, इस दौरान उन्होंने सबसे ज्यादा जोर पंद्रह साल से सुस्त पड़ चुके संगठन को सक्रिय करने पर लगाया है। उनका दावा है कि अभी तक करीब सवा लाख से ज़्यादा पदाधिकारियों की नियुक्ति की जा चुकी है और प्रदेश जिले, ब्लॉक, उपब्लॉक, मंडल, सेक्टर और बूथ तक की कमेटियां में नियुक्ति के काम को लगभग पूरा कर लिया गया है।

संगठन में जान फूंक देने के उनके दावे में कितना दम है, इसका पता आने वाले दिनों में चल ही जायेगा लेकिन इसका श्रेय वे खुद अकेले ही ले रहे हैं। इस दौरान कमलनाथ ने सिंधिया के मुकाबले अपनी दावेदारी को मजबूत करने का काम भी किया है। वे अपने पत्ते बहुत धीरे-धीरे लेकिन बहुत सधे हुये तरीके से खोल रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने यह संदेश लगातार दिया है कि वे निर्णायक भूमिका में हैं, कमान उनके हाथ में है और पार्टी की तरफ से शिवराज के मुकाबले वही हैं।

अभी तक सीधे तौर पर कोई दावा तो नहीं किया है, लेकिन खुद को शिवराज के मुकाबले खड़ा करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ा है। वे लगातार सन्देश देते आये हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी निभाने के लिये वे पूरी तरह से तैयार हैं और यदि सूबे में कांग्रेस सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री पद के पहले दावेदार वही होंगे।

छिंदवाड़ा कमलनाथ का कर्मक्षेत्र रहा है, यहां से वे 9 बार सांसद चुने जा चुके हैं। इसी छिंदवाड़ा मॉडल को कमलनाथ के काबलियत के तौर पर पेश किया जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद ही कमलनाथ ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा था कि छिंदवाड़ा विकास में प्रदेश के कई जिलों से आगे है, जाकर छिंदवाड़ा का विकास देखें और फिर लोगों के बीच जाकर विदिशा और छिंदवाड़ा के विकास के बारे में बताएं।

पिछले दिनों भोपाल में छिंदवाड़ा मॉडल नाम की एक पुस्तक का विमोचन किया गया। इस विमोचन समारोह के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर द्वारा छिंदवाड़ा मॉडल की जमकर तारीफ की गयी और छिंदवाड़ा सांसद कमलनाथ की शान में कसीदे गढ़े गये।

दिग्विजय सिंह भी छिंदवाड़ा मॉडल की तारीफ करते हुये मुख्यमंत्री के तौर पर भावी कमलनाथ की दावेदारी को आगे बढ़ा चुके हैं। पिछले दिनों अपने बेटे के एक ट्वीट को रीट्वीट किया था जिसमें जयवर्धन सिंह ने लिखा था, जो विकास कमलनाथ ने छिंदवाडा़ में किया है वह विकास शिवराज सिंह चौहान म.प्र. में 15 वर्ष में नहीं कर पाये हैं। हमारा संकल्प है कि मप्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने के बाद को पूरे प्रदेश में छिंदवाडा़ मॉडल लागू किया जायेगा।

जाहिर है छिंदवाडा़ मॉडल बिना कमलनाथ के तो लागू नहीं हो सकता है। यह एक तरह से दिग्विजय सिंह की स्वीकृति है कि इस बार अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस को जीत हासिल होती है तो मुख्यमंत्री के तौर उन्हें कमलनाथ कबूल होंगे।

कांग्रेस आलाकमान द्वारा मध्यप्रदेश में कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाकर संतुलन साधने की कोशिश की गयी थी। यह एक नाजुक संतुलन जिस पर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिये खरा उतरना आसान नहीं है।

बीच-बीच में इन दोनों जोड़ीदारों के बीच की जोर-आजमाइश उभर कर सामने आ ही जाती है। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर इन दोनों के समर्थकों के बीच जंग छिड़ गयी थी जिसमें एक तरफ सिंधिया के समर्थक ‘चीफ मिनिस्टर सिंधिया’ के नाम से अभियान चला रहे थे जिसका नारा था 'देश में चलेगी विकास की आंधी, प्रदेश में सिंधिया केंद्र में राहुल गांधी', वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ समर्थक #कमलनाथनेक्स्टएमपीसीएम के नाम से अभियान चला रहे थे जिसका नारा था 'राहुल भैया का संदेश, कमलनाथ संभालो प्रदेश' इस सबको दोनों नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी से जोड़कर देखा जा रहा है।

कांग्रेस की तरफ के मुख्यमंत्री के दावेदारी का मसला भले ही दो नामों के बीच सिमट गया हो लेकिन अभी भी यह मसला पूरी तरह से सुलझा नहीं है। अब दो ही खेमे बचे हैं जो ऊपरी तौर पर एकजुटता का दावा भले करें, लेकिन दोनों ही अपनी दावेदारी से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

दोनों ही दावेदार विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार नहीं कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि पार्टी यदि उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कहती है तो वह इसके लिए तैयार हैं। कमलनाथ ने भी इससे इनकार नहीं किया है, पिछले दिनों इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि 'मैंने अभी तय नहीं किया है.. ये भी चर्चा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ हो सकती है जब इन सब चीजों का फैसला होगा, तब मैं भी फैसला करूंगा।

इधर मुख्यमंत्री के रूप में अपनी तीसरी पारी खेल रहे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान लगातार बैटिंग पिच पर जमे हुये हैं। उन्होंने अभी से ही खुद को चुनावी अभियान में पूरी तरह से झोंक दिया है। वे पिछले 13 सालों से मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनका अंदाज ऐसा है कि जैसे वे पहली बार वोट मांगने के लिए जनता के बीच हो। वे अपने लम्बे कार्यकाल का हिसाब देने के बजाये उलटे विपक्षी कांग्रेस से ही हिसाब मांग रहे हैं।

शिवराज की जन आशीर्वाद यात्रा सुर्ख़ियों में है। इसमें उमड़ रही भीड़ से सत्ताधारी खेमा आत्ममुग्ध और उत्साहित नजर आ रहा है, लेकिन भीड़ तो कमलनाथ की रैलियों में भी उमड़ रही है, इसलिये यह दावा नहीं किया जा सकता है कि जन आशीर्वाद यात्रा में आ रही भीड़ वोट भी करेगी।

फिलहाल मुकाबला कमलनाथ और उनके नालायक दोस्त शिवराज के बीच ही बनता नजर आ रहा है लेकिन कमलनाथ की लड़ाई दोहरी है पहले तो उन्हें अपने जोड़ीदार ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर पंद्रह सालों से वनवास झेल रही अपनी पार्टी को जिताकर सत्ता में वापस लाना है, जिसके लिये उन्होंने नारा भी दिया है 'कर्ज माफ, बिजली का बिल हाफ और इस बार भाजपा साफ...'

अगर वे इसमें कामयाब होते हैं तो इसके बाद उन्हें अपने इसी जोड़ीदार के साथ मुख्यमंत्री पद के लिये मुकाबला भी करना है। फिलहाल तो कमलनाथ ही कमल की काट नारे के साथ अपनी बैटिंग के लिये तैयार हैं।

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