पीएम मोदी को अपनी सुरक्षा के लिए अपने दोस्त डोनाल्ड ट्रंप से बात करके स्पेशल अमेरिकी कमांडो मँगवा लेने चाहिए और सुरक्षा का पूरा जिम्मा ठेके पर सीआईए को दे देना चाहिए। या फिर स्थायी रूप से अमेरिका में ही बस जाना चाहिए। डिजिटल इंडिया है अब तो अमेरिका में बैठकर ये ट्वीटर से भी चल सकता है...
सुशील मानव, स्वतंत्र लेखक
‘प्रधानमंत्री मोदी को जान से मारने की साजिश का भंडाफोड़’-जी न्यूज, रिपब्लिक टीवी, आजतक, हर स्वामीभक्त चैनल पर मोटे मोटे हेडलाइंस में एक ही खबर चल रही। अर्णव गोस्वामी, सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप सरीखे राष्ट्रभक्त एंकर चिट्ठी-बम दिखाते हुए चीख-चीखकर देश की आवाम को झकझोर रहे हैं पर रात की आँधी में टटिया मचिया टीन छप्पर सब उड़वा चुके लोग हैं कि अपने ही ग़म से भाव-विहीन मोड में चले गए हैं।
सुबह से शाम हो चली है, गली में कुत्ते लगातार भौंके जा रहे हैं और टीवी में...
शहर के लेबर चौक से खाली हाथ लौटे लोगों को दोनों की भाषा पल्ले नहीं पड़ रही। राष्ट्रभक्त एंकर कर्तव्यपथ परबासी अफवाह को ब्रेकिंग न्यूज बनाकर चीख पुकार मचाकर इन मरे हुए लोगों में मोदी बोध जगा रहे हैं- शहरी नक्सलियों की खतरनाक साजिश नाकाम! शहरी नक्सलियों के पकड़े जाने से प्रधानमंत्री की जान का बड़ा खतरा टला!
मोदी को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी स्टाइल में मारने की साजिश का भंडाफोड़!
और लोगबाग हैं कि टीवी के सामने बैठे पेट पकड़कर हँसे जा रहे हैं! इस लोटम-पोट और जमीनी हँसम-हँसाई से मेरी नई नवेली राष्ट्रवादिता के पाँव गंदे हो रहे। मैंने लगभग पाकिस्तान पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक की तर्ज पर हँसने वालों पर फर्जीकल स्ट्राइक कर दिया- ‘यहाँ राष्ट्रगौरव हिंदू सम्राट मोदी की जान को खतरा है पूरा देश सदमे में है और आप सब पर खुशिहाली छाई है! हँसी छूट रही है! देशद्रोही कहीं के!
पर वे सब उल्टे मुझे ही डपट बैठे, ‘हँसे न तो क्या करें बे!अभी पिछले ही साल जब एक बिना दाढ़ी-बाल वाला हिंदू सम्राट उत्तर प्रदेश का नया नया मुख्यमंत्री बना तब भी किसी विधायक के सीट के नीचे से एक पाउडर बम बरामद हुआ था और यही न्यूज चैनल और एंकर उसे आरडीएक्स बता बताकर मुख्ममंत्री आदित्यनाथ को जान से मारने की आतंकी साजिश बता रहे थे।
जब लैब में जाँच हुई तब पता चला कि वो कौनौ अफीमची विधायक की पुड़िया थी जो जेब से निकालने खाने और फिर रखने के फेर में गिर गई थी।’
अनुभव की जमीन पर पगे तर्कपूर्ण डपट के आगे मेरे जैसे नवसिखिया के राष्ट्रवाद की टाँग टूट गई। प्रधानमंत्री की जान का खतरा सुनकर मेरा राष्ट्रवाद तो हकला ही रहा था अब लँगड़ाने भी लगा।
गिरते पड़ते अपना दुःख लेकर मैं चाय की दुकान पर लगे चौपाल में पहुँचा। लौंडा पार्टी गप्पे मार रही थी। मैंने जैसे तैसे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की जान को खतरा है, एक लौंडा आपन कपार पीटकर बोला- ‘राम राम राम। हिंदू धर्म और गऊ माता के साथ साथ अब प्रधानमंत्री मोदी की भी रक्षा करो। मोदी के प्रधानमंत्री रहते संकट खत्म कम हो रहे आ ज्यादा रहे। आखिर हम लौंडा पार्टी किस किसको बचाने के ताईंदंगे करेगी।’
तभी सामने की सीट पर बैठे दूसरे साथी ने गुटखा की पुड़िया फाड़कर मुँह में खाली करते हुए कहा,‘अरे, घबड़ाने की कोई बात नहीं भाई, जो RSS तीन दिन में पूरी फौज खड़ी कर सकता है क्या वो अपने प्रधानमंत्री की रक्षा नहीं कर सकता। मोहन भागवत को तो अब कायदे से प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में लगे सारे सुरक्षाकर्मी हटाकर उनकी सुरक्षा में अपने सबसे विश्वसनीय स्वयंसेवकों को तैनात कर देने चाहिए।’
और तभी सबसे तगड़ा मोदीभक्त लौंडेहरा चायवाला तुनककर कहने लगा,‘क्या ग़ज़ब कहते हो भाई! अरे, दीन दयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ तो संघ के सबसे विश्वसनीय स्वयंसेवक थे तब भी उनकी हत्या हो गई। ये तुम सब प्रधानमंत्री मोदी की जान बचाने की राय दे रहे हो या मरवाने की? मेरी राय में तो प्रधानमंत्री मोदी को अपनी सुरक्षा के लिए अपने दोस्त डोनाल्ड ट्रंप से बात करके स्पेशल अमेरिकी कमांडो मँगवा लेने चाहिए और अपनी सुरक्षा का पूरा जिम्मा ठेके पर सीआईए को दे देना चाहिए। या फिर स्थायी रूप से अमेरिका में ही बस जाना चाहिए। डिजिटल इंडिया है अब तो अमेरिका में बैठकर ये ट्वीटर से भी चल सकता है। वैसे भी लोग कहते हैं ये देश अमेरिका ही चला रहा है।’
मैं अतृप्त आत्मा सा भटक रहा कि कोई तो मुझे सहानुभूति दे दे। मेरे प्रिय प्रधानमंत्री की जान को खतरा है इस बात पर कोई तो विश्वास कर ले। सुबह से शाम हुई पर कोई न मिला विश्वास करने वाला। सोचा बुड्ढों की चौपाल में अपना दुखड़ा ले चलूँ। पहुँचते ही मैंने झट्ट से सुधीर चौधरी स्टाइल में सनसनी का माहौल रचते हुए कहा कि,-‘पता है दादा लोगो प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक पाँच बार मोदी की हत्या की साजिश रची जा चुकी है।’
छूटते ही एक बुड्ढ़े ने कहा,-‘बकरा के माई कब तक खैर मनाई।’ मैं उसकी व्यक्तिगत कुंठा का मूल समझ गया। अबकी साल रामनवमी में दंगे में मुस्लिम मोहल्ले में उसकी भी दुकान जल गई। तबसे बेचारे के घर खाने के फाके हैं, सिर पर लाखों का कर्ज सो अलग। फिर भी मैं बेशर्मी का संबित पात्रा बना उसे राष्ट्रवाद पेलता रहा और कमीना बुड्ढा विपक्ष के कर्मठ प्रवक्ता सा मुझे दंगे की आग में जली काली जमीन पर पटकता रहा।
तब से दूसरा बुड्ढा बोला,-‘गाँधी बाबा चले गए, इंदिरा और राजीव भी चले गए। जो आया है वो जाएगा। सारा किया धरा यहीं रह जाएगा। एक दिन तो सबको ही जाना है बेटा। जिसकी आयु पूरी हो गई वो चला ही जाएगा फिर वो मेरे या तुम्हारे रोकने से नहीं रुकने वाला। बस इतना ही है कि ऊपरवाला अपने ऊपर कोई दोष नहीं लेता मरने वाले के साथ कोई न कोई ओढ़र (बहाना) लगा देता है।'
मेरा दुःख अब मुझमें नहीं समा रहा। मैं दौड़ा भागा अपनी सीधी साधी दुखहरना दादी के पास चला गया। जिन्हें न अब दीन से मतलब है न दुनिया से। मेरा दुःख सुनते ही वो बोली- एक ही तो जान है बेचारे की और इतने दुश्मन!'
तभी रेणुका चौधरी मार्का हँसी के नश्तर से मेरी मर्दानगी का बधियाकरण करती मेरी प्रेमिका कूद पड़ी मेरे जले पर नमक छिड़कने की ताईं। आप सोचते होंगे कि राष्ट्रवादियों के प्रेमिकाएं नहीं होती और वो बहुत संस्कारी जीव होते हैं। तो भाइयो-बहनों मेरे प्रेमिका भी है और मैं राष्ट्रवादी भी हूँ बिल्कुल उसी तरह जैसे हिंदू लड़की से लव-मैरिज करने वाले शहनवाज हुसैन लव-जेहादी भी हैं और भाजपाई भी।
चइला फाड़ भाषा में मेरी प्रेमिका मेरी दादी की आड़ ले बोली,-‘कुछ ना होगा अम्मा, लाखों झुठ्ठे मरे हैं तब जाकर ऐसा प्रधानमंत्री पैदा हुआ है। काले धन से लेकर अच्छे दिन तक के जुमलों की हांड़ी झौंस गई तो चुनावी चूल्हे पर अब ‘बुरे दिन’ ही हांड़ी चढ़ाकर ‘अपनी हत्या’ की साजिश के खीर पकाई जा रही है।
दूसरों की हत्याओं पर कार्रवाई करने के बजाय रुदाली रूदन करनेवाला अपनी हत्या की अफवाह से फिर सत्ता की रबड़ी चाटना चाहता है। वर्ना मैं न जानती थी दादी कि नक्सली इतने बेवकूफ होते हैं जो हत्या की चिट्ठी लिखकर अपने घर में रखते हैं! कोड-भाषा के बजाय चिट्ठी में हत्या का ललित निबंध लिखते हैं! और फिर कोई नक्सली अपने दुश्मन को चूहे या कुत्ते की मौत मारने के बजाय राजीव गाँधी जैसी मौत क्यों कर मारने लगा! जबकि राजीव गांधी की मौत मरने पर मास सिम्पथी के चलते उसी पार्टी का पूर्ण बहुमत से सत्ता में फिर से आना तय है।
जाहिर है प्रधानमंत्री को ऐसी मौत देना तो वही चाहेगा जो उनकी कुर्सी का उत्तराधिकारी हो और उनकी पार्टी में नंबर 2 पर हो। कहीं नक्सलियों की प्रधानमंत्री की पार्टी के नेता नंबर-2 से कोई सांठगांठ तो नहीं।’
छोटा भाई भी आजकल खुद को कुछ ज्यादा ही सयाना समझने लगा है। बात बेबात मुझे अपनी सियासी टिप्पणियों से अवगत कराने के बहाने तलाशने लगा हैं-आज कहने लगा प्रधानमंत्री अपनी हत्या की साजिश के खुद जिम्मेदार हैं। क्या ज़रूरत थी उन्हें खुले मंच से ऐलान करने की कि,- ‘अगर वार ही करना है तो मुझ पर करो, मेरे दलित भाई बहनों पर नहीं। गोली ही मारनी है तो मुझे मार दो लेकिन मेरे दलित भाई-बहनों पर हमला न करो...
भइया कौनौ उनकी बात को बहुत सीरियसली ले लिया है या फिर कौनो उनकी फिरकी ले रहा है।