मॉब लिंचिंग और भुखमरी में 'कीर्तिमान' स्थापित करता झारखंड

Update: 2019-06-29 04:15 GMT

सरकार कर रही भुखमरी से हुयी मौतों को ख़ारिज और मॉब लिंचिंग के दोषियों का चोरी-छिपे बचाव, राशन का नहीं हुआ है ऑफलाइन वितरण शुरू और प्रदेश में भूख से मौतों का सिलसिला है जारी...

अभिषेक आज़ाद की टिप्पणी

पिछले कुछ दिनों से झारखण्ड भुखमरी और मॉब लिंचिंग की वजह से सुर्ख़ियों में है।प्र धानमंत्री मोदी जी कहना है कि झारखण्ड को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। उनकी बात बिलकुल सही है। बदनाम उन लोगों को किया जाना चाहिए, जिन्होंने प्रदेश को इस हालत तक पहुँचाया है। झारखण्ड में दिसंबर 2014 से बीजेपी की सरकार है और रघुबर दास जी मुख्यमंत्री हैं।

18 जून 2019 को तबरेज़ अंसारी की मॉब लिंचिंग हुई और 22 जून को अस्पताल में मौत हो गयी। परिवार वालों का आरोप है कि अगर समय पर सही इलाज होता तो तबरेज की जान बच सकती थी।

पिछले कुछ दिनों से झारखण्ड में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुयी है, जिसकी एक बड़ी वजह सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का मॉब लिंचिंग करने वाली भीड़ को समर्थन है।

29 जून 2017 को झारखण्ड के रामगढ जिले में अलीमुद्दीन अंसारी नाम के 40 वर्षीय व्यक्ति की मॉब लिंचिंग हुयी। इस केस में 12 लोगों को आरोपी बनाया गया। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सभी 11 आरोपियों को दोषी पाया और मृत्युदंड की सज़ा सुनाई। 12वां आरोपी नाबालिग था। उसका केस जुवेनाइल कोर्ट में भेज दिया गया। जब 8 आरोपियों को हाईकोर्ट से जमानत मिली तो बीजेपी ने उनके स्वागत में 06 जुलाई 2018 को एक कार्यक्रम का आयोजन किया। केंद्रीय मंत्री जयन्त सिन्हा आरोपियों से मिले और माला पहनाकर उनका सम्मान किया। भाजपा विधायक शंकर चौधरी ने इस कार्यक्रम में बोलते हुए आरोपियों के वकील बीबी त्रिपाठी को देवतुल्य बताया।

झारखंड में सितंबर 2017 से अब तक भुखमरी से 20 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से 12-13 पीड़ितों का राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं था, इसलिए इनको राशन नहीं मिला। इनमें से 6 पीड़ितों का राशन कार्ड दुबारा नहीं बनाया गया, जबकि वे राशन कार्ड के हक़दार थे।

क्टूबर 2017 में 11 साल की एक बच्ची भात भात करते मर गयी, लेकिन उसे राशन नहीं मिला, क्योंकि उसका राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं था। बच्ची की भूख से मौत को राष्ट्रीय मीडिया ने बड़ी गंभीरता से उठाया और पूरे देश में झारखण्ड सरकार की कड़ी आलोचना हुयी, लेकिन सरकार फिर भी नहीं चेती और भूख से होने वाली मौतों का सिलसिला आगे भी जारी रहा।

5 जून 2019 को भूख से मरने वाले 65 वर्ष के राम चंद्र मुंडा 20वें व्यक्ति हैं। रिपोर्ट के अनुसार मुंडा ने चार दिनों से खाना नहीं खाया था। उनके परिवार को राशन नहीं मिला था, क्योंकि नेटवर्क खराब होने की वजह से सेल मशीन काम नहीं कर रही थी।

गांव वालों ने ऑफलाइन राशन वितरण की मांग की थी, किन्तु स्थानीय प्रशासन से ऑफलाइन राशन वितरण की मांग को ठुकरा दिया था। पिछले महीने गांव वालों ने जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन भी किया था। किन्तु इसके बावजूद झारखण्ड सरकार की तरफ से जरूरतमंद लोगों तक राशन की पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। सरकार भूख से हुयी मौतों को लेकर बिल्कुल गंभीर नहीं है और उन्हें सिरे से खारिज कर रही है। राशन का ऑफलाइन वितरण शुरू नहीं हुआ है और प्रदेश में भूख से मौतों का सिलसिला जारी है।

प्रदेश में भुखमरी और मॉब लिंचिंग से जान गवाने वाले लोगो की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार के लिए लोगों की जान बहुत सस्ती हो गयी है। भुखमरी से हुयी मौतों को ख़ारिज कर रही है और मॉब लिंचिंग के दोषियों का चोरी-छिपे बचाव कर रही है। आखिर कब तक झारखण्ड के लोग इस तरह भूख और भीड़ के आगे दम तोड़ते रहेंगे? सरकार और सत्ताधारी पार्टी की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।

(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के शोधछात्र हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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