9 दिन से आमरण अनशन पर मेधा पाटकर, तबीयत बिगड़ी लेकिन नहीं सुन रही सरकार

Update: 2019-09-02 06:32 GMT

मध्य प्रदेश के बडवानी ज़िले के छोटा बड्डा गांव में मेधा पाटकर और उनके सहयोगी 25 अगस्त से नर्मदा विस्थापितों के पुनर्वास और सरदार सरोवर का जल स्तर 122 मीटर पर स्थिर किये जाने समेत कई अन्य मांगों के लिए बैठे हैं अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर...

जनज्वार। नर्मदा बचाओ आंदोलन की अग्रणी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर नर्मदा बांध की वजह से विस्थापित हुए लोगों के समर्थन में 25 अगस्त से एक बार फिर अनिश्चिकालीन आमरण अनशन पर बैठी हैं। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के 40 हजार बांध प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए वे पहले भी भूख हड़ताल कर चुकी हैं।

पिछले 9 दिन से भूख हड़ताल पर बैठी मेधा की शनिवार 31 अगस्त को हालत बिगड़ गई तो उन्हें पानी देने की कोशिश की गयी, मगर उन्होंने इस अपील को ठुकरा दिया। मंत्रियों, नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की अनशन खत्म करने की अपील को भी मेधा ने मांगें न माने जाने तक मानने से इंकार कर दिया।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के बडवानी ज़िले के छोटा बड्डा गांव में मेधा पाटकर और उनके सैकड़ों सहयोगी 25 अगस्त नर्मदा विस्थापितों के पुनर्वास और अन्य कुछ मांगों को लेकर आमरण अनशन पर हैं।

नशनरत मेधा और उनके साथियों ने सरकार से मांग की है कि 122 मीटर पर सरदार सरोवर का जल स्तर स्थिर किया जाये। साथ ही नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण मंत्री सुरेन्द्र सिंह बघेल के विदेश से लौटने से पहले गांव के कांग्रेस पदाधिकारियों के इस्तीफे की मांग भी उन्होंने की है।

र्मदा नदी के लगातार बढ़ रहे जल स्तर से डूब प्रभावितों की चिंता बढ़ती जा रही है। ग्राम छोटा बड़दा में अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों के मंच के पास तक नर्मदा का पानी पहुंच चुका है। सरकार अपनी तरफ से मेधा को मनाने की पूरी कोशिश में लगी है। अब तक सरकार के कई मंत्री और जिम्मेदार अधिकारी मेधा से अनशन तोड़ने की अपील कर चुके हैं, मगर मांगें न मानी जाने तक मेधा पीछे हटने वाली नहीं हैं। मेधा पाटकर के समर्थन में 8 गांव के प्रभावित भी पिछले 4 दिनों से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ चुके हैं।

मेधा की बिगड़ती ​तबीयत को देखते हुए मंत्रियों समेत बडवानी जनपद के शीर्ष अधिकारियों ने उनसे मुलाक़ात कर उपवास तोड़ने की अपील की, मगर उन्होंने उनकी अपील को ठुकराते हुए कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, उनकी भूख हड़ताल जारी रहेगी।

मेधा पाटकर पाटकर कहती हैं, पिछले साढ़े तीन दशक से नर्मदा विस्थापितों के लिए हम धरना कर रहे हैं, मगर आज भी गांवों का क़त्ल जारी है। बांध के बढ़ते जलस्तर में कई गांव डूबते जा रहे हैं और कई गांव तो अब द्वीप में तब्दील हो चुके हैं। जब तक सरकार द्वारा सभी प्रभावित लोगों का पुनर्वास नहीं किया जाएगा, हमारा विरोध यूं ही जारी रहेगा।

हालांकि मेधा पाटकर मानती हैं कि प्रशासन ने एक हद तक लोगों का पुनर्वास किया है, मगर साथ में यह भी कहती हैं कि नर्मदा प्रभावितों का पुनर्वास उन मानदंडों के आधार पर नहीं किया गया है, जो सुप्रीम कोर्ट ने तय किए हैं।

निश्चिकालीन आमरण अनशन में मेधा पाटकर के साथ दस अन्य कार्यकर्ता भी बैठे हुए हैं। इन लोगों का कहना है कि नर्मदा नदी हमारी जीवनरेखा है, हम इसे अपनी मृत्युरेखा नहीं बनने देंगे।

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