रिपोर्ट के अनुसार दूसरी बार बड़े तामझाम से प्रधानमंत्री बनते ही मोदी जी ने अपना अति-हिंदूवादी एजेंडा साफ़ कर दिया। वह इस एजेंडा को लागू करने में इतने संलिप्त हो गए कि गिरती हुए अर्थव्यवस्था की तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं मिली...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
इस वर्ष यानी 2020 में दुनिया के दस सबसे बड़े खतरों में से एक मोदीमय भारत है। इस सूची में यह पांचवें स्थान पर है। इन खतरों का पूर्वानुमान यूरेशिया ग्रुप ने किया है, जो वर्ष 1998 से लगातार इस तरह के वार्षिक रिपोर्ट तैयार करती है।
जनवरी के प्रथम सप्ताह में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया के लिए इस वर्ष के दस बड़े खतरे हैं – अमेरिका की सरकार, अमेरिका और चीन के बीच टेक्नोलॉजी और आर्थिक युद्ध, अमेरिका और चीन के बीच राजनीतिक मतभेद, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बढ़ता वर्चस्व, मोदीमय भारत, यूरोप का भौगोलिक राजनीतिक परिवेश, राजनीति बनाम जलवायु परिवर्तन का अर्थशास्त्र, मध्य पूर्व के शिया साम्राज्य को कुचलने की साजिश, लैटिन अमेरिका की राजनीतिक और आर्थिक अराजकता और राष्ट्रपति एरदोजन के शासन में तुर्की।
यूरेशिया ग्रुप एक राजनीतिक खतरे पर शोध और परामर्शदाता कंपनी है, जिसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में है। यह संस्था हरेक वर्ष के आरम्भ में देशों की राजनीति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के आधार पर दुनिया के लिए उस वर्ष के 10 सबसे बड़े खतरे या समस्याएं तय करती है। इन खतरों में से अमेरिका की सरकार और मध्य पूर्व के शिया साम्राज्य को कुचलने की साजिश का असर तो स्पष्ट हो चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति, जिनके लिए मोदी जी अमेरिका में वोट मांग रहे थे, दुनिया को तृतीय विश्व युद्ध की कगार पर पहुंचा चुके हैं।
इन सब खतरों में से मोदीमय भारत का असर तो पिछले वर्ष के अंतिम महीने से ही स्पष्ट हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार दूसरी बार बड़े तामझाम से प्रधानमंत्री बनते ही मोदी जी ने अपना अति-हिंदूवादी एजेंडा साफ़ कर दिया। वह इस एजेंडा को लागू करने में इतने संलिप्त हो गए कि गिरती हुए अर्थव्यवस्था की तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं मिली। इन सबका असर इस वर्ष देखने को मिलेगा, जब जातिवादी और धर्मवादी अराजकता और गंभीर होगी, विदेश नीति बदलेगी और आर्थिक मोर्चे पर नाकामयाबी की नई इबादत लिखी जायेगी।
दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के बाद से लगातार अति-हिंदूवादी एजेंडा लागू किया जा रहा है। पहले कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, फिर असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन्स (NRC) के माध्यम से 19 लाख लोगों की नागरिकता छीनी गयी, फिर आनन्-फानन में जातिवादी संभावनाओं से परिपूर्ण सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट आ गया।
इसके बाद जब देशभर में आन्दोलनों का दौर शुरू हुआ, तब सरकार ने किसी सार्थक बात के बदले नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर को स्वीकृत कर दिया। इन सबके बीच मानवाधिकार का इतना हनन किया गया कि लोग इमरजेंसी के दौर को भूल गए। देश में ऐसी पहली सरकार होगी जो देश को बांटने के लिए इतनी तत्पर दिखती हो। इन सबके बीच अर्थव्यवस्था ऐसी स्थिति में आ गयी जैसी पहले कभी नहीं रही।
इन सबका अंतरराष्ट्रीय पहलू भी है। अनेक यूरोपीय देश जो पहले भारत का समर्थन करते थे, वे मानवाधिकार के हनन का हवाला देकर अलग हो गए। अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही प्रधानमंत्री के गले मिलते हों पर वहां की कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग भारत के विरुद्ध है, और समय-समय पर कांग्रेस की अनेक रिपोर्ट में भारत की दुर्दशा भी जाहिर के जाती है।
आज जो जेएनयू में किया जा रहा है, जामिया और अलीगढ में किया गया, उसे सरकारी ट्रोल आर्मी को छोड़कर बाकी सारी दुनिया ने देखा। हमारे देश के गोदी मीडिया भले ही मोदी जी का महिमामंडन कर रहे हों, पर कोई भी विदेशी न्यूज़ वेबसाइट देखिये या समाचारपत्र देखिये हमारे देश की सही तस्वीर मिल जायेगी।
दरअसल पिछले कुछ दशकों से दुनिया वैश्वीकरण की तरफ बढ़ रही है, इसलिए एक देश में कुछ होता है तो उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ना लाजिमी है। वैश्वीकरण से लोगों के बढ़ने के अवसर बढे हैं, दुनिया की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, दुनिया में समानता, सम्पन्नता, लैंगिक समानता, स्वास्थ्य इत्यादि की हालत अच्छी हो गयी है, पर अपने देश की सरकार तो इन सब मामलों में देश को पीछे ले जा रही है। जाहिर है, दुनिया के लिए मोदीमय भारत एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है।