मेधा पाटकर से मेधा ताई बनने की संघर्षशील जीवन यात्रा को 62वें जन्मदिन पर बता रहे हैं सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल राठी
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का आज 1 दिसंबर को जन्मदिन है। मेधा पाटकर ने 'सरदार सरोवर परियोजना' से प्रभावित होने वाले लगभग 37 हज़ार गाँवों के लोगों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी है।
कुछ लोगों के विकास के लिए बहुसंखयक आबादी की बरबादी, विकास के नाम पर हमारे जल-जंगल और जमीन पर देशी-विदेशी कार्पोरेट्स का कब्जा, परंपरागत ज्ञान और कौशल का तिरस्कार इस वर्तमान विकास नीति की खूबी है। मेधा पाटकर का महत्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होने मौजूदा आत्मघाती विकास नीति पर तार्किक रूप से सवाल खड़े किए हैं।
समाजवादी विचारक किशन पटनायक के साथ मेधा पाटकर ने भारत के सभी जनांदोलनों को एक-दूसरे से जोड़ने का का गंभीर प्रयास किया। इस पहल से एक नेटवर्क की शुरुआत की जिसका नाम है – जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (नेशनल एलांयस फॉर पीपुल्स मूवमेंट) है।
मेधा पाटकर देश में जनांदोलन को एक नई परिभाषा देने वाली नेताओं में हैं। मौजूदा विकास की विनाशकारी नीतियों को नकारकर विकास की वैकल्पिक नीति का खाका प्रस्तुत करने वालों मे मेधा भी प्रमुख रही है। वैकल्पिक राजनीति के लिए लोक राजनैतिक मंच के गठन मे आपकी प्रमुख भूमिका रही है। वैकल्पिक राजनीति के लिए कार्यरत प्रतिबद्ध राजनैतिक समूह समाजवादी जनपरिषद से मेधा का वैचारिक और संघर्ष का बहुत लंबा रिश्ता रहा।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को नर्मदा घाटी की आवाज़ के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। इनकी ज़िंदगी का ओर-छोर नर्मदा ही है। वह भी भूल गई हैं कि वह मुंबई की रहने वाली हैं। जब भाषण देती है तो वहां जमा होने वाली भीड़ को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी बातों का कितना असर घाटीवासियों पर है।
मेधा ने सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में गहन शोध किया है। 1985 से वह नर्मदा से जुड़े हर आंदोलन में सक्रिय रही हैं। उत्पीडि़तों और विस्थापितों के लिए समर्पित मेधा पाटकर का जीवन शक्ति, उर्जा और वैचारिक उदात्तता की जीती-जागती मिसाल है। उनके संघर्षशील जीवन ने उन्हें पूरे विश्व के महत्त्वपूर्ण शख़्सियतों में शुमार किया है।
वे ज़्यादातर समय घाटी पर ही रहती हैं। कई ऐसे मौक़े आए हैं जब जनता ने मेधा का जुझारू रूप देखा है। 1991 में उन्होंने 22 दिनों का अनशन किया, तब उनकी हालत बहुत बिगड़ गई थी। 1993 और 1994 में भी उन्होंने लंबे उपवास किए।
घाटी के लोगों के लिए कई बार जेल जा चुकी हैं। उनकी लड़ाई मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र सरकार के अलावा विश्व बैंक से भी है। विश्व बैंक को खुली चुनौती देने वाली मेधा पाटकर को अब विश्व बैंक ने अपनी एक सलाहकार समिति का सदस्य बनाया है। उनके संगठन ने बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल की स्थिति में सुधार के लिए काफ़ी काम किया है।
साठ और सत्तर के दशक में पश्चिम भारत में क्षेत्र के विकास की बातें चल रही थी। सरकार को लगा, बड़े-बड़े बांध बना देने से नर्मदा घाटी क्षेत्र का विकास होगा। इसी योजना के तहत 1979 में सरदार सरोवर परियोजना बनाई गई। परियोजना के अंतर्गत 30 बड़े, 135 मझोले और 3000 छोटे बांध बनाये जाने का प्रावधान था। परियोजना के अवलोकन के लिए 1985 में मेधा पाटकर ने अपने कुछ सहकर्मियों के साथ नर्मदा घाटी क्षेत्र का दौरा किया।
उन्होंने पाया कि परियोजना के अंतर्गत बहुत सी जरूरी चीज़ों को नजर-अंदाज किया जा रहा है। मेधा इस बात को पर्यावरण मंत्रालय के संज्ञान में लाई। फलस्वरूप परियोजना को रोकना पड़ा, क्योंकि पर्यावरण के निर्धारित मापदण्डों पर वह खरी नहीं उतर रही थी और बांध निर्माण में व्यापक तौर पर क्षेत्र का अध्ययन नहीं किया गया था।
1986 में जब विश्व बैंक ने राज्य सरकार और परियोजना के प्रमुख लोगों को परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक सहायता मुहैया कराने की बात की तो मेधा पाटकर ने सोचा कि बिना संगठित हुए विश्व बैंक को नहीं हराया जा सकता। उन्होंने मध्य प्रदेश से सरदार सरोवर बांध तक अपने साथियों के साथ मिलकर 36 दिनों की यात्रा की।
यह यात्रा राज्य सरकार और विश्व बैंक को खुली चुनौती थी। इस यात्रा ने लोगों को विकास के वैकल्पिक स्रोतों पर सोचने के लिए मजबूर किया। यह यात्रा पूरी तरह गांधी के आदर्श अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित थी। यात्रा में शामिल लोग सीने पर दोनों हाथ मोड़कर चलते थे।
जब यह यात्रा मध्य प्रदेश से गुजरात की सीमा पर पहुंचीं तो पुलिस ने यात्रियों के ऊपर हिंसक प्रहार किए और महिलाओं के कपड़े भी फाड़े। यह सारी बातें मीडिया में आते ही मेधा के संघर्ष की ओर लोगों का ध्यान गया और उन्होंने नर्मदा बचाओ आंदोलन की शुरुआत की। मेधा पाटकर ने परियोजना रोकने के लिए संबंधित अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के सामने धरना-प्रदर्शन करना शुरू किया।
सात सालों तक लगातार विरोध के बाद विश्व बैंक ने हार मान ली और परियोजना को आर्थिक सहायता देने से मना कर दिया। लेकिन विश्व बैंक के हाथ खींच लेने के बाद केंन्द्र सरकार अपनी ओर से परियोजना को आर्थिक मदद देने के लिए आगे आ गई। जब नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे बांध की ऊंचाई बढ़ाने का सरकार ने फैसला लिया, तो इसके विरोध में मेधा पाटकर 28 मार्च, 2006 को अनशन पर बैठ गईं।
उनके इस क़दम ने एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान उनकी तरफ खींचा। अगस्त 2017 में सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र के प्रभावितों के लिए उचित पुनर्वास की मांग को लेकर मध्य प्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठीं नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। मेधा पाटकर और 11 दूसरे कार्यकर्ताओं का अनिश्चितकालीन उपवास सोमवार को 12वें दिन गिरफ्तार होने के बाद भी उपवास जारी रखा।
आज भी मेधा विस्थापितों की लड़ाई लड़ रही हैं। उनका कहना है कि सालों से चल रही यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक सभी प्रभावित परिवारों का पुर्नवास सही ढंग से नहीं हो जाता। मेधा जल, जंगल और ज़मीन के लिए देश भर मे चल रहे आंदोलनों से जुड़ी हैं।
संघर्षशील साथी मेधा बहिन को फिर एक बार जन्मदिन की फिर बधाई!