देश में विकास का गर्भपात हो चुका है, न्यायपालिका लोयालुहान हो तानाशाह की शरण में है, जिनको जरा भी गुमान हो या जिनका सपना 26 जनवरी, 1950 में लागू 'संविधान सम्मत भारत' है वो कल आये फ़ैसले का राजनीतिक अर्थ जान लें...
प्रसिद्ध रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज की टिप्पणी
राजनीति में व्यक्तिगत विवेक और ईमानदारी बहुत अनिवार्य है, पर उसका उपयोग राजनैतिक जन संवाद प्रक्रिया में न हो तो आपके लिए आत्मघाती भी हो सकती है। इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण हैं मनमोहन सिंह! मनमोहन सिंह ने देश निर्माण में नेहरु के बाद सबसे बड़ा योगदान दिया। फ़र्क यह है की नेहरु ने निर्माण की ज़मीन बनाई और मनमोहन सिंह ने नेहरु के समाजवाद पर न्याय, स्वावलंबन और धर्मनिरपेक्षता की ज़मीन पर खड़े सार्वभौमिक सम्प्रभुता सम्पन्न भारत को भूमंडलीकरण की सुनामी में उदारवाद के हाथों बेच दिया।
गरीबी आज मनमोहन सिंह के युग से कहीं विकराल है। बेरोजगारी चरम पर और धर्मनिरपेक्षता ध्वस्त हो चुकी है। नेहरु ने बंटवारे की विभीषिका से झुलसे नवराष्ट्र को प्रजातांत्रिक मूल्यों पर खड़ा कर एक संविधान सम्मत सार्वभौमिक सम्प्रभुता सम्पन्न भारत बनाया। नेहरु अपनी राजनीतिक सूझबूझ को देश के जनमानस से जोड़ने में कामयाब रहे। मनमोहन सिंह ने देश की जीडीपी की चर्चा पूरी दुनिया में करवा दी। भारत में एक बदहवास मध्यमवर्ग खड़ा किया, जिसका लालच इस कद्र बढ़ा कि उन्होंने धार्मिक बाबाओं की शरण ली। धार्मिक बाबाओं ने अपने भक्तों का निजी मीडिया के माध्यम से ऐसा जाल बिछाया की मनमोहन का विकास ‘विकारी परिवार’ का हथियार और वरदान हो गया।
मनमोहन सिंह एक निष्ठावान, कर्मठ देश सेवक की तरह अपने कर्तव्य में लगे रहे, पर वो प्रधानमंत्री की राजनीतिक भूमिका को भूल गए और यही गलती उनको और उनकी पार्टी को ले डूबी। UPA-1 में भूमंडलीकरण के आर्थिक मॉडल और वामपंथियों के समर्थन से सरकार चलाई। यह उस समय भी वो गठबंधन बेमेल था और आज भी है। धर्मनिरपेक्षता इसका आधार था, पर मनमोहन सिंह के अमेरिका से 123 करार किया तो वामपंथियों ने इसकी कब्र खोद दी।
दरअसल मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियाँ वामपंथ को पहले से पता दी। वामपंथियों ने सर्वहारा के कल्याण के लिए चार महत्वपूर्ण बिल संसद में पास करवाए (1. मनरेगा 2. सूचना का अधिकार 3. शिक्षा का अधिकार 4. स्वास्थ्य अधिकार)। पर अपने राजनीतिक दिवालियेपन की वजह से मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया। मनमोहन सिंह ने कोई भी धर्मनिरपेक्षता विरोधी काम नहीं किया था, फिर भी वामपंथियों ने समर्थन वापस ले लिया।
मनमोहन सिंह के उदारवाद से जन्मा मध्यमवर्ग अमेरिका से हुए 123 करार को अपने विकास का मंत्र मान रहा था। यह मध्यमवर्ग मनमोहन के साथ खड़ा हुआ और UPA2 सत्ता में फिर आई बिना वामपंथियों के। बाजारू मीडिया ने वामपंथियों को विकास विरोधी करार दिया और वामपंथी देश के राजनैतिक परिदृश्य से विलुप्त हो गए।
UPA2 का कार्यकाल मनमोहन सिंह के राजनीतिक आत्महत्या का काल रहा। सहयोगी दलों की लूट खसोट और राजनैतिक कुप्रबंधन का ‘विकारी परिवार’ ने जमकर फायदा उठाया। ‘विकारी परिवार’ ने संवैधानिक संस्थाओं में सेंध लगाई और 2G का बवंडर खड़ा करवा दिया। देश की राजनीतिक जमात ‘मनमोहन’ की खाल उतारने पर उतारू हो गई। ‘विकारी परिवार’ ने एक राजनीतिक रूप से अनाड़ी समाजसेवी को ‘भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन’ का मसीहा बना दिया।
राजनीतिक दीवालियेपन से लैस बुद्धिजीवियों ने इसका समर्थन किया। ‘विकारी परिवार’ का एक ही मकसद था मनमोहन सरकार की छवि को मलिन करना। यह कार्य ‘विकारी परिवार’ ने एक पूर्व जासूस से करवाया। हैरत है 60-65 साल सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी को इस सबकी भनक तक नहीं हुई या कांग्रेस पार्टी सत्तामद में इतनी चूर रही की उससे अपनी बर्बादी का ख्याल ही नहीं रहा।
मनमोहन सिंह ने आखिरी गलती यह की उन्होंने हथियार खरीदने के समझौतों पर रोक लगा दी जिससे अमेरिका और यूरोप का अर्थ संकट चरम पर पहुंचा और पूंजीवादी मीडिया ने पॉलिसी पैरालिसिस का टैग मनमोहन सिंह पर चिपका दिया। मनमोहन का किला ढह गया। मनमोहन सिंह के युग में जन्मा मध्यमवर्ग उनको लील गया। बाबाओं ने धर्म, संस्कार और संस्कृति के नाम पर समाज का किस तरह ब्रेनवाश कर दिया इसकी बानगी आपको अपने परिवार में मिल जायेगी, जब आपकी कट्टर कांग्रेस समर्थक सास सत्संग में जाकर नेहरु को मुसलमान मानने लगती है और फ़ौज से सेवानिवृत पिता नेहरु को देश की बर्बादी का जिम्मेदार मानने लगे।
नेहरु के बनाये AIIMS धूल चाटने लगे और संस्कृति के नाम सड़कछाप बाबा का योग अरबों खरबों का धंधा बन गया। पूंजीपतियों ने एक आत्ममुग्ध तानाशाह को ‘विकास’ का नक़ाब पहनाकर खड़ा किया और देश की विकास पिपासु जनता ने तानाशाह को देश की बागडोर सौंप दी। तानाशाह ने विकास को छोड़ा और राष्ट्रवाद के नाम पर दोबारा सत्ता हासिल की।
दोबारा सत्ता मिलते ही स्वर्ग को धरती से मिला दिया और कोर्ट से बहुसंख्यक हित का फ़ैसला लिखवा लिया और ‘विकारी परिवार’ के हिन्दूराष्ट्र बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। पूंजीपतियों के होश उड़ गए हैं। अब वो तानाशाह का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। हां, रिज़र्व बैंक के जमा पैसे से अपनी भरपाई करवा सकते हैं। मध्यमवर्ग राष्ट्रवाद के उन्माद में है और अब रामभक्ति में लीन हो जाएगा।
देश में विकास का गर्भपात हो चुका है। न्यायपालिका लोयालुहान हो तानाशाह की शरण में है। जिनको जरा भी गुमान हो या जिनका सपना 26 जनवरी, 1950 में लागू 'संविधान सम्मत भारत' है वो कल आये फ़ैसले का राजनीतिक अर्थ जान लें! 9 नवम्बर,2019 विधि सम्मत हिन्दूराष्ट्र का स्थापना दिवस है!