वोटर कार्ड, पैन कार्ड और ज़मीन के कागज़ नहीं नागरिकता के सबूत, गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने जुबैदा बेगम मामले में फैसला देते हुए कहा फोटोयुक्त वोटर आईडेंटिटी कार्ड, पैन कार्ड या फिर जमीन के कागजात नहीं हो सकते किसी व्यक्ति की नागरिकता का अंतिम सबूत...
जनज्वार। CAA-NRC को लेकर जहां पूरा देश आंदोलित है, वैसे में अगर कोर्ट यह कह दे कि वोटर आईडी, पैन कार्ड या जमीन के कागजों को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जायेगा, जो हलचल मचनी स्वाभाविक है। पहले से ही अपनी नागरिकता को लेकर सशंकित लोगों में इससे और ज्यादा डर बैठ जायेगा।
असम में NRC को लेकर पहले ही लोगों को नागरिकता साबित करनी बड़ी चुनौती बनी हुई है, वैसे में हाईकोर्ट का यह कहना कि वोटर आईडी, पैन कार्ड या जमीन के कागज नागरिकता साबित करने के लिए बतौर सबूत प्रयोग नहीं होंगे, से लोग और ज्यादा डर गये हैं।
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गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा है कि फोटो युक्त वोटर आईडेंटिटी कार्ड किसी व्यक्ति की नागरिकता का अन्तिम सबूत नहीं हो सकता। साथ ही यह भी कहा कि भूमि राजस्व रसीद, पैन कार्ड और बैंक दस्तावेजों का उपयोग नागरिकता साबित करने के लिए नहीं किया जा सकता। ऐसा तब है जबकि भूमि और बैंक खातों से जुड़े दस्तावेजों को प्रशासन के स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में रखा गया है।
असम में जुबैदा बेगम उर्फ जुबैदा खातून ने विदेशी न्यायाधिकरण के खुद को विदेशी घोषित करने के आदेश को चुनौती देने के लिए गुवाहाटी कोर्ट याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि वोटर आईडी, पैन कार्ड या फिर जमीन के कागजात होने भर से यह साबित नहीं हो जाता कि वह भारतीय नागरिक है। दूसरी तरफ सरकार का यह भी कहना है कि किसी भी व्यक्ति को तब तक डिटेंशन सेंटर नहीं भेजा जाएगा, जब तक उसके सारे कानूनी विकल्प समाप्त नहीं हो जाते हैं।
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इसके अलावा मोहम्मद बाबुल इस्लाम बनाम असम राज्य (केस संख्या 3547) में गुवाहाटी कोर्ट ने फैसला दिया था कि 'मतदाता फोटो पहचान पत्र नागरिकता का प्रमाण नहीं है।' जुलाई 2019 में ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किए गए बिस्वास ने कोर्ट को बताया कि उनके दादा दुर्गा चरण विश्वास पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के थे और उनके पिता इंद्र मोहन विश्वास 1965 में असम के तिनसुकिया जिले में चले गए थे, जिसके बाद यह परिवार वहीं बस गया था।
जुबैदा बेगम ने कोर्ट में कहा था कि वह असम में पैदा हुई थी और तिनसुकिया जिले के मार्गेरिटा शहर की निवासी है और उसने 1997 की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज होने का सबूत पेश किया है। यही नहीं 1970 में खरीदे जमीन के दस्तावेज भी कोर्ट में पेश किये गये थे।
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दूसरी तरफ इस मामले में गुवाहाटी कोर्ट ने जुबैदा बेगम के फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता 1997 से पहले की मतदाता सूची प्रस्तुत नहीं कर पायी, जिससे कि यह साबित हो सके कि उसके माता-पिता 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश कर चुके थे और वह 24 मार्च 1971 से पहले राज्य में रह रहे थे।
यह फैसला गुवाहाटी हाईकोर्ट के जस्टिस मनोजित भुयन और जस्टिस प्रथ्वीज्योति साइका ने अपना एक पुराना फैसला दोहराते हुए दिया। इससे पहले गुवाहाटी कोर्ट ने मुनींद्र विश्वास द्वारा दायर एक मामले में इसी तरह का फैसला दिया था। उसमें असम के तिनसुकिया जिले में एक विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी गई थी।
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक बेहद गरीब पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली जुबैदा बेगम गुवाहाटी से लगभग 100 किलोमीटर दूर बुक्सा जनपद के एक दूरदराज के गांव में रहती हैं। जुबैदा के पति रेजक लंबे समय से बीमार चल रहे हैं, इसलिए रोजी—रोटी का जुगाड़ भी उन्हें करना होता है। ऐसे में नागरिकता साबित करने की चुनौतियों के बीच परिवार के भूखों मरने की नौबत आने से इंकार नहीं किया जा सकता। जानकारी के मुताबिक जुबैदा की 3 बेटियां थीं, जिनमें से एक की बीमारी के चलते मौत हो गयी, क्योंकि वह समय पर पैसों के अभाव में इलाज नहीं करवा पायी थी, वहीं एक अन्य लापता हो गयी है और एक बेटी उनके पास रहती है।
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गौरतलब है कि असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (NRC) की अंतिम सूची जारी होने के बाद कम से कम 19 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। असम में इसकी समीक्षा के लिए 100 विदेशी न्यायाधिकरण स्थापित किए गए हैं।
दरअसल नागरिकता अधिनियम के उपबंध 6A के अनुसार, असम समझौते के तहत राज्य में नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1 जनवरी, 1966 है। जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 24 मार्च, 1971 के बीच राज्य में बस गए, उन्हें दस साल की अवधि के लिए अपनी वोटिंग के अधिकार से हाथ धोना पड़ेगा और उस अवधि के पूरा होने पर उसे वोट देने का अधिकार मिल जाएगा।