पहाड़ के किसानों ने सड़क पर दूध-सब्जी फेंक किया किसान विरोधी सरकारी नीतियों का बहिष्कार

Update: 2018-06-11 05:23 GMT

कहा सत्ता में बैठे लोगों के दलाल आम लोगों के बीच छिप किसान आंदोलन को बदनाम करने का कर रहे हैं काम

रामनगर, जनज्वार। किसानों की दस दिवसीय देशव्यापी हड़ताल 'गांव बंद' के अन्तिम दिन कल रविवार 10 जून को हड़ताल का समर्थन में किसान संघर्ष समिति के नेतृत्व में उत्तराखण्ड के रामनगर क्षेत्र के किसानों ने दूध व सब्जियों के स्टाक को प्रतीकात्मक रूप से सड़क पर फेंककर अपना विरोध दर्ज कराया।

रामनगर के रानीखेत रोड पर आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान किसानों की सभा को सम्बोधित करते हुये वक्ताओं ने आरोप लगाया कि सत्ता में बैठे हुये लोगों के दलाल आम जनता के बीच छिपकर किसानों के आंदोलन को बदनाम करने का काम कर रहे हैं। किसानों का दस लीटर दूध, बीस किलो गेहूं प्रतीकात्मक रूप से सड़क पर फेंकना उन्हें अनाज का अपमान लग रहा है, लेकिन सरकारी गोदामों में लाखों टन गेहूं सड़ जाये या इनके नेताओं की आलीशान दावतों में सैकड़ों लोगों के हिस्से के खाने को कचरे के ढेर में फेंककर बरबाद कर दिया जाये, तो इनके मुंह में दही जम जाता है।

वक्ताओं ने आंदोलन का विरोध करने वाले मध्यम वर्ग के लोगों को किसानों के बीच जाकर उनकी हालत देखने की सलाह देते हुये कहा कि किसानों के आंदोलन पर छाती कूटकर विधवा विलाप करने वाले तब क्यो नहीं बोलते जब सरकार खुद हर साल लाखों टन गेहूं शराब माफिया को देने के लिये जान-बूझकर सड़वा देती है, जबकि इस गेहूं को तिरपाल व गोदामों की मदद से सड़ने से बचाया जा सकता है।

दुग्ध समिति के संयोजक ललित उप्रेती ने किसानों के कर्ज माफ करने, बीज, खाद, कृषि उपकरण व डीजल आदि किसानों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराये जाने, खेतों की फसल को जंगली जानवरों से बचाने व जंगलों-चारागाहों पर किसानों के हक-हकूक बहाल करने के लिये व्यापक आंदोलन चलाने की घोषणा की।

समिति के सहसंयोजक महेश जोशी ने कहा कि सरकार किसानों को अन्नदाता कहकर महिमामंडित कर रही है, लेकिन उनकी तकलीफों से लगातार मुंह चुरा रही है, ऐसी स्थितियों में किसानों के सामने सड़कों पर उतरने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।

महिला एकता मंच की ललिता रावत ने कहा देश के लिये दुर्भाग्य की बात है कि जिस किसान को अपने खेत में फसल उगानी चाहिये थी वही आज सरकार की जानलेवा नीतियों के चलते सड़कों पर उतरने को मजबूर है। उन्होंने महिला किसानों की दुर्दशा की चर्चा करते हुये कहा कि सरकारों के महिला सशक्तीकरण के सारे दावे महिला किसान के लिये खेत में जाकर दम तोड़ देते हैं।

गांव की महिलाओं को आज भी दोहरे शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। महिला उत्थान की सारी योजनाएं सरकारी विभागों की फाइलों में ही चलती रहती हैं जिनका लाभ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को नहीं मिल पाता है। ललिता रावत ने दूध का क्रय मूल्य बढ़ाने के साथ ही अन्य सब्जियों आदि की खरीद के लिये ग्राम स्तर पर ही क्रय खोलने की भी मांग की।

इस मौके पर तुलसी देवी, शांति देवी, बचुली देवी, चम्पा, भवानी देवी, विमला देवी, देवकी देवी, दामोदर भटट, आनन्द नेगी, बलवंत नेगी, हरिदत्त करगेती, महेन्द्र सिंह, गोपाल सिंह जीना, बालादत्त छिम्वाल, केशव दत्त, मोहन खाती, पनीराम, सरस्वती जोशी, नरोत्तम पंचोली, हीरा सिंह, अमीर अहमद, दिनेश मोहन खाती, रघुराज फत्र्याल, याकूब खान, मोहन सती समेत कई लोग मौजूद रहे।

किसानों के इस कार्यक्रम को समाजवादी लोकमंच के मुनीष कुमार व देवभूमि विकास मंच के मनमोहन अग्रवाल ने भी समर्थन दिया।

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