पाकिस्तान की सड़कों पर विंग कमांडर अभिनंदन के पक्ष में प्रदर्शन

Update: 2019-03-01 05:40 GMT

इस्लामाबाद की सड़कों पर उतरीं महिलाएं, कहा हमें जंग नहीं अमन चाहिए, बम नहीं कलम चाहिए

उन्हें दो देशों को मरघट में बदलते नहीं देखना था, इसलिए वो अमन और प्यार का पैगाम लेकर सड़कों पर उतरीं। न्यूज चैनल जब आवाम को युद्ध और उन्माद को राष्ट्रभक्ति का पैमाना बनाकर पिला रहे थे, वो अभिनंदन को वापिस भारत भेजने की मांग लेकर सड़कों पर उतरीं...

सुशील मानव

उनका देशप्रेम पड़ोसी मुल्क का मोहताज़ नहीं था इसलिए वो सड़कों पर उतरीं। वो औरतें थी पाकिस्तान की, लेकिन वे हिंदुस्तान से नफ़रत नहीं करती हैं इसलिए वो 28 फरवरी को इस्लामाबाद की सड़कों पर उतरी। उन्हें युद्ध नहीं चाहिए था इसलिए वो ‘Say no to war’ का बैनर लेकर सड़कों पर उतरी। वे अपने मुल्क की जागरुक चेतनासंपन्न और विवेकशील नागरिक थी इसलिए वो युद्ध के खिलाफ़ ‘Women against war’ का बैनर लेकर सड़कों पर उतरीं। उन्हें फर्जी रष्ट्रवाद के बरअक्स मनुष्यता की फिक्र थी इसलिए वो सड़कों पर उतरी। उन्हें दो देशों की मांओं, बीबियों और बच्चों की वेदना का एहसास था इसलिए वो सड़कों पर उतरीं।

उन्हें दो देशों को मरघट में बदलते नहीं देखना था, इसलिए वो अमन और प्यार का पैगाम लेकर सड़कों पर उतरीं। सीमा के इस पार जब युद्ध और उन्माद को राष्ट्रभक्ति का पैमाना बनाकर न्यूज चैनल जब आवाम को पिला रहे थे, वो अभिनंदन को वापिस भारत भेजने की मांग लेकर सड़कों पर उतरीं। सीमा के इस पार जब पाकिस्तान को दुश्मन बताकर बच्चे—बच्चे को भड़काया जा रहा था वो ‘I am Pakistani, I don’t hate INDIA’ (मैं पाकिस्तानी हूँ, मैं भारत से नफ़रत नहीं करती) का बैनर लेकर सड़कों पर उतरीं।

जब युद्ध को वीरता, शूरता और बदला बताकर उनपर थोपा जा रहा था वो ‘I Hhate war’ (हम युद्ध से नफ़रत करती हैं) का बैनर लेकर सड़कों पर उतरी। उन्होंने शांति को अपने देश की कमजोरी और कायरता नहीं समझा क्योंकि वो बुजदिल नहीं थी। उन्हें सौनिकों की लाश पर चढ़कर आनेवाली वीरता और राष्ट्रवाद को नकार दिया।

दोनों ओर के लड़ाकू विमान जब एक दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण कर अपना शौर्य दिखाने को बाध्य किये जा रहे थे, दोनो ओर के न्यूज चैनल एक दूसरे की लड़ाकू विमानों को मार गिराने का दावा कर रहे थे, जब भारत सरकार लगातार भारतीय पायलट के पाकिस्तान की कैद में होने की दावों को इन्कार कर रही थी वो पायलट अभिनंदन की सुरक्षित रिहाई के लिए सड़कों पर उतरी। मैं भारत से नफ़रत नहीं करती, ‘मैं अकेली नहीं हूँ मेरे जैसे और भी लोग हैं’ जैसी पंक्तियों से उन्होंने प्रगतिशील भारतीयों के दिल-ओ-दिमाग में मनुष्यता, संवेदना और सौहार्द्र का संचार किया।

सच में वो अकेली नहीं थीं, उनके साथ समूचा विश्व खड़ा था। उनके साथ उनके बच्चे और पारंपरिक परिधान वाले पुरुष भी सड़कों पर उतरे। ‘वूमेन अगेन्स्ट वॉर’ और ‘युद्ध हल नहीं है’ जैसी पंक्तियों के साथ लाहौर की सड़कों पर उतरी सबल पाकिस्तानी औरतों ने भारतीय पुरुषों के युद्धोन्मादित पौरुष को परास्त कर दिया।

तीन दिन के इस स्क्रिप्टेड युद्ध नाटक में पाकिस्तानी औरतों के रुख और भारतीय लोगों के रुख़ से एक बात स्पष्ट हो गई कि पुरुष मन जहां युद्ध, उन्माद नफ़रत बदले की भावना से भर कर पाकिस्तान, इमरान खान और पाकिस्तानी झंडे को पैरों से कुचलकर फूंक रहे थे, वहीं औरतें युद्ध और पीड़ा में भी प्रेम प्रतिवाद और अमन चुनती हैं। No Gun, No Bum, Say No To War (बंदूक नहीं, बम नहीं, युद्ध को नकार दें) जैसे उनके स्लोगन मेरी बात को पुख़्ता करते हैं। यदि हम थोड़ा पीछे देखें तो पाएंगे कि आसिया बीबी के समर्थन में भी पाकिस्तानी औरतें सड़कों पर उतरी थी।

भारतीय पुरुष सड़कों और सोशल मीडिया पर जहां पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे, वहीं पाकिस्तानी औरतें ‘हम भारत से नफ़रत नहीं करती’ जैसे स्लोगन लेकर सड़कों पर लोगों से अमन की अपील कर थी। ये मनुष्यता की जीत है और राष्ट्रवादी उन्माद की हार है। ये उस बिकी हुई भारतीय कारपोरेट मीडिया की हार है जो लगातार झूठ पर झूठ परोसकर देश की आवाम को गुमराह कर था।

जो लगातार देश की आवाम की चेतना को कुंठित व कुंदित करके उनका ब्रेनवॉश करने के एजेंडे में लगा हुआ था। ये उस मीडिया की हार है। अहिंसा और अमन की राह चुनने वालों को मनुष्यता और इतिहास कभी विस्मृत नहीं होने देता। पाकिस्तानी आवाम को अमन और अहिंसा के पक्ष में एकजुट होते देखकर महात्मा गांधी की आत्मा आज ज़रूर खुश हुई होगी।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पाक संसद में पायलट अभिनंदन वर्तमान के रिहाई की घोषणा तो समूचे पाक संसद बैठे सांसदों ने टेबल थपथपाकर अपने पीएम का एकमत से समर्थन किया। बेशक़ इस पूरी घटना से पीक पीएम इमरान ख़ान का वैश्विक कद बढ़ा है।

इससे पहले आसिया बीबी मसले पर भी पाक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इंप्लीमेंट करते समय इमरान खान ने वहां के कट्टरपंथियों के सामने घुटने नहीं टेके थे लेकिन यदि हम सबरीमाला मंदिर में औरतों के प्रवेश देने के भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भारत सरकार का रुख़ और सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के बयान को इसके बरअक्स देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान नए प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में लगातार लोकतांत्रिक हो रहा है, जबकि भारत की दशा इसके ठीक उलट है हम एक देश और समाज के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लगातार अलोकतांत्रिक कट्टर और बर्बर हुए हैं।

काश की थोड़ी सामूहिक चेतना, थोड़ा सामूहिक विवेक थोड़ी सामूहिक शर्म एक नागरिक के तौर पर हममें भी होती तो हम भी युद्ध के खिलाफ़ सड़कों पर होते। तो आज किसी की इतनी जुर्रत नहीं होती कि वो महज अपनी सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने के लिए हमारे जीते जागते देश को मरघट में तब्दील होने के लिए युद्ध में झोंक देता।

ये एक सनकी का दो देशों की आवाम पर थोपा हुआ युद्ध अगर आगे नहीं बढ़ सका तो इसके लिए हमें पाकिस्तान की अमनपसंद आवाम और वार्ता और शांति की पहल करने वाले पाकिस्तान के परिपक्व वजीरे आजम का शुक्रगुज़ार होना चाहिए।

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