भारत में जितने गरीब भूख से पीड़ित उससे ज्यादा का खाना पैसे वाले कर देते हैं बर्बाद
भारत में जितना खाना प्रतिदिन तैयार किया जाता है, उसमें से लगभग 40 प्रतिशत हो जाता है बेकार, देश में प्रतिवर्ष 2 करोड़ 10 लाख टन गेहूं की होती है बर्बादी, जिससे भर सकता है करोड़ों गरीबों का पेट...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। इस दुनिया में भूखे लोगों की संख्या कुल आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक है, पर अनेक अध्ययन बताते हैं कि दुनिया में जितना खाना बनता है उसमें से 30 से 50 प्रतिशत तक बर्बाद कर दिया जाता है। इसमें खाने के बर्बादी की वह मात्रा शामिल नहीं है जो लोग खाने को जरूरत से ज्यादा खाकर बर्बाद करते हैं। हमारे देश में भूखे लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है और हमारे देश में जितना खाना बर्बाद किया जाता है, उतना खाना पूरे यूनाइटेड किंगडम में बनाया जाता है।
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सबसे अधिक खाने की बर्बादी पर्यटन उद्योग में की जाती है, पर इसका सही आकलन नहीं किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्टर्न फ़िनलैंड और यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने अपने एक नए अध्ययन में बताया है कि पर्यटन उद्योग परंपरागत पर्यटन को छोड़कर लगातार नए प्रयोग कर रहा है।
पहले पर्यटन उद्योग होटलों, रेस्टोरेंट्स, और रिसोर्ट्स तक ही सीमित था, पर अब यह टेंट हाउसेस, जंगलों, नदी के किनारे, कैम्पिंग, काउच सर्फिंग, मित्र या स्थानीय निवासियों के घरों और विशेष तौर पर तैयार की गयी गाड़ियों तक फ़ैल गया है।
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यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्टर्न फ़िनलैंड के वैज्ञानिक जुहो पेसोनें के अनुसार होटलों और रेस्टोरेंट से खाने की बर्बादी का आकलन तो कर लिया जाता है, पर पर्यटन से जुड़ी अन्य जगहों पर यह आकलन नहीं किया जाता, पर यह एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है।
पर्यटन उद्योग में जितनी विविधता आती जा रही है, खाने के बर्बादी के स्त्रोत उतने ही विविध होते जा रहे हैं। अनुमान है कि दुनिया में प्रतिदिन 13 लाख टन खाने की बर्बादी की जाती है और इसके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार भारत में जितना खाना प्रतिदिन तैयार किया जाता है, उसमें से लगभग 40 प्रतिशत बेकार हो जाता है। देश में प्रतिवर्ष 2 करोड़ 10 लाख टन गेहूं बर्बाद होता है। कृषि मंत्रालय के अनुसार देश में जितना खाना बर्बाद किया जाता है उसका मूल्य 50000 करोड़ रुपये के लगभग है। इसके साथ ही सिंचाई के लिए उपयोग किया जाने वाले कुल पानी में से 25 प्रतिशत से भी अधिक व्यर्थ हो जाता है।
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वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में खाने की बर्बादी के चलते सिंचाई के लिए उपयोग किये जाने वाले पानी में से 25 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। दुनिया भर से जितना ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, उसमें से 8 प्रतिशत से अधिक अकेले खाने की बर्बादी से उत्पन्न होता है।
ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की यह मात्रा अमेरिका और चीन को छोड़कर किसी भी देश द्वारा किया जाने वाले उत्सर्जन से अधिक है। यही नहीं, इस बर्बाद किये जाने वाले खाने को पैदा करने में चीन के क्षेत्रफल से भी अधिक भूमि की आवश्यकता होती है।
कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ गोउल्फ के वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया कि हरेक घर से प्रति सप्ताह औसतन जितना खाना बेकार होकर फेंका जाता है, उसका कैलोरी मान 3366 होता है और इस खाने से 2.2 वयस्क व्यतियों या फिर 1.7 बच्चों को प्रतिदिन पर्याप्त पोषण मिल सकता है।
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इस व्यर्थ खाने के चलते हरेक परिवार को लगभग 18 डॉलर प्रति सप्ताह का नुकसान उठाना पड़ता है। हरेक परिवार केवल व्यर्थ खाने के चलते वायुमंडल में 23.3 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता है और इसके साथ ही 5 किलोलीटर पानी बर्बाद करता है।
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जाहिर है, व्यर्थ खाना दुनियाभर में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, पर विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया में जितनी असमानता बढ़ेगी यह समस्या उतनी ही बढ़ती जायेगी। जो खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर रहे हैं, गरीब हैं और जो खाना व्यर्थ कर रहे हैं वे अमीर हैं और अपने पैसों के बल पर व्यर्थ करने के लिए कुछ भी खरीद सकते हैं। पर दुनिया की सामाजिक समरसता, आर्थिक विषमता और पर्यावरण संकट को दूर करने के लिए इस समस्या का समाधान शीघ्र खोजना होगा।