ऑटोमोबाइल कंपनियों को मंदी से उबारने का पीएम मोदी ने किया सराहनीय प्रयास, सभी कर रहे हैं उन्हें दोनों हाथों से सैल्यूट
प्रधानमंत्री पहले रेंज रोवर से चलते थे, जो कि रतन टाटा की थी, अब वे लैंड क्रूजर से चल रहे हैं जो कि जापान की कंपनी है। मोदी की इस रणनीति से जापान और भारत के संबंध प्रगाढ़ होंगे और इससे फायदा ये होगा कि बनारस को टोक्यो बनाने में तेजी आएगी...
मोदी के 5 साल में BMW से land cruiser जैसी करोड़ों की गाड़ी के सफर पर स्वतंत्र कुमार की चुटकीली टिप्पणी
जनज्वार। मोटरसाइकिलों और कारों की बिक्री न होने के कारण ऑटोमोबाइल कंपनियां भयंकर मंदी के दौर से गुजर रही हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मांदी के सराहनीय प्रयास की चौतरफा चर्चा हो रही है कि उन्होंने तीन साल में तीन गाड़ियां बदलकर न सिर्फ कर्ज में डूबी कंपनियों को मंदी से उबारने की नींव रखी है, बल्कि मजदूर हाथों को रोजगार भी दिया है और देश के उन्नति में वैयक्तिक योगदान भी।
प्रधानमंत्री मोदी जब नए-नए प्रधानमंत्री बने तो वे BMW से चले। देश-दुनिया में उनका बहुत ज्यादा नाम हो गया, ओबामा उनका लंगोटिया यार और ट्रंप उनसे राय लेकर निर्णय लेने लगा तो वे Range rover से चलने लगे, लेकिन पांच साल पूरे होने के बाद जब वे इस ब्रह्मांड के सबसे ताकतवर नेता बन गए तो फिर उन्होंने हाल ही में land cruiser की सवारी करनी शुरू की है।
अगर आप भक्तों के शब्दों में समझना चाहें तो, 'हिंदू हृदय सम्राट मोदी जी ने अबकी बार 15 अगस्त को मुगलों के बनाए लाल किले की धरती को डेढ़ करोड़ की लैंड क्रूजर से रौंदा है।'
वहीं मोदी जी कि गाड़ी बदलने की इस प्रवृत्ति पर कुछ विपक्षियों और मोदी विरोधी लोगों ने ओछी मानसिकता वाली बातें कहीं हैं, जो उनके देशद्रोही होने का ही सदा से परिचायक है। इन लोगों का मत है कि यह उनका यानी मोदी जी का निहायत आत्मकेंद्रित शानो—शौकत दिखाने का तरीका है। पहले वह दिन में चार कपड़े बदलते थे अब वे साल—दो साल में करोड़ों की गाड़ियां बदलने लगे हैं। विरोधियों का कहना है कि जो देश में भयंकर मंदी से गुजर रहा है और जनता को खाना और बच्चों की पढ़ाई करवा पाना मुश्किल हो रहा है, वहां का प्रधानमंत्री करोड़ों की गाड़ियां बदले, फिर इसे नीरो और हिटलर न कहा जाए तो क्या कहा जाए?
हालांकि ये आरोप पहली नजर में निराधार लग रहे हैं और उनके द्वारा डेढ़ साल के फर्क पर गाड़ी बदलने का मामला देशहित में ही जान पड़ता है। एक तो मोदी करोड़ों गाड़ियों से नहीं, बल्कि मात्र 1.50 करोड़ की गाड़ी से चलते हैं। दूसरा यह भी सोचने की जरूरत है कि उन्होंने जिन दो गाड़ियों को छोड़कर तीसरी खरीदी है, वह जरूरतमंदों के भी तो काम आएगी। प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री की यह योजना वैसे ही सफल भारत का निर्माण करेगी, जैसा गैस सब्सिडी छोड़ने वाली योजना का असर हुआ था।
सूत्रों का यह भी कहना है कि एक गाड़ी बदलकर दूसरी लेने की प्रधानमंत्री अपनी इस पहल पर 'मन की बात' करने वाले हैं। वे देश को बताने वाले हैं कि अगर आप भी एक गाड़ी बदलकर दूसरी गाड़ी लेंगे तो थोड़ा आपको कष्ट होगा, लेकिन राष्ट्र की इससे उन्नति होगी। आपके गरीब भाइयों को पुरानी गाड़ी सस्ते में मिलेगी और नए से कंपनियों की मंदी दूर होगी।
कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने इस मामले में एक नया एंगल भी पकड़ा है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री पहले रेंज रोवर से चलते थे, जो कि रतन टाटा की थी, अब वे लैंड क्रूजर से चल रहे हैं जो कि जापान की कंपनी है। मोदी की इस रणनीति से जापान और भारत के संबंध प्रगाढ़ होंगे और इससे फायदा ये होगा कि बनारस को टोक्यो बनाने में तेजी आएगी।
मोदीनॉमिक्स के जानकार अर्थशास्त्री के रतनवाला का कहना है कि ऑटोमोबाइल कंपनियों को मोदी के इस तरीके से अगले तिमाही में मुनाफे की उम्मीद है, सीधी बात है गाड़ी बदलने से ही गाड़ियां बिकेंगी, गाड़ियां बिकेंगी तो मंदी दूर होगी। सो सिंपल!