पुलवामा हमले की बरसी : मोदी सरकार में दूध बेचकर जीने को मजबूर शहीद जवान का पिता

Update: 2020-02-14 07:08 GMT

पुलवामा के शहीद रमेश यादव का परिवार आज किल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर है। सरकार की उपेक्षा के चलते आज भी शहीद के घरवालों को पर्याप्त आर्थिक मदद नहीं मिली, जिसकी वजह से शहीद के बुजुर्ग पिता को दूध बेचकर गुजारा करना पड़ रहा है...

जनज्वार। 14 फरवरी का दिन भारत के लिए यह ‘काला दिवस’ साबित हुआ, क्योंकि इसी दिन यानी पिछले साल 4 फरवरी 2019, को तकरीबन 3.30 बजे कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों के काफिले से एक गाड़ी टकराई और भयंकर धमाका हुआ। धमाके के बाद सड़क पर जवानों के क्षत-विक्षत शव नजर आने लगे। इस आतंकी साजिश में कुल 42 जवानों की दर्दनाक मौत हो गई।

इसमें अकेले उत्तर प्रदेश के 12 जवान शहीद हुए, जिसमें वाराणसी के शहीद रमेश यादव भी हैं। रमेश यादव का परिवार आज किल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर है। सरकार की उपेक्षा के चलते आज भी शहीद के घरवालों को पर्याप्त आर्थिक मदद नहीं मिली, जिसकी वजह से शहीद के बुजुर्ग पिता को दूध बेचकर गुजारा करना पड़ रहा है। सरकार के आश्वासन के बाद भी गांव में शहीद स्मारक, मूर्ति और शहीद के नाम पर गांव के प्रवेश द्वार नदारद है।

गौरतलब है कि पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों की मौत को लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने खूब भुनाया। नतीजा ये हुआ कि पिछली बार के मुकाबले बीजेपी को कहीं ज्यादा सीटें मिलीं और फिर से केंद्र में बीजेपी की सरकार बन गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री तो बन गए लेकिन शहीदों की याद में बनने वाले स्मारक बनाना भूल गए।

मोदी सरकार द्वारा जवान की उपेक्षा की वजह से आज शहीद का परिवार दुखी है। वहीं शहीदों के सम्मान में गाये जाने वाले गीत-‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।’ की राह देख रहा है।

आज भी अपने बेटे को याद करके रमेश चादव की मां रोने लगती हैं। रमेश यादव की पत्नी, बड़ा भाई और बुजुर्ग पिता दूध साइकिल से ले जाते हैं। शहीद की मां से जब बेटे के नाम पर सरकार द्वारा सहयोग की बात पूछने पर वह रोने लगती हैं।

शहीद रमेश के ढाई साल के बेटे को तो शायद यह भी नहीं मालूम कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं, पुलवामा हमले में उनकी जान जा चुकी है। रमेश यादव की मौत के वक्त उनका बेटा मात्र डेढ़ वर्ष का था। घर की माली हालत खराब है।

हमले के 1 साल बीतने को हैं, शहीद के गांव में उनके नाम पर न तो शिलापट्ट लगाई गई, न शहीद स्मारक बना। न ही मूर्ति की स्थापना हुई और न ही शहीद के नाम पर गांव में प्रवेश द्वार बना। यहां तक की गांव के सड़क ही हालत तक नहीं बदली। जैसे की तैसी अभी भी गांव की हालत बनी हुई है।

पूरा देश जवानों की शहदत से भावुक पूरा देश जवानों की शहदत से भावुक और हमले से आक्रोशित था। आतंकियों और उनके आकाओं से बदले की मांग उठने लगी। हमले के खिलाफ पूरा देश और राजनीतिक दल एकजुट थे। एक सुर में पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों को सबक सिखाए जाने की मांग उठी। पूरे विश्व ने इस हमले की निंदा की। संयुक्त राष्ट्र ने भी इस हमले के लिए पाकिस्तान को चेतावनी दे डाली, मगर जमीनी हकीकत क्या है आज उन शहीदों के परिजनों के पास जाकर पता चलती है।

इससे पता चलता है कि सेना और शहीदों का इस्तेमाल राजनेता सिर्फ अपनी राजनीति भुनाने के लिए करते हैं।

Similar News