चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति ने किया खारिज, कहा वजह है तकनीकी

Update: 2018-04-23 18:07 GMT

भारत के इतिहास में पहली बार किसी सीजेआई को लेकर सामने आया था महाभियोग प्रस्ताव, विपक्ष ने लगाया था आरोप महत्वपूर्ण और संवेदनशील मसलों को पीठों को आवंटित करने में दीपक मिश्रा ने किया था पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग

जनज्वार, दिल्ली। सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा पेश किए गए महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति ने अस्वीकार कर दिया है। महाभियोग खारिज करने की वजह बताते हुए वैंकेया नायडू ने कहा कि इस प्रस्ताव में कोई मेरिट नहीं है, इसका मतलब तकनीकी आधार पर इसे खारिज किया गया है।

गौरतलब है कि भारत में पहली बार किसी प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लगाया गया था। राज्यसभा में महाभियोग खारिज होने के बाद कांग्रेस इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।

मीडिया में आ रही रिपोर्टों के मुताबिक महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने की वजह उपराष्ट्रपति ने बताई कि इसमें सात रिटायर्ड सासंदों के दस्तखत हैं और इसमें उन्हें कोई मेरिट भी नजर नहीं आया। सीआईजे के खिलाफ आए महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने से पहले वेंकैया नायडू ने संविधान विशेषज्ञों से बातचीत की थी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ कांग्रेस समेत सात विपक्षी पार्टियों ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था।


उपराष्ट्रपति द्वारा महाभियोग प्रस्ताव खारिज करने पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का कहना है कि राज्यसभा के सभापति के पास मेरिट के आधार पर किसी प्रस्ताव को खारिज करने का कोई अधिकार ही नहीं है, यह सरासर असंवैधानिक कदम है।

गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने महाभियोग प्रस्ताव खारिज किए जाने का 10 पेज का आदेश जारी किया है। अपने आदेश में उन्होंने सिलसिलेवार तरीके से महाभियोग खारिज करने के आधार को बताया है। उनके आदेश में कुल 22 बिंदु ऐसे हैं, जिसके आधार पर महाभियोग खारिज किया गया है।

अपने आदेश में उपराष्ट्रपति ने कहा है कि विपक्ष के 71 सांसदों के हस्ताक्षर किए गए महाभियोग प्रस्ताव में सात पूर्व सांसदों के हस्ताक्षर थे, इसलिए तकनीकी आधार पर इसे ख़ारिज किया गया है।

महाभियोग खारिज करने का आदेश देते हुए वेंकैया नायडू ने मीडिया को बताया कि 'दुर्व्यवहार या नाकाबलियत के बारे में ठोस, विश्वसनीय जानकारी नहीं है। मुझे लगा कि इस मामले को लंबा खींचना उचित नहीं है। यह तकनीकी तौर पर किसी भी तरह से मंजूर करने लायक नहीं है। कानून के जानकारों से सलाह के बाद सामने आया कि नोटिस न तो वांछनीय है और न ही उचित।'

वहीं दूसरी तरफ महाभियोग खारिज किए जाने को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने दुखद बताते हुए कहा कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मसला था, उपराष्ट्रपति ने इसे क्यों खारिज किया यह समझ से परे है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भी कानूनी विशेषज्ञों से बात कर अपना अगला कदम उठाएंगे।

मीडिया में आ रही जानकारी के मुताबिक महाभियोग पर अपना फैसला सुनाने से पहले उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अलावा लोकसभा के महासचिव, पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा, पूर्व विधायी सचिव संजय सिंह और राज्यसभा सचिववालय के अधिकारियों के साथ विशेष मुलाकात कर इस पर जानकारी। इतना ही नहीं यह भी कहा जा रहा है कि अपना निर्णय देने से पहले उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी से भी राय ली.

क्या है मामला जिस पर विपक्ष ने सीजेआई के खिलाफ पेश किया महाभियोग प्रस्ताव
20 अप्रैल को कांग्रेस की अगुवाई में सात विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति नायडू को न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ कदाचार का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए महाभियोग का नोटिस दिया था।

भारत के संविधान के मुताबिक चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर अंतिम फैसला देने का अधिकार राज्यसभा के सभापति यानी उपराष्ट्रपति का होता है। अगर राज्यसभा का सभापति प्रस्ताव को खारिज कर दे तो महाभियोग पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।

अब जबकि उपराष्ट्रपति ने महाभियोग प्रस्ताव खारिज कर दिया है तो विपक्ष के पास एकमात्र दरवाजा सुप्रीम कोर्ट का बचा है, जहां वह इस प्रस्ताव को लेकर जा सकता है। कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक विपक्ष सुप्रीम कोर्ट में इस प्रस्ताव को पेश करने की तैयारी कर रहा है।

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