उस पत्रकार की कहानी जिसने राम रहीम को उखाड़ फेंका

Update: 2017-08-26 18:03 GMT

जो लोग बड़ी मीडिया के नाम पर मोहित होते हैं, उन्हें एक बार राम रहीम के गुंडों द्वारा मारे जा चुके पत्रकार रामचंद्र छत्रपति का जीवन संघर्ष पढ़ना चाहिए कि कैसे उन्होंने स्थानीय और एक छोटे अखबार 'पूरा सच' के संपादक रहते हुए राम रहीम के खिलाफ वह लिख पाए बड़ी मीडिया कभी नहीं कर पाई।

पढ़िए, सिरसा के कवि और पत्रकार वीरेन्द्र भाटिया का संस्मरण कि 'पूरा सच' के संपादक रहते हुए रामचंद्र छत्रपति ने कैसे किया बलात्कारी राम रहीम के गुनाहों का सिलसिलवार खुलासा

दरअसल छत्रपति केवल एक पत्रकार का नाम नहीं है। वे गणेश शंकर विद्यार्थी की परंपरा के एक ऐसे पत्रकार थे जो सच्चाई के पक्ष में निर्भीकता के साथ खड़े रहे। उनके जीते जी हम उनका सही मूल्यांकन नहीं कर पाए लेकिन उनके जाने के बाद हम महसूस करते हैं कि उनका कद कितना बड़ा था।

छत्रपति एक सामान्य किसान परिवार में पैदा हुये थे। वे बेहद संवेदनशील होने के साथ साथ बेहद जहीन भी थे। उन्होंने वकालत पास की थी लेकिन इस व्यवसाय के छल प्रपंच के वे अभयस्त नहीं हो पाए। उनके सामने एक ऐसा समाज था जो कदम-कदम पर अपने को उपेक्षित महसूस करता था। इस वंचित और उपेक्षित समाज और उसके सपनो के रास्ते में कितनी बाधाएं थीं, कितने षड़यंत्र थे वे प्रत्यक्ष देखा करते थे।

उन्होंने पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में अपनाया और उसे समाज हित मे मिशन में बदल दिया। लेकिन हर पत्रकार इतना भाग्यशाली नहीं होता की वह स्वतंत्र होकर सच लिखे सके। कई अखबारों में काम कर चुकने के बाद अंततः उन्होंने अपनी हैसियत के अनुरूप एक छोटा अखबार निकाला।

अखबार का नाम था 'पूरा सच' अखबार का स्वरूप स्थानीय था, तो जाहिर है उसे टकराना भी स्थानीय ताकतों से था। उसने कई ऐसे षड्यंत्रों का भंडाफोड़ किया कि सरकार काँप उठी।

हर सरकार के नजदीक रहने वाला बहुत शक्तिशाली संस्थान डेरा सच्चा सौदा पाखण्ड और षड्यंत्र का गढ़ बना हुआ था। डेरा प्रमुख और वहां रहने वाले साधुओं पर बहुत गंभीर आरोप लग रहे थे। वे आरोप चर्चा में आते और विलीन हो जाते, क्योंकि कोई भी पत्रकार इतनी बड़ी सत्ता से टकराना नहीं चाहता था लेकिन छत्रपति को इसी में मजा आ रहा था।

छत्रपति ने डेरा सच्चा सौदा के कच्चे चिट्ठे खोलने शुरू किये। डेरा द्वारा बिजली चोरी, साधुओं—अनुयायियों की गुड़ागर्दी की घटनाएं जब अखबार की सुर्खियां बनने लगीं तब डेरा प्रमुख बौखला गया।

सबसे बड़ी खबर जो छत्रपति की मौत का कारण बनी वह एक पीड़ित साध्वी (अनुयायी) की प्रधानमंत्री को लिखी चिठ्ठी थी, जिसमें यह जिक्र था कि डेरा प्रमुख ने उसका यौन शोषण किया और डेरे में रहने वाली अन्य साध्वियों के साथ अक्सर यही होता है।

इस चिठ्ठी के प्रकाश में आने के बाद साध्वी का भाई जो कि डेरा की महत्त्वपूर्ण प्रबंधक कमेटी का सदस्य था, की रहस्यमयी परिस्थितियो में हत्या हो गई। डेरा को शक था कि साध्वी की लिखी चिठ्ठी रणजीत सिंह ने ही लीक की है। और जब साध्वी की यह चिठ्ठी पूरा सच में प्रमुखता से छपी तो अब तक छत्रपति को खरीदने की कोशिश करता आया डेरा यह बर्दाश्त नहीं कर पाया।

24 अक्टूबर, 2002 को करवाचौथ के दिन डेरे द्वारा भेजे गए दो शूटरों ने 5 गोलियां छत्रपति की देह में उतार दी। संयोगवश एक हत्यारा मौके पर भागते वक्त पकड़ लिया गया। दूसरा बाद में गिरफ्तार किया गया। हरियाणा पुलिस ने हरसंभव कोशिश की कि छत्रपति की हत्या के आरोप से डेरा मुखी साफ़ बच जाए लेकिन छत्रपति के परिवार ने कानूनी लड़ाई लड़ी और सीबीआई जांच की मांग की।

लेकिन डेरा सीबीआई जांच से इतना खौफ खाये था कि वह सीबीआई जांच टालने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गया और अपने अनुयायियों के आक्रामक जुलूस प्रदर्शनों से शक्ति प्रदर्शन भी किये।

छत्रपति का सच के साथ खड़े होने का जिद्दी व्यक्तित्व इतना प्रेरणास्पद है कि हम बार बार उस जिद पर आंसू भी बहाते हैं और अश्रुपूर्ण आँखों से उनकी जिद को सलाम भी कर रहे होते हैं!

उनकी प्रेरणा का आलम ये है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह की बढ़ती ताकत को धता बताते हुए तमाम पीड़ित और गवाह अदालत के बाहर खड़ी उनकी आक्रामक अनुयायियों की भीड़ से नहीं डरते, वे गुरमीत सिंह के लाव लश्कर से प्रभावित नहीं होते, उन्हें मालूम है कि धारा 302, 120 बी और धारा 376 के आरोप में बिना जेल जाए डेरा प्रमुख नियमित जमानत पर है तो उसके पास ना संपर्कों की कमी है, न पैसे की न हथियारों की। उसके लिए कुछ और लोग मरवा देना मुश्किल नहीं, लेकिन पीड़ित लड़ रहे हैं, क्योंकि लड़ने की राह छत्रपति आसान करके गया, लड़ने की जिद छत्रपति दे कर गया!

छत्रपति इतना करके गया की डेरा प्रमुख को उसकी सुरक्षित गुफा से निकाल कर अदालतों के फेर में डाल गया! आगे अदालत जाने, हमारे देश का कानून जाने!

21 नवम्बर 2002 को छत्रपति हमसे जुदा हो गया लेकिन उसने शहर, समाज, मुल्क, सत्ता, धर्म और पत्रकारिता के सामने ढेर सारे सवालों का पुलिंदा डाल दिया। सवाल जस के तस है। लोग जो 2002 में डेरा फूंक देना चाहते थे आज उसी बाबा के बढ़ते प्रभाव के आगे नतमस्तक हैं। नेता जो छत्रपति के अंतिम संस्कार में डेरा मुखी को जेल भेजने की हुंकार भरके आये थे, वह सभी चुनाव में उससे आशीर्वाद मांगने कतार बद्ध खड़े होते हैं।

इनेलो को तब लगता था कि डेरा उनके अहसान को ताउम्र ढोता रहेगा, लेकिन वह अगले ही चुनाव में कांग्रेसमयी हो गया। 10 साल कांग्रेस ने उसे खुल कर धींगामस्ती करने का मैदान मुहैया करवाया। तीन राज्यों में इनके अनुयायोयियों ने सीबीआई जांच के विरोध में सुनियोजित तरीके से बसें जलाईं, लेकिन पंजाब में इनके 35 लोगों को सजा हुई। बाकी जगह इनका कुछ नहीं बिगड़ा। रोज अदालत में धारा 144 तोड़कर हजारों अनुयायी गुरमीत की पेशी के वक्त खड़े होते हैं। उनकी गाड़ियों में लाठी जेली बन्दूक राइफल सब होते हैं लेकिन कोई केस कोई गिरफ्तारी नहीं। बाबा को z plus सुरक्षा है।

कांग्रेस सरकार ने z plus सुरक्षा दी। आज भाजपा राज में भी जारी है। वर्तमान पूरी राज्य सरकार डेरा में माथा टेक चुकी है। बाबा का दावा है कि उनके 5 करोड़ अनुयायी हैं। अनुयायी बनाने का काम छत्रपति की हत्या के बाद युद्ध स्तर पर किया गया। ताकत पैसा और संपर्क बढाने का काम भी युद्धस्तर पर हुआ, ताकि दम्भ और ताकत से फरेब की लड़ाई जीती जा सके।

हम किसी मुगालते में नहीं क्योंकि हमारे तमाम मुगालते छत्रपति दूर कर गया। छत्रपति लेकिन हमें जो एक चीज देकर गया वह अनमोल है की तमाम अंधकारों के बीच लड़ना हमारे हाथ है। हम लड़ रहे हैं अपने सीमित साधनों से लेकिन हौसले असीमित हैं बिलकुल छत्रपति जैसे, क्योंकि हम देख रहे हैं कि देश के कोने कोने में बहुत से छत्रपति लड़ रहे हैं।

(वीरेंद्र भाटिया 'पूरा सच' अखबार में 'ब्रेक के बाद' नियमित कॉलम लिखते रहे हैं। नियमित संपादक की कमी और डेरा सच्चा सौदा की गुंडई के कारण 2012 से अखबार बंद है। वे 2010 से शुरू हुई संस्था 'संवाद' से भी जुड़़े हैं। यह संस्था पीड़ितों के लिए आवाज उठाने वालों को 'रामचंद्र छत्रपति पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित करती है)

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