तो मोदी सरकार 2 से ज्यादा बच्चे वालों को घोषित कर देगी दूसरे दर्जे का नागरिक!
आज जब जनता के रोजगार, इलाज, रोटी, कपड़ा, मकान के बुनियादी मुद्दे सामने खड़े हैं, देश में मंदी की आहट सुनाई दे रही है, तो इन सवालों का समाधान करने की जगह मोदी सरकार जनसंख्या को मुद्दा बनाने में जुट गयी है....
स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार की रिपोर्ट
सावधान हो जाइये। मोदी सरकार एक नया जनसंख्या कानून देश में लाने जा रही है। इस कानून के आने के बाद देश की आधी आबादी दूसरे दर्जे की नागरिक घोषित कर दी जाएगी। इसका संकेत मोदी ने 15 अगस्त को लालकिले से अपने संबोधन में भी दिया है।
15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से कहा कि हमारे यहां बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। उन्होंने छोटे परिवार रखने को देशभक्ति करार देते हुए कहा कि एक छोटा वर्ग अपने परिवार को सीमित करके अपना भी भला करता है और देश के लिए भी बहुत बड़ा योगदान देता है। वे देशभक्ति को प्रकट करते हैं, वे देशभक्ति को अभिव्यक्त करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण से देशभक्ति की एक नई परिभाषा गढ़ दी है। उन्होंने इस तरह सीमित परिवार रखने वालों को देशभक्त तथा दो अधिक बच्चे पैदा करने वालों को देशद्रोही घोषित कर दिया है। मोदी के भाषण से उत्साहित होकर कांग्रेस के नेता चिदम्बरम ने भी मोदी के जनसंख्या नियंत्रण फॉर्मूले की मुक्त कंठ से तारीफ की है।
भाजपा के राज्यसभा सांसद व आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा पिछले 12 जुलाई को राज्यसभा में निजी तौर पर जनसंख्या नियंत्रण बिल-2019 पेश कर चुके हैं, जिसमें उन्होंने दो से अधिक बच्चे पैदा करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाने की वकालत की है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बिल में 2 से अधिक बच्चे पैदा करने वाले को लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकायों /पंचायत के चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने की बात की गयी है। बिल के अनुसार सरकारी कर्मचारी भी दो बच्चों से अधिक पैदा नहीं कर पाएंगे, पहले से दो से अधिक बच्चों के साथ नौकरी कर रहे लोगों को इसमें छूट होगी।
दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले व्यक्तियों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले राशन में कटौती तथा उन्हें सरकारी योजनाओं के अंतर्गत वित्तीय लाभ देने से इंकार किए जाने जैसी बातें की गयी हैं। उनके लोन व सब्सिडी में भी कटौती किए जाने की भी बात कही जा रही है।
माना जा रहा है कि भाजपा सरकार आने वाले समय में राकेश सिन्हा द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत बिल को थोड़े-बहुत संशोधनों के साथ देश के दोनों सदनों में पारित करा लेगी तथा जनता के ऊपर एक और हिटलरी कानून थोप देगी। उत्तराखंड की भाजपा सरकार, राज्य में दो से अधिक बच्चों वालों को पंचायत चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने वाला विधेयक ला चुकी है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 46 प्रतिशत महिलाएं/पारिवारिक इकाई के दो से अधिक बच्चे हैं। मोदी सरकार द्वारा जनसंख्या कानून लाए जाने पर ये 46 प्रतिशत देशवासी देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रह जाएंगे।
मोदी सरकार द्वारा राकेश सिन्हा द्वारा प्रस्तुत बिल के अनुसार कानून लाए जाने पर, एक ही झटके में न केवल आधी आबादी को कल्याणकारी योजनाओं के तहत दी जा रही रियायतें छीन ली जाएंगी, बल्कि उनके चुनाव लड़ने व सरकारी नौकरी पाने के लोकतांत्रिक अधिकार भी खत्म हो जाएंगे।
ये कानून देश में ऐसे समय पर लाने की तैयारी की जा रही हैं, जब देश में जनसंख्या वृद्धि दर (मुस्लिमों समेत) लगातार कम हो रही है। देश में वर्ष 1985 में जनसंख्या वृद्धि दर 2.33 प्रतिशत थी जो कि अब 2019 में घटकर 1.08 प्रतिशत के स्तर पर आ चुकी है। माना जा रहा है कि वर्ष 2050 तक देश में जनसंख्या वृद्धि दर घटकर मात्र 0.27 प्रतिशत ही रह जाएगी।
2014 में मोदी ने अच्छे दिनों का राग अलाप कर देश की सत्ता संभाली थी। आज जब जनता के रोजगार, इलाज, रोटी, कपड़ा, मकान के बुनियादी मुद्दे सामने खड़े हैं, देश में मंदी की आहट सुनाई दे रही है, तो इन सवालों का समाधान करने की जगह मोदी सरकार जनसंख्या को मुद्दा बनाने में जुट गयी है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे जनता की गरीबी-बदहाली व अभाव के लिए सरकार व उसकी नीतियां नहीं, बल्कि देश की जनसंख्या वृद्धि जिम्मेदार है।
जनसंख्या को लेकर इसी तरह का प्रयास 70 के दशक में इंदिरा गांधी ने भी किया था। तब देश की जनसंख्या आज के मुकाबले लगभग आधी थी। तब इंदिरा गांधी ने लोगों की जबरन नसबंदी का अभियान चलाया था। गरीबी हटाओ के नारे के साथ सत्ता पर काबिज हुयी इंदिरा गांधी ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए तब यह काम किया था तथा देश में इमरजेंसी लगा दी थी। आज मोदी सरकार भी इसी की पुनरावृत्ति करने की योजना बना रही है।
देश में यदि आज लोगों को बुनियादी अधिकार नहीं मिल पा रही हैं तो इसका कारण यह नहीं कि देश में संसाधनों की कमी है। आज भी देश में उत्पादन के साधन इतनी प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं कि हम 1.3 अरब की जनसंख्या वाले एक नहीं 5 हिन्दुस्तान का पेट अच्छी तरह से भर सकते हैं।
देश में प्रति व्यक्ति आय पिछले वित्तीय वर्ष में 1.26 लाख रुपये वार्षिक (10534 रुपए मासिक) दर्ज की गयी थी। इस तरह 5 व्यक्तियों के परिवार के लिए यह आय 52670 रुपए मासिक है। हमारा देश वर्गो में बंटा हुआ है। एक तरफ देश के पूंजीपति, नेता अधिकारी व मंत्री हैं जो इस आय का एक बड़ा हिस्सा अपनी जेब में डाल लेते हैं और इस आय के असमान वितरण पर पर्दा डालने के लिए जनसंख्या वृद्धि को मुद्दा बनाते हैं।
देश की जनसंख्या वर्ष 1951 में 36 करोड़ व 1961 में 43 करोड़ थी। तब भी देश में यही स्थिति थी, एक छोटे से हिस्से के पास देश की सारी धन-दौलत संकेन्द्रित थी और व्यापक आबादी गरीबी व अभाव में जीवन व्यतीत करती थी। आज भी यही स्थिति है।
पिछले दिनों गैर सरकारी संगठन ऑक्सफेम द्वारा प्रकाशित रिपार्ट के अनुसार देश की 58 प्रतिशत धन सम्पदा के मालिक देश के मात्र 1 प्रतिशत अमीर लोग हैं। पिछले वर्ष देश में पैदा हुया कुल धन-सम्पदा का 73 प्रतिशत हिस्सा इन 1 प्रतिशत लोगों ने हड़प लिया। देश में गरीबी व अभाव का कारण जनसंख्या की बढ़ोतरी नहीं, बल्कि देश का लुटेरा पूंजीवादी सिस्टम है।
देश में जनसंख्या चाहे कितनी कम हो जाए या बढ़ जाए, जब तक देश के इन 1 प्रतिशत लोगों के हाथों में मौजूद धन-सम्पदा को राष्ट्र की सम्पत्ति घोषित नहीं किया जाएगा, उसे गरीबों में नहीं बांटा जाएगा, जब तक देश में उत्पादन व वितरण की पूंजीवादी प्रणाली मौजूद रहेगी, तब तक देश से गरीबी, बेरोजगारी व अभाव को दूर करना असम्भव है।
देश के संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार दर्ज है। मोदी सरकार जनता के इस बराबरी के अधिकार को जनसंख्या कानून लाकर खत्म करने की तैयारी कर रही है, जिसे देश के नागरिको को किसी भी शर्त पर स्वीकार नहीं करना चाहिए।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सहसंयोजक हैं।)