गुजरात के किसानों का आरोप, कच्छ में हुआ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का सबसे बड़ा घोटाला
सरकार ने तकरीबन 25000 करोड़ प्रीमियम बीमा कंपनियों को दिया, मगर गीले-सूखे अकाल की स्थिति में गड़बड़झाला कर बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को उनके हक से रखा गया है वंचित
बेमौसम बरसात और ओलों के कारण पूरे गुजरात के किसानों की टूटी कमर, राज्यभर में किसानों को भारी नुकसान, मगर अभी तक घोषित नहीं किया गया है अकाल
कच्छ से दत्तेश भावसार की ग्राउंड रिपोर्ट
जनज्वार। इस वर्ष पूरे गुजरात में अतिवृष्टि के कारण सैकड़ों किसानों को बहुत ही नुकसान हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 8 नवंबर 2019 तक पूरे गुजरात में 146 % बारिश रिकॉर्ड की गई, जबकि 9/9/2016 के परिपत्र के अनुसार 30 साल की औसत बारिश से 20 % ज्यादा या कम बारिश होने पर गीला या सूखा अकाल घोषित किया जाता है। मगर पूरे गुजरात में 146% बारिश रिकॉर्ड होने के बावजूद गुजरात सरकार ने अभी तक अकाल घोषित नहीं किया।
गुजरात के कच्छ जिले की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा 235 % बारिश और सबसे कम 163 % रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई। यहां 184 % औसत रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गयी है। इसके बाद 13 नवंबर और 14 नवंबर को पूरे गुजरात में तेज आंधी के साथ ओले गिरने से किसानों की सारी फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। कई तटीय इलाकों में तूफान के कारण भी व्यापक नुकसान पहुंचा है, मगर सिर्फ बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार अकाल घोषित नहीं कर रही। अगर अकाल घोषित होता है तो बीमा कंपनियों को किसानों को 25% रुपए तुरंत ही उनके बैंक खाते में जमा करवाने पड़ेंगे और बाकी के पैसे सर्वे करने के बाद किसानों को देने पड़ेंगे।
हालांकि इन सब कार्रवाइयों में किसानों को ही नियमों का पालन करना है और उनको ही मजबूर किया जाता है, जबकि बीमा कंपनियां अभी तक कई नियमों को तोड़ चुकी हैं। उनके खिलाफ गुजरात सरकार कोई भी कार्यवाही नहीं कर रही।
किसानों को 72 घंटे में बीमा के लिए आवेदन करना होता है, जिसके तहत सुरेंद्र नगर जिले में कुछ देरी से 14000 किसानों के आवेदन खारिज किए गए। दूसरी तरफ कंपनी को भी किसानों के आवेदन मिलने के बाद 7 दिन में सर्वे पूरा करके उसके बाद के 15 दिनों में सारे पैसे अदा करने होते हैं, लेकिन पूरे गुजरात में कहीं पर भी सर्वे शुरू नहीं हुआ। हालांकि 146% बारिश रिकॉर्ड होने के बाद कोई सर्वे की जरूरत नहीं होती, इसके बावजूद यहां सर्वे कराया जायेगा।
सर्वे की टीम भी नियमों को ताक पर रखकर बनाई गई है। नियमों के अनुसार जिला कक्षा की समिति, तालुका कक्षा की समिति और ग्राम्य कक्षा की समिति से सर्वे करवाना होता है, लेकिन आज की तारीख में पूरे गुजरात में एक भी गांव म ग्राम्य कक्ष की समिति की रचना नहीं हुई, जबकि तालुका कक्षा की समिति में तहसीलदार चेयरमैन होता है।
इन सर्वे में किसानों का कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं होता, जबकि फसल को नुकसान होने के 72 घंटे में किसान को सहायता के लिए आवेदन लगाना होता है, जिसमें 35 अलग-अलग तरह की इंक्वायरी और कागजात होते हैं। उसमें से ज्यादातर कागज सरकारी ऑफिसों से लेने होते हैं। वह कागजात जमा करने में ही किसान के 72 घंटे निकल जाते हैं, इसलिए किसान समय से आवेदन नहीं कर पाता और वह बीमे की राशि से वंचित रह जाता है। अगर सरकार गीला अकाल घोषित करे तो यह प्रोसेस करने की आवश्यकता नहीं होती और बीमा कंपनियों को तुरंत ही 25 % रकम किसानों के खाते में जमा करनी होती है, इसलिए सिर्फ बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए ही सरकार ने अभी तक अकाल घोषित नहीं किया।
गुजरात के किसान नेता पालभाई आंबलिया ने जनज्वार से हुई खास बातचीत में कई चौंकाने वाली जानकारियां दीं। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत कुल 4 तरह के जिन कामों को कवर किया गया है 1) बुआई से पहले का जोखिम, 2) बुआई के बाद का जोखिम, 3) अतिवृष्टि और अनावृष्टि का जोखिम, 4) बेमौसम बारिश ओले और अन्य तरह का जोखिम जबकि 13 और 14 नवंबर को पूरे गुजरात में तेज तूफान और ओलों के के साथ बारिश हुई है, जिसमें हजारों किसानों को सौ फीसदी नुकसान हुआ है।
पालभाई आंबलिया बताते हैं, सर्वे करने वाले बीमा कंपनी के अधिकारी कम से कम बी टेक एग्रीकल्चर या डिप्लोमा एग्रीकल्चर या बैंक के रिटायर्ड अधिकारी होने चाहिए और उनको कम से कम 2 साल का अनुभव भी होना चाहिए, लेकिन बीमा कंपनियों के पास ऐसा एक भी अधिकारी पूरे गुजरात में नहीं जबकि सरकार के परिपत्र अनुसार सामान्य बारिश से 20% कम या ज्यादा बारिश होने पर गंभीर स्थिति मानी जाती है। 40% से ज्यादा बारिश होने पर अति गंभीर परिस्थिति मानी जाती है। 60% से ज्यादा या कम बारिश होने पर भयावह स्थिति मानी जाती है, मगर गुजरात के कई जिले ऐसे हैं जिनमें 230 से 240% बारिश रिकॉर्ड की गई है। अतिवृष्टि प्रभावित जिले के किसानों को अभी तक कोई राहत सरकार की तरफ से नहीं मिली है।
पालभाई आंबलिया कहते हैं, इन बीमा कंपनियों को चालू वर्ष में 25 हजार करोड़ प्रीमियम दिया गया है, इसके बावजूद कंपनियों की तरफ से किसानों को एक भी पैसा मुआवजा नहीं मिला। जबकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनी सरकार ने चुनी है। इसका मतलब यह भी होता है की सरकार किसानों के पैसे के लिए जिम्मेदार है।
बारिश होने के 72 घंटे तक बीमा कंपनियां अपने हेल्पलाइन नंबर बंद करके बैठी हुई होती हैं। सुबह से शाम तक सिर्फ घंटी बजती है, कोई फोन नहीं उठाता। हर बीमा कंपनी को गुजरात की हर एक तहसील में अपनी ऑफिस चालू करना होता है, लेकिन किसी भी तहसील में बीमा कंपनियों ने अपनी ऑफिस नहीं खोला इसलिए किसान बीमा कंपनी के दफ्तर में भी अपना आवेदन नहीं दे सकता।
बीमा कंपनियों को सरकार की गाइडलाइन जो अंग्रेजी में है, उसको गुजराती में ट्रांसलेट भी करवाना था, जिससे इसमें पारदर्शिता लाई जाए, लेकिन बीमा कंपनी ने आज तक वह गाइडलाइन गुजराती भाषा में जारी नहीं की। पूरे गुजरात ही नहीं बल्कि पूरे भारत के किसान अंग्रेजी भाषा में पारंगत नहीं हैं जिस कारण बीमा कंपनियां उनको चूना लगा देती है। सर्वे का पूरा फार्म भी अंग्रेजी भाषा में होता है और किसान उसे भी नहीं पढ़ पाता, इसलिए बीमा कंपनियां सही गलत फार्म भर के किसानों का साइन या अंगूठा लेकर बाद में चेंज कर देती हैं।
बकौल पालभाई आंबलिया, पिछले साल भी सरकार ने किसानों को हुए नुकसान का सर्वे कराया था। उस सर्वे के मुताबिक कच्छ जिले के किसानों के लगभग सौ करोड़ रुपए बीमा कंपनी ने नहीं चुकाये। ऐसे में सोच सकते हैं पिछले साल के पैसे बाकी हैं, वह नहीं मिले तो इस साल के पैसे किसानों को कब मिलेंगे। गुजरात सरकार की यह सारी चालाकियां सिर्फ बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए हैं।
पिछले 5 सालों में 150000 लाख से 200000 लाख करोड़ प्रीमियम बीमा कंपनियों को दिया गया है, लेकिन बीमा कंपनियों की तरफ से किसानों को मुआवजा देने में कई रोड़े डाले गए हैं। कई किस्सों में मुआवजा देने का आदेश होने के बावजूद बीमा कंपनियों ने मुआवजा नहीं दिया। किसान नेता कहते हैं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना गुजरात का अब का सबसे बड़ा घोटाला है।
दूसरी तरफ किसानों की हालत यह है कि इस फसल में 100% नुकसान होने के बाद उनके पूरे पैसे डूब चुके हैं। अगर सरकार या बीमा कंपनी से पैसे नहीं मिले तो रवि की फसल भी किसान नहीं ले पाएंगे। इसका मतलब यह हुआ कि गुजरात के किसानों पर दोहरी मार पड़ी है।
किसान नेता पालभाई आंबलिया कहते हैं, पिछले साल मूंगफली पर किसानों को 218₹ सब्सिडी दी गई थी। पूरे गुजरात की गिनती करें तो कुल मूंगफली पर सरकार द्वारा 833 करोड़ रुपए सब्सिडी दी गई थी, परंतु उस सब्सिडी पर 993 करोड़ खर्च किया गया था। यानी चार आने की मुर्गी और बारह आने का मसाला। कुछ इसी तरह का काम हो रहा है गुजरात की भाजपा सरकार में किसानों के लिए। हालांकि गुजरात के किसान पारंपरिक रूप से खेती किसानी के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं, इसलिए वह सिर्फ सरकार पर निर्भर न रहते हुए अपने आय के स्त्रोतों को बरकरार रखे हुए हैं।