मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन क्या अवमानना नहीं है!
हाईप्रोफाइल मामले में हाईप्रोफाइल शिकायत का संज्ञान तक नहीं लेती सीबीआई
जेपी सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के निर्णयों का भी अनुपालन जब केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियां नहीं करतीं तो राज्यों की पुलिस क्या करती होगी, इसे थाने में जाकर एफआईआर कराने का प्रयास करने वाला हर भुक्तभोगी अच्छी तरह से जानता है। यही नहीं यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या इसके लिए अवमानना का मामला केंद्र सरकार और केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई पर नहीं चलना चाहिये? क्या डिफेंस डील कानून के शासन से ऊपर होती है?
जब ललिता कुमारी मामले में उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ ने व्यवस्था दी है कि कोई भी शिकायत मिलने पर पुलिस या अन्य वैधानिक प्राधिकार जैसे सीबीआई एफआईआर दर्ज़ करके जांच करने के लिए बाध्य है। जांच में यदि प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता तो जांच बंद की जा सकती है और उसकी एक प्रति शिकायतकर्ता को दे दी जाती है, लेकिन राफेल जैसे हाईप्रोफाइल मामले में शिकायतकर्ता भी हाईप्रोफाइल है, फिर भी सीबीआई ने कोई कार्रवाई नहीं की।
प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष यह मुद्दा उठाया कि हम लोग ललिता कुमारी जजमेंट के आधार पर सौदे की जांच और एफआईआर दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। इस पर जस्टिस केएम जोसेफ ने सरकार से सवाल पूछा कि पिछले अक्तूबर में 36 राफेल विमानों के खरीद के सम्बंध में सीबीआई से जो आपराधिक शिकायत की गयी थी, उस पर अभी तक एफआईआर दर्ज़ क्यों नहीं हुई।
जस्टिस जोसेफ ने अटार्नी जनरल से पूछा कि यहाँ सवाल यह है कि शिकायत करने के बाद कानून के तहत एफआईआर दर्ज़ करने से क्या आप अनुग्रहीत होते हैं। राफेल पुनर्विचार याचिका पर दो घंटे की सुनवाई के दौरान बेंच और बार के बीच तीखे सवाल जवाब हुये। इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई, जस्टिस कौल और जस्टिस जोसेफ की पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया।
भ्रष्टाचार निरोधक कानून की विभिन्न धाराओं के तहत सीबीआई से शिकायत की गयी थी। जस्टिस जोसेफ ने ललिता कुमारी मामले में संविधान पीठ के निर्णय का हवाला दिया जिसमें व्यवस्था दी गई है कि कोई भी शिकायत मिलने पर पुलिस या अन्य वैधानिक प्राधिकार जैसे सीबीआई एफआईआर दर्ज़ करके जांच करने के लिए बाध्य है।
जाँच में यदि प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता तो जांच बंद की जा सकती है और उसकी एक प्रति शिकायतकर्ता को दे दी जाती है। राफेल मामले में शिकायतकर्ता याचियों ने 70 पृष्ठों का दस्तावेज अपनी शिकायत के साथ सीबीआई को दिया है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने अक्तूबर 18 में राफेल लड़ाकू सौदा मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सीबीआई में शिकायत दी थी, जिस पर आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। राफेल लड़ाकू सौदा भारत और फ्रांस के बीच हुआ है।
भारत ने उड़ान भरने के लिए तैयार हालत में और पूर्ण रूप से तैयार 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा फ्रांस के साथ किया है। दरअसल पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवन्त सिन्हा, अरुण शौरी और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय में प्राथमिक रूप से अपनी शिकायत पर निष्पक्ष जांच के लिए ही गये थे।
इसके जवाब में अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि किसी शिकायत की जाँच तभी की जाती है जब प्रथमदृष्टया यह लगता है कि इसमें किसी अपराध का सूत्र विद्यमान है। वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि राफेल डील किसी राजमार्ग या बांध के निर्माण जैसा मसला नहीं है।
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने सरकार का पक्ष रखते हुये कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से कुछ मूलभूत बातें उठाई गई हैं। वेणुगोपाल उन बातों में कुछ अन्य पहलू जोड़कर मुद्दे को तूल दिया गया है। विमान की कीमतों की जहां तक बात है तो यह इंटरगवर्मेंटल एग्रीमेंट (आईजीए) की धारा 10 के तहत तय की गई है वेणुगोपाल आईजीए के तहत कीमतें नहीं बताई जा सकतीं।
कोर्ट ने भी कीमतें नहीं पूछी हैं बल्कि प्रोसीजर की जानकारी मांगी गई है। हमने प्रोजीसर के बारे में बता दिया है। अगर इसमें कोई त्रुटि है भी तो सौदे की समीक्षा का यह आधार नहीं बनता। याचिकाकर्ता सौदे पर सवाल उठाना चाह रहे हैं जो देश के लोगों की सुरक्षा को प्रभावित करता है। राफेल विमान सजावट के लिए नहीं हैं। ये हरेक व्यक्ति की सुरक्षा के लिए निहायत जरूरी है। दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता कि ऐसा मामला कोर्ट में लाया जाए।
वेणुगोपाल की बात सुनकर जस्टिस केएम जोसफ ने ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी के बारे में पूछा। उन्होंने अटॉर्नी जनरल से कहा कि इसका फैसला कौन करता है, क्या ये कोर्ट इस पर निर्णय ले सकता है? सीजेआई रंजन गोगोई ने सॉवरन गारंटी के बारे में सवाल उठाया। अटॉर्नी जनरल ने इसके जवाब में रूस और अमेरिका के साथ हुए रक्षा सौदों का हवाला दिया, जिसमें बैंक गारंटी से भारत को छूट दी गई है।
जस्टिस जोसफ ने डोमेन एक्सपर्ट के डिसेंट नोट के बारे में जानकारी मांगी, क्योंकि प्रशांत भूषण के मुताबिक इंटरनेशनल निगोशिएटिंग टीम के तीन रक्षा विशेषज्ञों ने राफेल के मूल्य निर्धारण के संबंध में आपत्तियां लेते हुए एक असहमति नोट जारी किया था। जस्टिस जोसफ के इस सवाल पर वेणुगोपाल ने कहा कि तीन रक्षा विशेषज्ञों ने जो मुद्दे उठाए हैं उसे डिफेंस इक्वीजिशन कमेटी को रेफर कर दिया गया है। अंततः तीनों विशेषज्ञ सहमत हो गए।
जोसफ ने पूछा, तीनों विशेषज्ञों की सहमति कोर्ट में पेश करने में आपको कोई आपत्ति है? न्यायिक सीमाओं का हवाला देते हुए एटॉर्नी जनरल ने कहा कि कोर्ट को इसमें नहीं जाना चाहिए, लेकिन इसके बावजूद आप चाहते हैं तो मैं ऐसा करूंगा।
अंततः चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने हस्तक्षेप किया और अटार्नी जनरल से कहा कि हम आपको बता देंगे कि इन दस्तावेजों की हमें जरूरत है। इन सभी दलीलों को सुनने के बाद उच्चतम न्यायालय ने राफेल सौदे की रिव्यू याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।