सितम्बर में हुए यौन हिंसा की घटना पर उबले परिसर के सवाल आज डेढ़ महीने से ज्यादा बीतने के बावजूद अनसुलझे हैं...
वाराणसी। जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) द्वारा प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए गए नागेपुर गांव में आयोजित तीन दिवसीय 'युवा संवाद' में 15 राज्यों से आए प्रतिभागियों ने साझा संस्कृति मंच वाराणसी और जॉइंट एक्शन कमेटी BHU के आह्वान पर 4 से 6 नवंबर को एक तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के बनारस में गोद लिए गए आदर्श ग्राम नागेपुर में लोक समिति आश्रम राजातालाब पर सितंबर माह में बीएचयू में हुई यौन हिंसा की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के खिलाफ हुए आंदोलन के समर्थन में एकजुटता प्रदर्शित की गई।'राष्ट्रीय युवा नीति'और BHU की विजिटोरियल जाँच की दो सूत्रीय माँग को लेकर एक ज्ञापन बनारस के सांसद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उप-जिलाधिकारी ईशा दुहन राजातालाब के माध्यम से दिया गया।
कार्यक्रम 15 राज्यों के आंदोलनकारी युवाओं ने इसमें शिरकत की। यह विकास की राजनीति, फांसीवाद व साम्प्रदायिकता, लिंग, जाति, अल्पसंख्यक, पहचान एवं सामाजिक न्याय और शिक्षा व बेरोज़गारी जैसे प्रमुख विषयों केंद्रित रहा।
कार्यक्रम में वक्ता तीस्ता सीतलवाड़, शैलेन्द्र भाई, अरुंधति धुरू, मधुरेश, आनंद मजगांवकर, सौम्या दत्ता, प्रिया पिल्लई , राजेश कुमार, मन्शी अशर, भंवर मेघवंशी, ओवेस सुल्तान खान, बनज्योत्सना लाहिड़ी, पार्थो रे आदि ने अपनी बात रखी।
पिछले दो दिन की चर्चाओं के बीच शिक्षा और रोजगार की चुनौतियों के जटिल अंदरूनी आयामों पर चर्चा हुई। BHU में चल रहे दमन और आंदोलन पर भी बातचीत हुई और वक्ताओं ने माना कि सितम्बर में हुए यौन हिंसा की घटना पर उबले परिसर के सवाल आज डेढ़ महीने से ज्यादा बीतने के बावजूद अनसुलझे हैं।
नागेपुर गांव में आयोजित कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश में बघृणा, वैमनस्य, अविश्वास, संवादहीनता और असहिष्णुता के बढ़ने से समाज में लोगों में भय व्याप्त होने लगा है।
धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के संवैधानिक मूल्यों के साथ साथ बहुलतावाद के सामाजिक ढाँचे पर भी इसका स्पष्ट प्रभाव दिखाई दे रहा है। शिक्षा प्रणाली में आक्रामक रूप से बढ़ते हुए निजीकरण के साथ साथ शिक्षा ऋण, अनुदानों और छात्रवृत्तियों को हटाने की प्रक्रिया के कारण आज युवा वर्ग के समक्ष बड़ा संकट आसन्न है।
वक्ताओं ने कहा कि आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, छात्रों, किसानों, महिलाओं आदि द्वारा असहमति जताने के किये जाने वाले प्रतिरोध को बिना संवाद किये बलपूर्वक दबाए जाने की घटनाएँ बढ़ती जा रही है। पिछले वर्षों में प्रेस की आजादी में भी गिरावट आयी है और इसे खतरनाक रूप से निजी हितों में कार्पोरेट द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। मजबूत विपक्ष के नही होने से सरकारें अनियंत्रित होती जा रही हैं, जिसके कारण मनमाने ढंग से अपरिपक्व निर्णय लिए जा रहे हैं जो अंततः जनता पर भारी पड़ रहे हैं।