पर्यावरण के प्रति असंवेदनशील यूएन एनवायरनमेंट अध्यक्ष ने किया था मोदी को पुरस्कृत

Update: 2018-11-22 06:10 GMT

ये संवेदनहीनता चरम है कि विश्व पर्यावरण दिवस के कुछ समय पहले ही तूतीकोरीन में उद्योग से उत्पन्न प्रदूषण का विरोध करते 13 लोगों को गोलियों से भून दिया जाता है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के अध्यक्ष बजाय भर्त्सना के देश की तारीफ़ करते हैं और प्रधानमंत्री मोदी को पर्यावरण संरक्षण के लिए करते हैं पुरस्कृत...

हमारे देश में वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण से होती हैं दुनिया में सबसे अधिक मौतें और सभी प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों को सौपने की चल रही है तैयारी...

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण ने भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति को अपने सबसे बड़े पुरस्कार से नवाजकर साबित कर दिया था कि पर्यावरण से इस संस्था का कोई लेना देना नहीं है और अच्छे सम्बन्ध और फायदे के लिए कोई भी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार किसी को भी मिल सकता है।

सभी जानते हैं कि हमारे देश में वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण से दुनिया में सबसे अधिक मौतें होतीं हैं और सभी प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों को सौपने की तैयारी चल रही है। दूसरी तरफ फ्रांस के पर्यावरण मंत्री ने हाल में ही यह कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया है कि राष्ट्रपति पर्यावरण पर कोई ध्यान नहीं देते।

20 नवम्बर को संयुक्त राष्ट्र के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर एरिक सोल्हीम को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण की साख निम्नतम स्तर पर है, और इसके अध्यक्ष पर तमाम आरोप लगे हुए थे। हालत यहाँ तक पहुँच गयी है कि डेनमार्क, स्वीडन, नोर्वे और नीदरलैंड जैसे देश ने इसे आर्थिक मदद देना भी रोक दिया है।

कुछ दिनों पहले ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के अध्यक्ष एरिक सोल्हीम को संयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली की बैठक छोड़कर नैरोबी स्थित अपने मुख्यालय लौटना पड़ा क्योंकि नैरोबी स्थित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के मुख्यालय के कर्मचारी सोल्हीम का प्रखर विरोध कर रहे थे। कर्मचारी सोल्हीम को तानाशाह और अपनी मनमानी करने वाला बताते हैं।

सोल्हीम की फ्रांस और भारत से नजदीकियां भी किसी से छुपी नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के कर्मचारियों के अनुसार सोल्हीन ने फ्रांस में एक अवैध मिनी सेक्रेटेरिएट खोल लिया था जिसमें कुछ बहुत वरिष्ठ अधिकारी भी नियुक्त कर दिए गए थे। अनेक मौकों पर सोल्हीम ने किसी और देश की यात्रा के दौरान फ्रांस की अघोषित यात्रा भी की थी।

भारत के साथ नजदीकियों के लिए एक उदाहरण ही पर्याप्त है, कुछ समय पहले द गार्डियन ने कम से कम चार बड़े समाचार सोल्हीम के बारे में प्रकाशित किये हैं और हरेक लेख के साथ में प्रकाशित अधिकतर चित्र उनके भारत यात्रा के समय के हैं।

सोल्हीम और संयुक्त राष्ट्र का अघोषित भारत प्रेम पहले से ही जाहिर है – इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की मुख्य गतिविधियाँ हमारे देश में ही आयोजित की गयी थीं। इसमें सोल्हीन भी मौजूद थे। उन्होंने इसे भव्य कार्यक्रम बताया और वर्ष 2022 तक एक बार उपयोग करने वाले प्लास्टिक को पूरी तरह प्रतिबंधित करने वाले प्रधानमंत्री की घोषणा की बहुत तारीफ़ की।

सोल्हीन की पर्यावरण के प्रति असंवेदनशीलता इसी तथ्य जाहिर होती है कि वे एक ऐसे देश के भव्य आयोजन की तारीफ़ कर रहे थे, जहाँ प्रदूषण से दुनिया में सबसे अधिक लोग मरते हैं और जहाँ से वनवासियों को विस्थापित कर हरेक प्राकृतिक संसाधन का मालिकाना हक़ पूंजीपतियों को देने की पुरजोर कोशिश सरकार लगातार करती रहती है।

असंवेदनशीलता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि विश्व पर्यावरण दिवस के कुछ समय पहले ही तूतीकोरीन में एक उद्योग से उत्पन्न लगातार प्रदूषण का विरोध करते 13 लोगों को पुलिस और उद्योग के सुरक्षाकर्मी गोलियों से मार दिया जाता है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के अध्यक्ष इसकी भर्त्सना के बदले देश की तारीफ़ करते हैं और फिर देश के प्रधानमंत्री को पर्यावरण संरक्षण के लिए पुरस्कार भी दे दिया जाता है।

वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण की विश्वनीयता निम्नतम स्तर पर है। इंटरनल ऑडिट में सोल्हीम पर गंभीर आरोप लगे थे। सोल्हीन नोर्वे के हैं और हाल में ही नोर्वे की एक कंपनी को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण ने एक बड़ा प्रोजेक्ट स्वीकृत कर दिया। यहाँ तक तो सब ठीक था, पर प्रोजेक्ट स्वीकृत करने के अगले ही दिन सोल्हीन की पत्नी उस कंपनी की एक बड़ी अधिकारी नियुक्त कर दी गयीं।

ऑडिट के समय अपने 668 दिन के कार्यकाल में 529 दिन सोल्हीन विदेशी दौरों पर रहे और इसमें कुल 488518 डॉलर का खर्च हुआ। ऑडिट के अनुसार, सोल्हीन ने अनेक बिल ऐसे जमा किये हैं जो बढ़ाकर बनाए गए हैं। अभी इन सब मुद्दों पर जांच चल रही है, पर अनेक देशों ने जांच पूरी होने तक आर्थिक मदद रोक दी है। इस समय दुनियाभर के पर्यावरणविद संयुक्त राष्ट्र की भर्त्सना कर रहे हैं और इसे अपने उद्देश्य से पूरी तरह भटका हुआ मानते है।

संभव है, सोल्हीम के जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण की साख फिर से कायम हो जाए और पर्यावरण का कुछ भला हो जाए। इस संस्था को देशों द्वारा आर्थिक मदद शुरू होने से इसके प्रोजेक्ट्स में तेजी आयेगी। माना जा रहा है कि सोल्हीम के कारण लगभग 5 करोड़ डॉलर का अनुदान स्वीडन, डेनमार्क और नीदरलैंड्स जैसे देशों ने रोक दिया था।

सोल्हीम पर संयुक्त राष्ट्र के नियमों की अवहेलना का भी आरोप था। अनेक ऐसे आयोजनों की स्पोंसरशिप उन्होंने स्वीकृत कर दी थी जिसके ये संस्थान या आयोजक पात्र ही नहीं थे।

संयुक्त राष्ट्र के मुखिया की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि उन्होंने सोल्हीम का इस्तीफ़ा मंजूर कर लिया है और डिप्टी एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर तंज़ानिया के जोयस मसुया फिलहाल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर की कमान संभालेंगे।

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